सुप्रीम कोर्ट ने एम्स को न्यूजक्लिक फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ के स्वास्थ्य परीक्षण का दिया निर्देश 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एम्स से न्यूजक्लिक के फाउंडर और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने ये फैसला जेल अस्पताल द्वारा कोर्ट को सौंपी गयी रिपोर्ट पर उनके परिजनों के सहमत न होने पर किया है।

जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की एक बेंच ने पुरकायस्थ के वकील वरिष्ठ वकील कपिल सिबल के दिल्ली पुलिस द्वारा कोर्ट को सौंपी गयी तिहाड़ जेल अस्पताल की रिपोर्ट पर निराशा जाहिर करने पर ये काम किया।

पीठ ने एडिशनल सालिसीटर जनरल एसवी राजू के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि सैकड़ों आम कैदियों का उसी जेल अस्पताल में इलाज और परीक्षण होता है इसलिए पुरकायस्थ को किसी भी तरह का विशेषाधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।

सिबल ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में उन परिस्थितियों को नहीं शामिल किया गया है जिसका वह सामना कर रहे हैं। और यह रिकार्ड पर भी है। एम्स के परीक्षण पर हमें कोई आपत्ति नहीं है। जेल का रिकॉर्ड भी मंगाया जाना चाहिए।

एम्स बोर्ड द्वारा परीक्षण की मांग का विरोध करते हुए राजू ने कहा कि उन्हें इसकी लागत देनी पड़ेगी। हमें क्यों इसका शुल्क देना चाहिए? सैकड़ों कैदियों को यह विशेषाधिकार हासिल नहीं है…।

इस पर जस्टिस मेहता ने कहा कि क्योंकि वह आपके मेहमान हैं। वह आपकी हिरासत में हैं। यह तर्क नहीं उठाया जा सकता है। क्या आप उन्हें रिहा कर रहे हैं? तब वह अपना सबसे अच्छे अस्पताल में इलाज कराएंगे।  

सिबल ने कहा कि अगर सरकार के पास पैसे की समस्या है तब हम उसको वहन कर लेंगे। मैं व्यक्तिगत तौर पर सरकार को सहयोग दे दूंगा। कोई समस्या नहीं है।

जब जस्टिस गवई ने यह पूछा कि क्या सिबल या फिर पुरकायस्थ उसकी कीमत अदा कर देंगे तो सिबल ने कहा कि मैं व्यक्तिगत तौर पर सहयोग कर दूंगा।

20 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पुरकायस्थ की तिहाड़ जेल के मेडिकल अफसर द्वारा बनाई गयी मेडिकल रिपोर्ट को पेश करने के लिए कहा था। पुरकायस्थ पिछले साल के अक्तूबर से ही पीएमएलए के तहत जेल में बंद हैं।

उनके वकील सिबल ने बेंच से उन्हें नियमित जमानत देने के अलावा स्वास्थ्य के आधार पर भी रिहा करने की मांग की थी।

इसके पहले 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एचआर हेड अमित चक्रवर्ती के सरकारी गवाह बनने के आवेदन के बाद उन्हें रिहा कर दिया था। और इसके साथ ही उनकी एसएलपी को वापस लेने की इजाजत दे दी थी।

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