यौन उत्पीड़न की शिकार विकलांग सर्वाइवरों के लिए उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक हालिया निर्णय भारत और दुनिया भर में विकलांग महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह मामला एक 19 वर्षीय नेत्रहीन महिला से संबंधित है, जिसके साथ उसके भाई के दोस्त ने बलात्कार किया था। न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ ने अप्रैल के अपने फैसले में विकलांग महिलाओं और लड़कियों के लिए यौन हिंसा के खतरे को: उनके जीवन में बेहद आम घटना” बताया। यह फैसला इस बात को सामने लाता है कि विकलांग महिलाएं कमजोर, असहाय या अक्षम नहीं हैं: “अक्षमता में बदल जाने वाली विकलांगता की ऐसी नकारात्मक पूर्वधारणा हमारे कानून में सन्निहित विकलांग जीवन की अग्रगामी सोच वाली अवधारणा के साथ और हमारी सामाजिक चेतना में उत्तरोत्तर तौर पर, हालांकि धीरे-धीरे असंगत हो जाएगी।”

मैंने मनोसामाजिक विकलांगता से पीड़ित एक महिला का साक्षात्कार लिया, जिसके साथ 2014 में कोलकाता में सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसने बताया कि पुलिस ने उससे कहा, “वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है, मैं उस पर ध्यान क्यों दूं?” ठीक इसी तरह की सोच को बदलने की जरूरत है। हाल का फैसला इस बात पर जोर देता है कि विकलांग व्यक्ति की गवाही को कम करके नहीं आंकना चाहिए या व्यक्ति को विकलांगता के आधार पर उसे गवाही देने में असमर्थ नहीं माना जाना चाहिए।

निर्णय में कहा गया है कि बलात्कार पीड़िता ने अपराधी, जो उसका परिचित था, को उसकी आवाज से पहचाना और इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि इस तरह की गवाही को स्पष्ट शिनाख्त के समान कानूनी महत्व दिया जाना चाहिए। हालांकि साल 2011 की यह घटना दिल्ली में एक युवती के सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013, के लागू होने से पहले की घटना है, फिर भी यह निर्णय बताता है कि न्यायिक प्रक्रिया में विकलांग लोगों के लिए समायोजन किया जा सकता है।

यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत में महिलाओं को अभी भी यौन हिंसा के लिए न्याय प्राप्त करने में भारी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, खासकर उस स्थिति में, जब कथित अपराधी काफी ताकतवर हों।

इस फैसले में यौन हिंसा और विकलांग महिलाओं एवं लड़कियों की न्याय तक पहुंच संबंधी ह्यूमन राइट्स वॉच की 2018 की रिपोर्ट का व्यापक रूप से हवाला दिया गया है। यह फैसला भारत के विकलांगता अधिकार आंदोलन की विकलांगों हेतु आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ बनाने के लिए ठोस सुधार संबंधी मांगों को प्रतिध्वनित करता है। इन मांगों में शामिल हैं:

यौन हिंसा उत्तरजीवियों से जुड़े मामलों के समुचित निपटारे के लिए न्यायाधीशों, वकीलों और पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित करना;

प्रशिक्षित “विशेष शिक्षकों,” दुभाषियों और कानूनी सहायता प्रदाताओं की सूची तैयार करना; तथा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से लिंग आधारित हिंसा संबंधी अलग-अलग आंकड़े एकत्र करना।

यह निर्णय नेत्रहीन महिला की गवाही को बहुत अहम बना देता है और भारत एवं दुनिया भर में विकलांग महिलाओं में इस आशा का संचार करता है कि वे अब हिंसा की अदृश्य शिकार नहीं बनेंगी।

(शांता राऊ बरीगा की रिपोर्ट)

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