यह कहते हुए कि कृपया समझें कि हम किसी भी तरह से घटना को छोड़ या माफ़ (कन्डोन) नहीं कर रहे हैं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने हाथरस गैंगरेप मामले की सुनवाई अगले हफ्ते के लिए टाल दी। उच्चतम न्यायालय सुशांत सिंह मामले की तरह सीबीआई जाँच की यूपी सरकार की सिफारिश के जाल में नहीं फंसा और यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि गवाहों की सुरक्षा के लिए क्या इंतजाम किए जा रहे हैं? बुधवार तक हलफनामा देकर बताएं। अब मामले की अगली सुनवाई 12 अक्तूबर को होगी।
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया। इसमें कहा गया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई जांच के आदेश दिए जाएं। उच्चतम न्यायालय को खुद भी सीबीआई जांच की निगरानी करनी चाहिए। पीड़ित का अंतिम संस्कार रात में इसलिए किया गया, क्योंकि दिन में हिंसा भड़कने की आशंका थी। इंटेलिजेंस इनपुट मिला था कि इस मामले को जातिवाद का मुद्दा बनाया जा रहा है और पीड़ित के अंतिम संस्कार में लाखों प्रदर्शनकारी जमा हो सकते हैं।
हलफनामा में यह भी कहा गया है कि हाथरस मामले में सरकार को बदनाम करने के लिए नफरत भरा कैंपेन चलाया गया। अब तक की जांच में पता चला है कि कुछ लोग अपने हितों के लिए निष्पक्ष जांच को प्रभावित करना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार और भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता गोदी मीडिया ने जोर शोर से प्रचार शुरू कर दिया है कि हाथरस में दलित किशोरी के साथ हुई हिंसा और उसकी मौत के बाद पूरे देश में जो विक्षोभ प्रदर्शन हो रहे हैं, वे उत्तर प्रदेश में जातीय दंगे भड़काने के षड्यंत्र के तहत किए जा रहे हैं। सरकार के समर्थक टीवी चैनल यह ‘सनसनीखेज’ पर्दाफ़ाश कर रहे हैं कि इस साजिश में एमनेस्टी इंटरनेशनल शामिल है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को भी साजिश में शामिल बताया जा रहा है।
अब यह लाख टके का सवाल है कि सरकार के कथित ‘इंटेलिजेंस इनपुट’ की जाँच कौन और कैसे करेगा? सवाल यह भी है कि कथित जातीय दंगे भड़काने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश की पुष्टि कौन सी तटस्थ एजेंसी से करायी जायगी?
हाथरस गैंगरेप केस में अलग-अलग याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। उच्चतम न्यायालय ने यूपी सरकार से तीन मुद्दों गवाहों और परिवार की सुरक्षा, पीड़ित परिवार के पास वकील है कि नहीं और इलाहाबाद हाईकोर्ट का स्टेट्स क्या है पर हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एसए बोबडे ने इस केस को शॉकिंग केस बताया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील की ओर से कोर्ट की निगरानी में जांच की बात कही गई। इस पर सीजेआई ने पूछा कि आप इलाहाबाद हाईकोर्ट क्यों नहीं गए।
सुनवाई की शुरुआत यूपी सरकार की ओर से दलील रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने की। उन्होंने कहा कि हम इस याचिका का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन समाज में जिस तरह से भ्रम फैलाया जा रहा है, हम उसके बारे में सच सामने लाना चाहते हैं। पुलिस और एसआईटी जांच चल रही है। इसके बावजूद हमने सीबीआई जांच की सिफारिश की है। तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसे मॉनीटर करे और सीबीआई जांच हो। इस पर याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पीड़ित परिवार सीबीआई जांच से संतुष्ट नहीं है, वो कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच चाहते हैं। इस पर उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि आपकी मांग जांच को ट्रांसफर करने की है या फिर ट्रायल को ट्रांसफर करने की है?
सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि यह घटना बहुत ही असाधारण और चौंकाने वाली है। यही कारण है कि हम आपको सुन रहे हैं, लेकिन अन्यथा हमें यह भी नहीं पता है कि आप लोकस हैं या नहीं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि यह चौंकाने वाला मामला नहीं है या कि हम मामले में आपकी भागीदारी की सराहना नहीं करते हैं, लेकिन कहना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता का लोकस नहीं है। सीजेआई ने कहा कि हम किसी भी तरह से घटना को छोड़ या माफ़ (कन्डोन) नहीं कर रहे हैं।
इसके बाद वकील कीर्ति सिंह ने कहा कि मैं कोर्ट की महिला वकीलों की तरफ से बोल रही हूं। हमने रेप से जुड़े कानून पर काफी अध्ययन किया है। यह एक झकझोरने वाली घटना हुई है। सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि हर कोई कह रहा है कि घटना झकझोरने वाली है, हम भी यह मानते हैं। तभी आपको सुन रहे हैं, लेकिन आप इलाहाबाद हाई कोर्ट क्यों नहीं गईं?
सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि क्यों नहीं मामले की सुनवाई पहले हाईकोर्ट करे, जो बहस यहां हो सकती है, वही हाईकोर्ट में भी हो सकती है। क्या ये बेहतर नहीं होगा कि हाईकोर्ट मामले की सुनवाई करे? सभी दलीलों को सुनने के बाद सीजेआई ने कहा कि हम पीड़ित पक्ष और गवाहों की सुरक्षा के यूपी सरकार के बयान को दर्ज कर रहे हैं या आप हलफनामा दाखिल करें?
इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कल तक दाखिल कर देंगे। सीजेआई ने कहा कि ठीक है, आप गवाहों की सुरक्षा को लेकर किए इंतजामों पर और पीड़ितों की सुरक्षा के बारे में हलफनामे में पूरी जानकारी दें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो सुनिश्चित करेगा कि हाथरस मामले की जांच सही तरीके से चले।
इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की अर्जी देने वाले सोशल एक्टिविस्ट सत्यम दुबे, वकील विशाल ठाकरे और रुद्र प्रताप यादव ने अपील की है कि इस केस की जांच सीबीआई या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड या मौजूदा जज या फिर हाईकोर्ट के जज से करवाई जाए। उन्होंने यह अपील भी की है कि हाथरस केस को दिल्ली ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया जाए, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस-प्रशासन ने आरोपियों के खिलाफ सही कार्रवाई नहीं की। पीड़ित की मौत के बाद पुलिस ने जल्दबाजी में रात में ही शव जला दिया और कहा कि परिवार की सहमति से ऐसा किया गया। लेकिन, यह सच नहीं है, क्योंकि पुलिस वाले ने खुद चिता को आग लगाई और मीडिया को भी नहीं आने दिया था। पुलिस ने पीड़ित के लिए अपनी ड्यूटी निभाने की बजाय आरोपियों को बचाने की कोशिश की। ऊंची जाति के लोगों ने पीड़ित के परिवार का शोषण किया, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया।
गौरतलब है कि हाथरस जिले के चंदपा इलाके के बुलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को 4 लोगों ने 19 साल की दलित युवती से गैंगरेप किया था। आरोपियों ने युवती की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी और उसकी जीभ भी काट दी थी। दिल्ली में इलाज के दौरान 29 सितंबर को पीड़ित की मौत हो गई। इस मामले में चारों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं। हालांकि, पुलिस का दावा है कि दुष्कर्म नहीं हुआ था। इस घटना ने जातीय रंग ले लिया है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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