बिलकिस बानो केस का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पलटा, दोषी फिर जाएंगे जेल

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बिलकिस बानों मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 8 जनवरी 24 को मई 2022 में जस्टिस अजय रस्तोगी (रिटायर) द्वारा दिए गए अपने ही फैसले के खिलाफ कड़ी आलोचना की, जिसने दोषियों को गुजरात सरकार के समक्ष अपनी शीघ्र रिहाई के लिए अपील करने की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि दोषियों को 2022 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश “कपटपूर्ण तरीकों से” मिला। गुजरात सरकार को इस आधार पर 2022 के आदेश की समीक्षा के लिए याचिका दायर करनी चाहिए थी कि वे दोषियों को छूट देने के लिए सक्षम नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी 11 दोषी कोर्ट में 15 दिनों में सरेंडर करेंगे और वहां से इन्हें जेल भेजा जाएगा।

बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए दोषियों की सजा माफी रद्द कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को अब फिर से जेल जाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई, वही राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती बल्कि महाराष्ट्र सरकार इस पर फैसला करेगी। गौरतलब है कि बिलकिस बानो मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला शक्ति का दुरुपयोग था। बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों की सजा गुजरात सरकार ने माफ कर दी थी। गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की और 12 अक्तूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हमने कानूनी लिहाज से मामले को परखा है। पीड़िता की याचिका को हमने सुनवाई योग्य माना है। इसी मामले में जो जनहित याचिकाएं दाखिल हुई हैं, हम उनके सुनवाई योग्य होने या न होने पर टिप्पणी नहीं कर रहे। बता दें कि बिलकिस बाओ मामले में दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी। जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली, उसे ही रिहाई पर फैसला लेना चाहिए था। सजा महाराष्ट्र में मिली थी। इस आधार पर रिहाई का आदेश निरस्त हो जाता है।”

जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सजा इसलिए दी जाती है कि भविष्य में अपराध रुके। अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है लेकिन पीड़ित की तकलीफ का भी एहसास होना चाहिए।

इससे पहले कोर्ट ने 11 दिनों की व्यापक रूप से सुनवाई की थी। इस दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश किए थे। गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई को उचित ठहराते हुए कहा था कि इन लोगों ने सुधारात्मक सिद्धांत का पालन किया है।

दरअसल, बिलकिस बानो ने गैंगरेप के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ 30 नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थीं। याचिका में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें तुरंत वापस जेल भेजने की मांग की गई थी। बता दें बिलकिस बानो और उनके परिवार के सदस्यों के साथ दरिंदगी 2002 के गुजरात दंगों के दौरान की गई थी

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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