‘जिस बात का खतरा है, सोचो की वो कल होगी’– दुष्यंत की ग़ज़ल का मिसरा है। जितनी तेजी से समाज…
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‘जिस बात का खतरा है, सोचो की वो कल होगी’– दुष्यंत की ग़ज़ल का मिसरा है। जितनी तेजी से समाज…