कृषि प्रधान देश होने के साथ ही हमारा देश पर्व प्रधान भी है। तीन राष्ट्रीय त्योहार तो हैं ही। पूंजी का प्रवाह आया तो उसके साथ पूंजीवादी पर्व भी आ जुड़े। फिर अस्मिता विमर्श और अस्मितावादी राजनीति का बोलबाला...
फिलहाल तो मोहन भागवत अपनी ही भागवत कथा में फंस गए लगते हैं। मुम्बई में संत रविदास की जयन्ती पर दिए अपने भाषण में उन्होंने दलितों को लुभाने के लिए जो जाल बिछाया था वह उल्टा पड़ गया लगता...
उत्तर प्रदेश के चुनाव-नतीजों से दो बातें स्पष्ट पता चल रही हैं, एक, यह कि लोकतंत्र अभी हारा नहीं है, क्योंकि भाजपा-गठबंधन को 42 प्रतिशत वोट मिला है, यानी 58 प्रतिशत वोट भाजपा के विरोध में पड़ा है, और...
भाजपा बंगाल पर फतह पाने को इतनी बेताब क्यों है? लोकतंत्र में चुनाव होना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और कोई दल सत्ता में आता है तो कोई विपक्ष में बैठता है। पर यहां तो सवाल फतेह का है, क्योंकि...
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछा जाना कि यह आरक्षण कितनी पीढियों तक चलेगा, चर्चा और बहुजन समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है। आइए आरक्षण के विषय पर बात करते हैं। जिस जाति व्यवस्था के चलते संवैधानिक आरक्षण...
उनकी पहचान कपड़ों से नहीं उनके विचारों से होती है। वे उदारवाद का मुखौटा लगाकर आपके आसपास मंडराते हैं। वे बढ़-चढ़कर देश के विकास की बातें करेंगे मगर किसी भी तरह के विरोध और प्रतिरोध पर वे नाक-भौं सिकोड़ते...
जातिवादी हिंसा का वहिशाना शिकार हुए पंजाब के संगरूर जिले के चंगालीवाल गांव के दलित युवक जगमाल सिंह जग्गा हत्याकांड ने सूबे को सकते में तो डाला ही है, साथ ही पुराने कुछ सवालों को भी नए सिरे से...