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ज़रूरी ख़बर

पड़ताल: कैसे सरकारी विज्ञापनों ने बनाया मीडिया को सत्ता का दलाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत माह विपक्षी नेताओं से कोविड-19 और उससे पैदा हुए आर्थिक संकट का सामना करने के संदर्भ में सुझाव मांगे थे। [more…]

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ज़रूरी ख़बर

कोरोना की आड़ में श्रम कानूनों पर हमला

मजदूर किसी भी देश की रीढ़ है बिना इनके कोई भी देश विकास की सीढ़ियां नहीं चढ़ सकता यह पहले से ही तय था, परन्तु [more…]

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पहला पन्ना 

ग़रीबों और मज़दूरों ने प्रधानमंत्री के ‘मन की’ तो सुनी, लेकिन उनकी ‘बात’ कहाँ थी!

प्रधानमंत्री ने 12 मई के अपने राष्ट्रीय के सन्देश में क्या-क्या कहा, ये तो अब तक आप जान ही चुके होंगे। मेरी बात उससे आगे [more…]

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बीच बहस

कोरोना काल: मज़दूर चेतना को नई ऊँचाई पर ले जाने का समय

तालाबंदी के डेढ़ महीना बीत जाने के बाद भी देश-व्यापी स्तर पर मेहनतकश मजदूरों की दुर्दशा का सिलसिला थमा नहीं है। हर दिन भूख, जिल्लत [more…]

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बीच बहस

पूंजीवाद के इंजन को हमेशा के लिए बंद करना ही हमारा काम: अरुंधति रॉय

कोरोनावायरस की महामारी ने पूंजीवाद के इंजन को रोक दिया है। परन्तु यह एक अस्थाई स्थिति है। आज जब पूरी मनुष्य जाति कुछ समय के [more…]

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पहला पन्ना 

देश के बहुसंख्य आमजन-मेहनतकशों के लिए ऐसी सरकार, ऐसे राज्य के बने रहने का तर्क (Raison d’être) खत्म हो गया है !

कोरोना की आपदा तो वैश्विक है, लेकिन इससे जिस तरह हमारे देश में निपटा जा रहा है, उसने मजदूरों की जिस दिल दहला देने वाली [more…]

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ज़रूरी ख़बर

जब एक डॉक्टर ने पेश की इंसानियत की हिमालयी मिसाल

दोस्तों इंसानियत किसी मजहब, किसी जाति या किसी इलाके की मोहताज नहीं होती। यह इंसान का अपना जज्बा होता है जो अपनी संवेदनाओं से पैदा [more…]

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बीच बहस

मज़दूरों के जख़्मों पर मरहम लगाना तो दूर, सरकारें नमक रगड़ने पर आमादा हैं

ऐसे वक़्त में जब कोरोना संक्रमण से पैदा हुई चुनौतियाँ बेक़ाबू ही बनी हुई हैं, तभी हमारी राज्य सरकारों में एक नया संक्रमण बेहद तेज़ी [more…]

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बीच बहस

अदृश्य महामारी और राजनीतिक संस्कृतियों का अंतर

अप्रैल के पहले सप्ताह में अपनी फेसबुक वॉल पर स्वीडन के बारे में लिखते हुए मैंने कोविड -19 से निपटने के उसके तरीके की प्रशंसा [more…]

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बीच बहस

कोरोना ने खोल दी सत्ता और व्यवस्था की कलई

कोरोना के बाद दुनिया की व्यवस्था नया स्वरूप लेगी। हर देश में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। क्या हम भारतीय भी सोच सकते हैं कि [more…]