Friday, April 19, 2024

economy

स्लोडाउन भी नहीं डाउन कर सका वित्तमंत्री का अहंकार

वित्तमंत्री कल प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेरे मुर्गे की तीन टांग पर अड़ी रहीं, बोली कोई मंदी नहीं है ! कोई स्लोडाउन नहीं है! यह घोषणाएं हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल की यह मांग उठा रहे थे। लेकिन साफ दिख...

मंदी और राजनीति-शून्य आर्थिक सोच की विमूढ़ता

अति-उत्पादन पूँजीवाद के साथ जुड़ी एक जन्मजात व्याधि है । इसीलिये उत्पादन की तुलना में माँग हमेशा कम रहती है । यही वजह है कि पूंजीवाद में हर एक चक्र के बाद एक प्रकार की संकटजनक परिस्थिति सामने आती ही है ।...

अब सबको नजर आने लगी है अर्थव्यवस्था की हकीकत

गिरीश मालवीय का लेख... एसबीआई चेयरमैन रजनीश कुमार कह रहे हैं कि रेट कट की वजह से बैंकों के पास अब नकदी की कमी नहीं है, लेकिन लोन लेने वाले लोगों की संख्या में कमी आ गई है। हर कोई...

आर्थिक तबाही को सुनिश्चित करने वाला जन-मनोविज्ञान!

चुनाव में मोदी की भारी जीत लेकिन जनता में उतनी ही ज्यादा ख़ामोशी! मोदी जीत गये, भले जनता के ही मत से, लेकिन विडंबना देखिये कि वही जनता उनकी जीत पर स्तब्ध है! 2019 में मोदी की जीत सांप्रदायिक और राष्ट्रवादी...

देश में आर्थिक मंदी बेहद चिंता का विषय: रघुराम राजन

नई दिल्ली। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुरामन राजन ने अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति को बेहद चिंताजनक करार दिया है और इसको हल करने के लिए पावर और गैरबैंकिंग वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं को तत्काल हल करने का सुझाव दिया...

कब तक छुपा रहेगा ‘राजनीतिक सफलता’ के पर्दे में आर्थिक नाकामी का चेहरा?

भारत के निर्यात सेक्टर में पिछले चार साल(2014-18) में औसत वृद्धि दर कितनी रही है? 0.2 प्रतिशत। 2010 से 2014 के बीच विश्व निर्यात प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था तब भारत का निर्यात प्रति वर्ष 9.2 प्रति वर्ष...

गहराता आर्थिक संकट और भारत की विदेश नीति

नोटबंदी की तरह के घनघोर मूर्खतापूर्ण क़दम के अलावा भारत की अर्थ-व्यवस्था को डुबाने में मोदी सरकार की विदेशनीति का कम बड़ा योगदान नहीं है । आज भारत अपने उन सभी पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से...

क्यों नहीं बाहर दिख रहा है अर्थव्यस्था में मंदी का हाहाकार?

अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत का स्थान फिसल गया है। 2018 में भारत पांचवें नंबर पर आ गया था अब फिर से सातवें नंबर पर आ गया है। 31 जुलाई के बिजनेस स्टैंडर्ड में ख़बर छपी है कि 2018...

गोदरेज और बजाज के बयानों का मतलब क्या है?

नई दिल्ली। कैफे काफी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ की खुदकुशी महज एक घटना नहीं बल्कि कारपोरेट वर्ल्ड में चल रही बड़ी हलचल का एक संकेत भर है। सिद्धार्थ ने अपनी परेशानियों को लेकर प्रतिक्रिया का जो तरीका अपनाया उसे किसी...

अर्थव्यवस्था के विध्वंस के लिये बिछा दिया गया है बारूद का व्यापक जाल

वित्त सचिव सुभाष गर्ग को केंद्र में रख कर शुरू हुए विवादों का जो चारों ओर से भारी शोर सुनाई दे रहा है, वह इतना बताने के लिये काफी है कि भारत की अर्थ-व्यवस्था और वित्त-प्रबंधन के केंद्रों पर अब पूरी...

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AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।