संत रैदास वाणीऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिलै सबन को अन्न।छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।जात-जात में जात हैं, जो केलन के पात।रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जात न जात।।रैदास कनक और कंगन माहि जिमि...
किसी समुदाय के व्यक्ति, विचार, भाषा व नायक पर हमला निंदनीय होते हुए भी इस मायने में अपनी सार्थकता छोड़ जाता है कि वो एक कारण प्रदान करता है सुप्त सामूहिक चेतना व प्रतिरोध को जगाने का, अपने वर्ग...