Friday, April 19, 2024

slavery

औरतों की मुक्ति और गुलामी के बीच हिमालय की तरह पैर अड़ाकर खड़ी है दिमागी गुलामी

वर्तमान भारतीय समाज दुखों के समुद्र में डूबा हुआ है। मजदूरों का न कोई गांव है न शहर, किसानों की खेती ही उनकी मौत का सबब बन गई है, आदिवासियों के जंगल उनके लिए तबाही की वजह बन चुके...

ज्योतिबा के जन्मदिन पर विशेष: निरक्षरता है सारी विपत्तियों की जड़

सारी विपत्तियों का आविर्भाव निरक्षरता से हज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक 'गुलामगिरी' (स्लेवरी) में स्पष्ट लिखा है कि वे अपने देश से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना चाहते थे l ज्योतिबा के छात्र जीवन से ही अंग्रेजी हुकूमत के...

‘मनुस्मृति दहन दिवस’ पर मनुविधान समेत किसान कानूनों की जलाई गई होली

25 दिसंबर को 'मनुस्मृति दहन दिवस' पर देश के कई राज्यों सहित बिहार-यूपी में बहुजन संगठनों ने मनुस्मृति के साथ मनुवादी-पूंजीवादी गुलामी थोपने के कानूनों-प्रावधानों-नीतियों का दहन किया। इस मौके पर मनुस्मृति के साथ मनुविधान थोपने के एजेंडे, तीनों...

स्पार्टाकसः गुलामों की सेना ने हिला दी थी रोम की चूलें

हावर्ड फॉस्ट के कालजयी उपन्यास स्पार्टाकस का हिंदी अनुवाद अमृत राय ने आदिविद्रोही शीर्षक से किया है। मैं इस अनुवाद को मानक मानता हूं। अच्छा अनुवाद वह है जो मौलिक सा ही मौलिक लगे। यह दास प्रथा पर आधारित...

मध्य प्रदेशः आजाद कराए गए बंधुआ युगल, सामने पुनर्वास बड़ी चुनौती

आदिम दौर के तमाम नियम आज भी बदस्तूर जारी हैं। जगह-जगह लोगों को बंधुआ मजदूर या गुलाम बनाकर रखा जा रहा है और उनसे जबरन काम के साथ ही अमानवीय व्यवहार भी किया जा रहा है। ताजा मामला मध्य...

तरक्की पसंद तहरीक का ब्लू प्रिंट है सज्जाद जहीर का उपन्यास ‘लंदन की एक रात’

‘‘इंसानी ज़िंदगी का दायरा सिर्फ इश्क और मुहब्बत तक महदूद नहीं। क्या इसके अलावा और बहुत से मसाइल और बहुत सी दिलचस्प और गैर दिलचस्प चीजें नहीं हैं, जिनसे हम बावस्ता हैं? इन चीजों को छोड़कर हम खला-ए-महज में...

‘ब्लैक लाइव्स मैटर’: ऐतिहासिक संदर्भ में नस्लवाद और दासता के मायने

(वर्चस्ववाद की बुनियाद के मौलिक तत्वों में से एक है श्रेष्ठतावाद, जो यह दावा करता है कि वही श्रेष्ठ है क्योंकि दुनिया को सभ्य बनाने की जवाबदेही उसकी है। इसके बदले वह विश्व पर अपनी हुकूमत करता है। इसी...

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‘ये बाबू संविधान बचाईं कि चिराग बाबू के जिताईं समझ में नाही आवत बा’

यह बात बिहार की करीब 60-65 वर्ष की पासी समाज की एक महिला ने कही। जब हम लोग संविधान...