बिहार सरकार का बजट बेहद निराशाजनक, जनता की क्रय शक्ति बढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं: माले

Estimated read time 1 min read

पटना। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल और माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने भाजपा-जदयू सरकार द्वारा आज पेश बजट को निराशाजनक व नकारात्मक कहा है। नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि आज कोविड व लॉकडाउन के बाद जहां दुनिया भर की सरकारें घाटे का बजट बना रही हैं, वहीं बिहार सरकार का बजट फायदा दिखला रहा है। 2021-22 के बजट प्राक्कलन में जहां 218502.70 करोड़ रुपये अनुमानित प्राप्ति दिखलाई गई है, वहीं खर्च उससे 200 करोड़ कम यानि 218302.70 करोड़ रुपए दिखलाई गई है।

इसका मतलब है कि सरकार कोरोना जनित लॉकडाउन की मार झेल रही जनता के लिए राजकोष खोलना नहीं चाहती है और यथास्थिति बनाकर रखना चाहती है। यदि सरकार अपना खजाना नहीं खोलेगी, तो लोगों के पॉकेट में पैसे नहीं आयेंगे और न ही उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। जनता की क्रय शक्ति बढ़ाए बिना मौजूदा समस्याओं से निपटना संभव नहीं है। सरकार को घाटे का बजट बनाना चाहिए था और अतिरिक्त पैसा जुटाने के उपाय तलाश करने चाहिए थे। ऐसी स्थिति में न तो रोजगार का सृजन हो सकता है और न ही मौजूदा मंदी से निजात मिल सकती है। आज की तारीख में दुनिया के अधिकांश देश अपने जीडीपी का 20 प्रतिशत के घाटे तक का बजट बना रहे हैं।

यदि सरकार को गरीबों, मजदूरों, महिलाओं, किसानों, स्कीम वर्करों, नौजवानों आदि तबके की क्रय शक्ति बढ़ाने की चिंता होती तो वह विभिन्न विभागों में खाली लाखों पदों पर स्थायी बहाली का बजट बनाती। लेकिन वह जो 19 लाख रोजगार देने की बात कह रही है, उसमें कुछ भी ठोस नहीं है। महज 5 लाख अनुदान व 5 लाख लोन के जरिए बिहार के लाखों बेरोजगारों को कौन सा रोजगार मिलेगा? जाहिर है कि भाजपा-जदयू पकौड़ा तलने जैसे काम को ही रोजगार बतला रही हैं। 

मनरेगा मजदूरों के लिए कम से कम 200 दिन काम व न्यूनतम 500 रुपये मजदूरी का प्रावधान किया जाना चाहिए था। ठेका पर काम कर रहे सभी स्कीम वर्करों के काम को स्थायी करने की जरूरत थी। लेकिन सरकार पैसे को विकेन्द्रित तरीके से खर्च करने की बजाए केंद्रित तरीके से कंपनियों के हाथों खर्च करने की नीति पर चल रही है। आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी शिक्षक और अन्य स्कीम वर्करों के प्रति सरकार के असम्मान का ही भाव दिखता है। गरीबों के वास-आवास व अन्य अधिकारों के प्रति इसी प्रकार की घोर उपेक्षा बजट में परिलक्षित हो रही है।

माले नेताओं ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने की बात सरासर झूठी है। यदि सरकार को इसकी चिंता होती तो वह एपीएमसी एक्ट को पुनर्बहाल करती। आज भी बिहार में सभी किसानों के धान नहीं खरीदे जा सके हैं। ऐसे में उनकी क्रय शक्ति कैसे बढ़ेगी? हर कोई जानता है कि यहां के किसान औने-पौने दाम पर अपने धान को बेचने के लिए मजबूर हैं। मंडी की स्थापना की कोई बात बजट में नहीं की गई है। सिंचाई के क्षेत्र में महज 550 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जो बहुत ही तुच्छ है। सोन प्रणाली सिस्टम को ठीक करने सहित बिहार की अन्य नहर प्रणालियों, बंद पड़े नलकूपों आदि के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई है।

शिक्षा के क्षेत्र में गोलमटोल बातें की गई हैं। छात्राओं को कुछ प्रोत्साहन राशि देकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन बदहाल स्कूलों-कॉलेजों की संस्थागत संरचना को ठीक करने, उच्च शिक्षा, रिसर्च वर्क आदि पर बजट में एक शब्द तक नहीं है। यदि हमारे विवि के एकैडमिक कैलेंडर ठीक ही नहीं होंगे तब छात्राओं को कैसे शिक्षित किया जा सकता है? हर अनुमंडल में एक डिग्री कॉलेज की बहुत पुरानी मांग है, लेकिन सरकार ने इस पर चुप्पी साध रखी है। कुछ पॉलिटेकनिक, आईटीआई जैसे संस्थानों की चर्चा करके सरकार दरअसल कुशल वर्कर ही पैदा करने का काम कर रही है।

नेताओं का कहना था कि कोविड काल में बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल हम सबने देखा। उच्च मेडिकल संस्थानों तक में सुविधाओं का घोर अभाव था। नीचे के अस्पतालों की तो बात ही करना बेमानी है। न महिला डॉक्टर हैं, न ब्लड की सुविधा और न ही जांच की। कोविड के दौरान हुए संस्थागत भ्रष्टाचार की बातें भी अब हम सबके सामने हैं। 

महिला सुरक्षा पर सरकारें डींगे तो काफी हांकती है, लेकिन आज बिहार में महिला उत्पीड़न की घटनाओं ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार को आधारभूत संरचनाओं का निर्माण करना चाहिए और अलग से उसके लिए बजट का प्रावधान करना चाहिए।

कुल मिलाकर भाजपा-जदयू की सरकार बिहार को सस्ते श्रम और दरिद्रता का ही प्रदेश बनाकर रखना चाहती है।

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बृद्धि पर माले की प्रतिक्रिया:

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि आज पेट्रोल का दाम 100 रु. की सीमा रेखा पार कर गया है। पहले से ही भयानक मंदी व कई तरह के संकटों का सामना कर रही देश की जनता के लिए यह असहनीय स्थिति है। पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस में लगातार हो रही मूल्य वृद्धि ने आम लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसके खिलाफ भाकपा-माले ने आगामी 23-24 फरवरी को राज्यव्यापी विरोध दिवस आयोजित करने का निर्णय किया है। तमाम जिला कमेटियों को निर्देशित किया गया है कि वे दो दिनों तक मोदी सरकार की इन जनविरोधी कार्रवाइयों के खिलाफ जनता को जागरूक करें, विरोध मार्च आयोजित करें और प्रधानमंत्री का पुतला दहन करें।

उन्होंने कहा कि पेट्रोल के दाम में इस अभूतपूर्व वृद्धि के पीछे सरकार अंतराष्ट्रीय स्तर पर मूल्य वृद्धि का तर्क देती है, जो सरासर गलत है। कोरोना व लॉकडाउन के समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रो पदार्थों की कीमत निगेटिव दर्ज की गई थी, लेकिन उस दौर में भी यहां पेट्रो पदार्थों की कीमत में कोई कमी नहीं आई थी। उस पूरे दौर में जनता की गाढ़ी कमाई लूटी गई।

2018 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर 84 डॉलर/बैरल पेट्रोल की कीमत थी, तब भारत में वह 80 रु. प्रति लीटर था। 2021 में अभी जब अंतरराष्ट्रीय कीमत 61 डॉलर /बैरल है, तो अपने यहां उसकी कीमत 100 रु. प्रति लीटर से भी अधिक हो गई है। इसके बनिस्पत 2008 में जब अंतरराष्ट्रीय कीमत 147 डॉलर बैरल थी, तो हमारे यहां पेट्रोल काफी कम यानि 45 रु. प्रति लिटर की दर से बेचा जा रहा था। जाहिर सी बात है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में बढ़ोत्तरी का तर्क पूरी तरह बोगस है।

अभी सरकार पेट्रोल पर तकरीबन 60 और डीजल पर 54 प्रतिशत टैक्स लेती है। यह टैक्स लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हमारी मांग है कि सरकार जनता पर लगाए गए टैक्स को कम करे और कॉरपोरटों पर टैक्स बढ़ाने का काम करे।

आज खुद देश में कच्चे तेल के उत्पादन की मात्रा पहले से कहीं कम हो गई है। सरकारी कंपनी ओएनजीसी के पास पैसा ही नहीं है कि वह कच्चे तेल का स्रोत ढूंढ सके। 2000-2001 में जहां भारत 75 प्रतिशत पेट्रो पदार्थ आयात करता था, वहीं 2016-19 में यह आयात बढ़कर 95 प्रतिशत हो गया। अभी 2021 में यह आयात 84 प्रतिशत है। जाहिर है कि राष्ट्रवादी होने का दंभ भरने वाली मोदी सरकार अपने देश में संसाधन ढूंढने व उसके विकास की बजाए पेट्रोलियम पदार्थों के आयात को बढ़ावा दे रही है और आयातित पेट्रो पदार्थों का इस्तेमाल जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने में कर रही है।

जिन राज्यों में चुनाव होता है, सरकार वहां दाम में कुछ कमी करके चुनाव जीतने का प्रयास करती है। अभी असम में पेट्रोल की कीमत 5 रुपये कम कर दी गई है, क्योंकि वहां चुनाव होने वाला है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author