दल-बदल का ‘ज़मीर-फरोश कारोबार’ और फैलती शव संस्कृति

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पिछले एक अर्से से लोकतांत्रिक व्यवस्था के वाहक -संचालक गिद्ध गिरोह में बदलते जा रहे हैं। यह गिरोह शवों की  फ़िराक़ में अहर्निश लगा रहता है। जैसे ही शव दिखाई देता या देते हैं, तुरंत ही उस पर बेरहमी से टूट पड़ते हैं। विभिन्न कोणों से शव को नोचते हैं। फिर उसे डकार कर फुर्र से उड़ कर अपनी सत्ता बुर्ज़ों पर बैठ जाते हैं। कुछ समय सुस्ताने के बाद फिर से शिकार पर निकलते हैं। शव की भनक लगते ही उड़ कर उस पर अपनी चौकड़ी ज़माने लगते हैं। इन दिनों इन वाहकों का यह ‘राष्ट्र धर्म’  बनता जा रहा है। इसका ताज़ातरीन नज़ारा हिमाचल, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में राज्यसभा  के चुनावों में हुई ‘क्रॉस वोटिंग’ में देखा जा सकता है।

यहां शव ऐसे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का रूपक है जो विचारधाराहीन, आदर्शरहित, ज़मीर-फ़रोश और नीलामी के लिए सदैव तैयार रहते हैं। पाला बदलते ही अपना रंग-रोगन बदल डालते हैं। पल भर में दूसरी पार्टी के ईमान-धर्म-सकर्म -कुकर्म को आत्मसात कर लेते हैं। पिछले ही दिनों मोदी-सरकार के वरिष्ठ काबीना मंत्री और पूर्व पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने ऐसे सत्ता लोलुप दलबदलुओं को ‘अवसरवादी’ तमगा से नवाज़ा था। एक पुरस्कार समारोह को सम्बोधित करते हुए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष गडकरी का यह कथन मौंजू  है कि इस समय न कोई दक्षिणपंथी है, न ही वामपंथी।किसी की कोई भी विचारधारा नहीं रह गई है। अब जनता की नज़रों में नेता की पहचान ‘अवसरवादी’ की है। जहां भी सत्ता की मलाई दिखाई दी, उधर ही लपक लेते हैं।सत्ताजीवी बनते जा रहे हैं।

कुछ ही समय पहले कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बयान दिया था कि पिछले दस सालों में 411 निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने दल-बदल किया है। ऐसे अधिकांश दल-बदलुओं को सत्तारूढ़ भाजपा ने डकार है। उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा ने पिछले दस सालों में मध्यप्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, बिहार सहित अन्य राज्यों की विपक्ष की सरकारों को गिराया था।

राज्यसभा के चुनावों में क्रॉसवोटिंग पर नज़र डालें तो भाजपा का अब भी पेट नहीं भरा है। वह अब भी हिमाचल सहित अन्य राज्यों की गैर-भाजपा सरकारों की शिकार पर आमादा है। भाजपा की आंखों में कर्णाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब जैसे प्रदेशों में विपक्षी दलों की सरकारें कांटे की तरह चुभ रही होंगी। भाजपा शासित केंद्र अपने प्रतिनिधि राज्यपालों और उपराज्यपाल के माध्यम से इन सरकारों के विरुद्ध पतन-व्यूह रचता ही रहता है; कब किसकी बारी आ जाये, कोई ठिकाना है!

फिलहाल हिमाचल की कांग्रेस सरकार को कुछ समय तक सांसे लेने की मौहलत मिल गयी है। जैसे-तैसे उसने अपना बजट सत्र निकाल लिया है। लेकिन, भाजपा ने अस्थिरता के विष बीज तो बो ही दिये  हैं। कांग्रेस के कतिपय विधायक अपनी ज़मीर फरोश का रोल अदा करने पर आमादा है। एक मंत्री ने इस्तीफ़ा दे ही दिया है जिससे सरकार के शेष जीवन काल पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। यह गंभीर मसला है। विद्रोह सामने आ चुका है। अब यह कांग्रेस के आला कमान की रणनीति पर निर्भर करता है कि वह भाजपा द्वारा रचित चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकलती है और अपनी सरकार की रक्षा करती है।

इसी प्रकार दिल्ली की आप सरकार की सांसे भी सांसत में आई हुई हैं। उपमुख्यमंत्री सहित उसके अन्य मंत्री और नेता अभी तक जेल में हैं। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जैसे-तैसे अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं। उन्हें ईडी के समन-पर-समन मिल रहे हैं। कब तक वे ईडी से भागते रहेंगे। अंततः झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी गिरफ्तार कर ही लिया गया। उनके स्थान पर नया  मुख्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन, अस्थिरता का माहौल तो झारखण्ड में बन ही गया है।    

इन सरकारों पर दलबदलू -शवों का संकट हमेशा मंडराता रहता है। कब तक ऐसी सरकारें अपनी खैर मनाएंगी? समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों अखिलेश यादव को भी ईडी ने अपने सामने पेश होने को कहा है। लोकसभा के चुनावों तक विपक्ष के कितने नेता ईडी का सामना करेंगे, कहना मुश्किल है। लेकिन, केरल, बंगाल और कर्णाटक की सरकारों को अस्थिर बनाने की लिए कोई भी हथकंडा अपनाया जा सकता है। फिलहाल राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने राजस्थान में पड़ाव डाल रखा है। लेकिन, मुंबई अभी दूर है। वैसे भाजपा गुजरात और महाराष्ट्र में अपना वर्चस्व बनाये रखने के प्रति आश्वस्त है। इसलिए यात्रा के सम्भावी प्रभाव से निश्चिन्त है।

शव से यहां सीधा तात्पर्य यह है कि अपनी ज़मीर-फरोश और विचारधाराहीन दलबदलू या पलटूराम ‘शव समान’ ही तो है। वह किसी सिद्धांत और विचारधारात्मक मतभेद की वज़ह से पार्टी नहीं छोड़ता है। वह सिर्फ सत्ताभोग या धनभोग के लिए अपना दल बदलता है। देश की राजनीति में दलबदल एक ‘महामारी’ की शक्ल लेता जा रहा है।

बेशक़, वह दिन दूर नहीं जब यह महामारी देश के लोकतंत्र और गणतंत्र की व्यवस्था को लील लेगी। वैसे भी पिछले एक दशक से विश्व की लोकतान्त्रिक तालिका में भारत का स्थान नीचे गिरता जा रहा है। आज भारत का स्थान इस तालिका में 108 वें स्थान पर है। एक दशक पहले यह 100 से भी नीचे था। इसी तरह विश्व की प्रेस-आज़ादी की तालिका में भी भारत की दुर्दशा है; 180 देशों की तालिका में हमारा स्थान 161 वां है, जबकि 2017 में 136 पर था। कहने के लिए मीडिया आज़ाद है, लेकिन यथार्थ में नहीं है। अघोषित सेंसरशिप थोप दी गई है। ज़ाहिर है, सरकार के ऐसे कारनामों से लोकतंत्र कमज़ोर ही होगा,अलबत्ता यह सही है कि सत्ता और हुकमरान मज़बूत होते जाएंगे और जनता की आवाज़ सिकुड़ती जायेगी। दुनिया के 10 निरंकुश देशों में भारत को शुमार किया जाता है।

भाजपा की दुखती रग यह है कि लाख कोशिशों के बावज़ूद विपक्ष का महागठबंधन ‘इंडिया’ तकरीबन साबुत है। उसे उम्मीद थी कि बिहार में नीतीश कुमार के पलटने के बाद इंडिया ताश के पत्तों की तरह बिखर जायेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ हो सका। दिल्ली, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों में सीट-बटवारा का काम ठीक-ठाक हो गया। और हो रहा है। इससे भाजपा के सपने को आघात तो पहुंचा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, गुजरात जैसे प्रदेशों में भाजपा की लोकसभा सीटें अपने चरम पर हैं। भाजपा अपनी इस चरम स्थिति को बनाये रख सकेगी, इसमें संदेह है।

कर्णाटक में लाख कोशिशों के बावज़ूद भाजपा विधानसभा में क्रॉस-वोटिंग के खेल में नाकाम रही है। इससे उसकी सीमायें भी उजागर होती हैं। भाजपा की दुखती रग यह भी है कि वह दक्षिण राज्यों पर राजनैतिक विजय प्राप्त नहीं कर सकी है। पिछले साल कर्णाटक के चुनावों में मिली पराजय से भाजपा के विस्तार को आघात ही लगा है। उसे उम्मीद थी की वह तेलंगाना में जीतेगी। उसमें भी नाकाम रही है।

हालांकि, तीनों हिंदी राज्यों के चुनाव परिणाम उसकी झोली में गए हैं। फिर भी वह लोकसभा के चुनाव परिणामों को लेकर शत-प्रतिशत आश्वस्त नहीं है। यदि वह रहती तो उसे क्रॉस वोटिंग की ज़रुरत नहीं होती। केरल यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां की जनता को लुभाने की जी-तोड़ कोशिश की है। इससे कितनी सेंध लगी होगी, यह तो चुनाव परिणाम ही बतलायेगा। लेकिन, इतना तय है कि दल बदल की गिद्ध और ज़मीर-फ़रोश की संस्कृति का खात्मा  नहीं किया गया तो लोकतंत्र का वृक्ष जर्जर होता चला जायेगा और निरंकुश तंत्र देश पर राज करेगा।

(रामशरण जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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