आज से ठीक दो वर्ष पहले 7 फरवरी का दिन था वह। साल 2021। सुबह करीब साढ़े 10 बजे होंगे। जब चमोली जिले के रैणी गांव के सामने की पहाड़ी पर ऋषिगंगा के दाहिनी ओर पैदल पेंग गांव की तरफ जा रहे दो युवकों ने नन्दादेवी ग्लेशियर की ओर से आने वाली ऋषिगंगा के ऊपरी हिस्से से आ रही तेज आवाज सुनी, मानों कोई तूफान आ रहा हो।
नजर उठाकर देखा तो कुछ नजर नहीं आया, लेकिन शोर और तेज हो गया। कुछ ही देर बाद युवकों को धुएं का एक गुबार ऋषिगंगा से ऊपर पहाड़ों की तरफ उठता दिखा। युवकों ने अपने मोबाइल का वीडियो कैमरा ऑन कर दिया। कुछ ही देर में ऋषिगंगा से अथाह जल राशि प्रचंड वेग के साथ प्रलय मचाती आगे बढ़ती नजर आई।
पानी इतना की पहले कभी ऋषिगंगा में इतना पानी किसी ने नहीं देखा था। प्रचंड वेग से पानी रैणी की तरफ बढ़ रहा था, जहां ऋषिगंगा पर एक पावर हाउस बना हुआ था। युवकों का कैमरा कंपनी यानी पावर हाउस की तरफ घूमता है। उनके स्वर में पावर हाउस में काम करने वाले लोगों के लिए चिन्ता है। वे शोर मचाते हैं, सीटी बजाते हैं। देखते ही देखते प्रलयकारी जलधारा रैणी के पावर हाउस को समेट कर आगे बढ़ जाती है।
पावर हाउस में काम कर रहे कर्मचारियों को सुरक्षित बाहर निकलने का समय नहीं मिला। ठीक उसी वक्त रैणी में लोगों को कुछ अनहोनी का आभास होता है। गांव में शोर मचता है। कई कैमरे खुलते हैं। जलधारा रैणी के ठीक सामने धौली गंगा के किनारे की पहाड़ी से टकराती है। इसी दौरान रैणी में ऋषिगंगा पर बना पुल प्रचंड धारा के साथ बह जाता है। नदी के आसपास से गुजर रहे रैणी के कुछ लोग भी जलधारा में विलीन हो जाते हैं। अब ऋषिगंगा की प्रचंड धारा धौली के साथ मिलकर आगे बढ़ गई है।
कुछ मिनट के बाद रैणी से करीब 7 किमी नीचे तपोवन में भी लोगों को धौली गंगा से उठ रहा तूफानी शोर सुनाई देता है। हर हाथ में मोबाइल होने का एक फायदा यह हुआ कि कई कैमरे धौली की तरफ हैं। इनमें सबसे ज्यादा दिलदहलाने वाला एक वीडियो कुछ समय बाद सोशल मीडिया पर तैरता है। इसमें तपोवन में एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड परियोजना के डैम के एक पिलर पर 8-10 मजदूरों का एक झुंड दिखता है।
अचानक पानी बढ़ता है। मजदूर सुरक्षित निकलने के लिए भागते हैं, लेकिन कुछ ही पल में उफनती जलराशि में बह जाते हैं। वीडियो बनाने वालों के मुंह से आह निकलती है। इसी दौरान हजारों टन मलबा परियोजना की टनल में घुस जाता है और वहां 3 किमी दूर तक काम कर रहे करीब 150 मजदूर फंस जाते हैं। उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचता।

ऋषिगंगा में कितना पानी आया था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह पानी जब जोशीमठ के ठीक नीच मारवाड़ी के पास अलकनन्दा में पहुंचा तो वहां जल प्रवाह 41 क्यूमेक्स से बढ़कर 1670 क्यूमैक्स हो गया। कितने लोग मरे, पुख्ता जानकारी तो आजतक नहीं मिली। शुुरुआती दौर में 18 से 20 लोगों की मौत की आशंका जताई गई। धीरे-धीरे यह आंकड़ा 206 तक पहुंचा। 90 लोगों के शव मिले। 52 की पहचान मानव अंगों से हुई। बाकी का कभी पता नहीं चल पाया।
कई दिनों तक टनल के अंदर से रेस्क्यू अभियान चलाया गया, लेकिन कंपनी के इंजीनियर्स को भी नहीं मालूम था कि मजदूर टनल के अंदर किस हिस्से में कितनी दूर तक काम कर रहे हैं। कुछ दिन बाद सभी को मरा हुआ मानकर रेस्क्यू अभियान रोक दिया गया।
आज जो कुछ जोशीमठ में हो रहा है, 7 फरवरी, 2021 की घटना इसकी चेतावनी थी। वैज्ञानिकों ने बाद में इस घटना के कारणों की जांच की तो पता चला कि एक हैंगिंग ग्लेशियर टूट जाने के कारण आये मलबे से रूणथी गदेरे और ऋषिगंगा के संगम स्थल में झील बन गई थी। इस झील के टूट जाने से अचानक पानी पूरे वेग के साथ नीचे के तरफ बहा।
वैज्ञानिकों की माने तो उच्च हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं होना कोई नई बात नहीं है। यदि ऋषिगंगा और धौली गंगा पर जल विद्युत परियोजनाएं न होती तो कोई जनहानि नहीं होती या बहुत कम होती। इन परियोजनाओं के मलबे ने बाढ़ का आकार भी कई गुना बढ़ा दिया था। घटना के वक्त नदी के आसपास से गुजर रहे रैणी के दो या तीन लोगों को छोड़ दें तो मरने वाले बाकी सभी लोग जल विद्युत परियोजनाओं में काम कर रहे थे।
इस घटना से सबक लिया जा सकता था। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। कुछ ही समय बाद तपोवन में फिर से काम शुरू हो गया। यही तपोवन-विष्णुगाड परियोजना आज जोशीमठ की तबाही का कारण बन रही है। 7 फरवरी की जल प्रलय से धौली और फिर अलकनन्द के तटों पर बड़ा कटान हो गया था। जोशीमठ से मलारी की ओर जाने वाली सड़क कई जगहों पर धंस गई थी।
हालांकि इसका जोशीमठ पर तुरन्त असर नहीं देखा गया। लेकिन, जोशीमठ के ठीक नीचे से जा रही तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना की निर्माणाधीन टनल तपोवन से 3 किमी आगे तक मलबा भर जाने से बंद हो गई थी। निचले हिस्से में हुए कटाव और टनल का मुहाना बंद हो जाने के कारण जोशीमठ धीरे-धीरे धंसता रहा और करीब 8 महीने बाद अक्टूबर 2021 में पहली बार जोशीमठ में दरारें देखी गईं।
7 फरवरी की बाढ़ के बाद यह क्षेत्र कितनी बुरी तरह से प्रभावित हो गया था, यह बात 4 महीने में बाद जून 2021 में साफ हो गयी थी, जब मध्य जून में हुई बारिश से रैणी गांव का निचला हिस्सा ढह गया था और मलारी रोड का करीब 150 मीटर हिस्सा बह गया।

दुबारा सड़क बनाने के गांव के निचले हिस्से को काटा गया और वहां लगी चिपको नेता गौरादेवी की प्रतिमा को भी हटाना पड़ा। लेकिन इन घटनाओं पर सरकार और प्रशासन ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। स्थानीय लोग तब भी इन हलचलों को लेकर शासन-प्रशासन को आगाह करते रहे। लेकिन सरकारी अमला तब सक्रिय हुआ जब जोशीमठ पूरी तरह धंसने लगा।
सरकार और प्रशासन आम लोगों के जीवन को लेकर कितना बेपरवाह है, इसका सबसे बेहतर उदाहरण रैणी गांव है। 2021 की आपदा के बाद यह गांव असुरक्षित घोषित कर दिया गया। कुछ दिन तक रैणी को दूसरी जगह विस्थापित करने की खूब चर्चा हुई, जमीन भी तलाशी जाने लगी। लेकिन, अब दो साल बाद भी बात वहीं अटकी हुई है।
जोशीमठ के धंसाव के बाद जनचौक ने रैणी जाकर विस्थापन और पुनर्वास की स्थिति जानने का प्रयास किला। लेकिन वहां अब भी वही स्थिति है, जो जून 2021 में थी। रैणी के ग्राम प्रधान भवान सिंह राणा बताते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार इस मामले में गंभीर है। हम सिर्फ बारिश ही नहीं अब तो हर दिन डरे रहते हैं। 7 फरवरी ने हमें बताया है कि जल प्रलय बारिश का इंतजार नहीं करती, वह कभी भी आ सकती है।
(त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तराखंड में रहते हैं)
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