सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन का सारा श्रेय पीएम मोदी को दिए जाने का मेगा-अभियान शुरू

Estimated read time 2 min read

दारा सिंह भारत के नामी पहलवान थे, जिन्होंने कुश्ती के क्षेत्र में देश-दुनिया में काफी नाम कमाया था। उनके बेटे बिंदु दारा सिंह का एक वीडियो आज सुबह व्हाट्सअप पर मिला, जो भक्त चैनलों के जरिये करोड़ों आम भारतीय के पास सीधे जा रहा है। इससे पहले भी सेना के जनरल इत्यादि अपील कर चुके हैं और उनके दावे में कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में चारधाम परियोजना में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए पीएम मोदी ने दिन रात एक कर दिया।

41 मामूली मजदूरों के प्राणों की रक्षा के लिए देश के प्रधानमंत्री ने देश में मौजूद सभी संसाधनों का इस्तेमाल ही नहीं किया बल्कि अमेरिका से भी आधुनिकतम मशीन लाकर एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित कर दिया है, जिसकी मिसाल दुनिया में विरला ही संभव है। अब चूंकि पीएम मोदी के अथक परिश्रम के कारण ही यह चमत्कार संभव हो सका, इसलिए देश स्वाभाविक रूप से उनका ऋणी होना चाहिए। 

यह नैरेटिव आगे कितने करोड़ भारतीयों के दिलो-दिमाग में उतारा जा सकता है, यह कहना तो कठिन है, लेकिन पुणे से दिल्ली तक यह संदेश जब मेरे पास पहुंच सकता है, तो करोड़ों अन्य भारतीय तक अवश्य पहुंच गया होगा, या पहुंचने वाला होगा। 

2013 में आईपील क्रिकेट मैचों में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार बिंदु दारा सिंह आजकल सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों की रक्षा में प्रधानमंत्री के प्रयासों से इतना गदगद हैं कि उन्होंने तो बाकायदा यूट्यूब में एक वीडियो तक जारी कर 2024 लोकसभा चुनावों के लिए इसी आधार पर पीएम मोदी के पक्ष में अपील तक कर डाली है। बिगबॉस सीजन के विजेता बिंदु दारा सिंह की स्पॉट फिक्सिंग के तार रमेश व्यास से होते हुए सुनील दुबई और अनीस इब्राहिम तक जाते हुए देखे गये थे, जो असल में दाउद इब्राहिम का भाई था। 

आज उसी बिंदु दारा सिंह के वीडियो को करोड़ों मोदी भक्तों को चरणामृत की तरह व्हाट्सअप संदेश के माध्यम से लाखों ग्रुपों में बांटा जा रहा है, जिसे वे आगे फॉरवर्ड-फॉरवर्ड का गेम खेल रहे हैं।

बिंदु दारा सिंह का संदेश इस प्रकार से है, “आप हम जैसे मोदी भक्त हों या न हों, लेकिन एक बात तो आपको माननी पड़ेगी कि ये जो उत्तराखंड में रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ है, ऐसा कभी हिंदुस्तान में नहीं हुआ। 5 लोग पीएम के ऑफिस से दिन-रात वहां 15 दिनों से कंटेनर के अंदर रह रहे थे, और देख रहे थे कि सफलता प्राप्त हो। उत्तराखंड के सीएम धामी जी रोज 4-5 घंटे वहां पहुंचते थे। केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह और नितिन गडकरी जी सहित बहुत लोग वहां पहुंचे और सबने बड़ी बारीकी से इस रेस्क्यू ऑपरेशन की कामयाबी का परीक्षण किया।”

बिंदु दारा सिंह गिनाते हैं, “इस रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए हैदराबाद से एक स्पेशल एयर क्राफ्ट के माध्यम से आगर मशीन मंगाई गई। एक मशीन चेकोस्लोवाकिया से भी मंगाई गई थी। दुनिया के इस सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन के सबसे बड़े एक्सपर्ट को स्पेशल प्लेन से भारत में लाया गया। प्लाज्मा कटर के लिए जो मेहनत हुई है, पहले हैदराबाद से मंगाया गया फिर अमेरिका प्लेन भेजकर वहां से मंगाया गया। तो ये जो प्रयास उन 41 लोगों को बचाने के लिए किया गया यह मेहनत अतुलनीय है। इतनी मेहनत हमने तो कभी देखी नहीं। चार मशीनें रोबोट्स, ग्राउंड पेनेट्रेशन, राडार, पता नहीं क्या क्या किया नहीं किया गया। स्विट्ज़रलैंड से सामान मंगाया गया, बहुत सी चीजें हुई हैं। एक रनवे बनाया गया है छोटा सा। दुर्घटना स्थल पर वर्टिकल ड्रिलिंग, ऑक्सीजन, जनरेटर प्लांट क्या क्या नहीं हुआ। और उन 41 लोगों को बाहर निकाला गया।”

अपने संदेश के मूल मन्तव्य पर आते हुए बिंदु 2024 चुनावों में वोट की अपील करते सुने जा सकते हैं, “तो आपको अपना हाथ अपने दिल पर रखकर यह सोचना होगा कि अगर हमारा प्रधानमंत्री, मोदी जी ये सब रेस्क्यू ऑपरेशन में इतनी मेहनत नहीं करते, इतने सारे सौर्स नहीं जुटाते तो ये हिस्ट्री नहीं बन पाता। प्रार्थना है आप सभी से कि एकजुट हो जायें। 2024 के चुनाव में भारी बहुमत से इन्हें जितायें। लोग जो अपनी पार्टी है, आरएसएस है, लोग इसमें फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं। आप लोग प्लीज सवधान रहें, सारे लोग एकजुट हो जायें। कार्यकर्ता बताएं कि कौन सा उम्मीदवार बेस्ट है उनके एरिया के लिए। सीक्रेट वोटिंग हो कि टॉप 3 में से किसे सीट मिलनी चाहिए। भारी बहुमत से इस पार्टी को जिताना बहुत जरुरी है, भारत माता के लिए देशभक्तों के लिए।” 

सेवानिवृत्त मेजर जनरल के मुताबिक मोदी मंत्रिमंडल के लोग रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान 15 दिनों तक कंटेनर में रह रहे थे। 

असल में ये विचार बिंदु दारा सिंह के हैं ही नहीं, उन्होंने तो सिर्फ उधार का माल चेंपी लगाकर चेंप दिया है। सेवानिवृत्त मेजर जनरल हर्षा ककर ने एक्स (X) पर अपनी पोस्ट में बिंदु दारा सिंह द्वारा कही गई बातों को अपनी पोस्ट पर आज से तीन दिन पहले लिखा था, जिसे बिंदु को लगता है हिंदी में अनुवाद कर थमा दिया गया, ताकि हिंदीभाषी भक्तों को प्रभावी ढंग से पिलाया जा सके। 

जबकि असल बात तो यह है कि इस 12,000 करोड़ रुपये की परियोजना के मुख्य सूत्रधार स्वयं पीएम मोदी हैं, जिन्होंने पिछले 9 वर्षों में देश में कुछ किया हो या न किया हो, लेकिन देश भर में जहां-जहां भी प्रमुख हिंदू धर्म स्थल हैं, जहां से करोड़ों-करोड़ लोगों की आस्था जुड़ी हुई हैं, को देश में प्रमुख डेस्टिनेशन पॉइंट बना दिया है। अब कोई जाये या न जाये लेकिन हिंदू आस्था के लिए किसी ने पहली बार कुछ किया का भाव आम हिंदू के दिल में अवश्य आयेगा। 

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन धार्मिक स्थलों तक पहुंचने के लिए किसी आस्थावान श्रद्धालु को हिमालय में पहाड़ काटकर सड़क चौड़ीकरण या बारूद से पहाड़ों का सीना छलनी करने की हिम्मत हो सकती है? हिंदुओं के लिए ये तीर्थस्थल यदि बड़े महात्म्य का विषय हैं तो गंगा नदी तो साक्षात मां या उससे भी बढ़कर है, जो सदियों से इस देश को जीवन दे रही है।

गंगोत्री और यमुनोत्री को गंगा और यमुना उद्गम स्थल माना जाता है। अपने उद्गम स्थल से निकलकर ये जलधाराएं आगे चलकर सैकड़ों छोटी पहाड़ी नदी-नालों से जुड़कर ही एक विशाल नदी का स्वरुप धारण करती हैं। सिलक्यारा टनल के सामने भी इसी प्रकार की एक छोटी नदी बहती थी, जिसे सुरंग से निकलने वाले मलबे से पाट दिया गया। यही नहीं चारधाम परियोजना के निर्माण में सड़क के चौड़ीकरण के लिए निर्धारित 5.5 मीटर की सीमा को धता बताते हुए 10 मीटर करने का फैसला किस प्रकार लिया गया, यह सब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आज भी दर्ज है।

हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों के चौड़ीकरण को पहले ही पर्यावरणविदों, भूगर्भशास्त्रियों ने पूरी तरह से निषिद्ध बता रखा था। आज इस परियोजना के तहत पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, चमोली, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के दुर्गम इलाकों में चौड़ीकरण करने के लिए वर्टिकल कटिंग की गई है। पहाड़ों से आयेदिन मलबा अचानक से सड़क और नीचे ढलान की ओर गिरता है। सोशल मीडिया पर हाल के वर्षों में ऐसी सैकड़ों घटनाएं और लाइव वीडियो को साझा करते हुए लोगों को घटनास्थल से जान बचाकर भागते देखा जा सकता है। 

लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि सिलक्यारा-डंडारगांव टनल पर सेफ्टी ऑडिट का काम भले ही चले, लेकिन 12,000 करोड़ की महत्वाकांक्षी योजना होने के कारण सुरंग पर काम जारी रहेगा। दैनिक भाष्कर ने अपनी पड़ताल में बताया है कि टनल प्रोजेक्ट की डीपीआर और निर्माण कार्य में बड़ा अंतर है। 

प्रस्तावित 3 एस्केप रूट में से एक भी नहीं बनाई गई 

जून 2018 में सरकारी वेबसाइट infraconnic.in पर इस प्रोजेक्ट का आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) देखने पर पता चलता है कि इस टनल में बाहर निकलने के लिए 3 रास्ते बनाये जाने थे, लेकिन कंपनी ने अभी तक एक भी रास्ता नहीं बनाया था। वैसे भी अब तो सुरंग की खुदाई में सिर्फ आधे किमी से भी कम बचा था, इसलिए आरएफपी में दिए गये प्रावधान को पूरा करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।

निर्माणाधीन टनल के काम के निरीक्षण के लिए सरकार द्वारा कंसल्टेंट्स की नियुक्ति की जाती है। एनएचआईडीसीएल और एनएचएआई के अधिकारी होते हैं। इस मामले में तो स्वंय सुप्रीम कोर्ट इसकी निगरानी कर रहा था, लेकिन किसी ने भी इस महत्वपूर्ण खामी पर ध्यान क्यों नहीं दिया?  

दूसरा एनएचआईडीसीएल ने 10 कंस्ट्रक्शन कंपनियों में से इस 1383।78 करोड़ की परियोजना का ठेका नवयुग इंजीनियरिंग को ईपीसी मोड पर दिया था, जिसे 2022 के अंत तक हैण्डओवर करना था। नवयुग ने इस ठेके को तीन अन्य कंपनियों श्री साई कंस्ट्रक्शन, नव दुर्गा एवं पीबी चड्ढा को सब-कॉन्ट्रैक्ट कर दिया। हादसे के दौरान 41 मजदूर तो काम पर पाए गये, लेकिन एक भी इंजीनियर घटना के वक्त सुरंग के भीतर मौजूद नहीं पाया गया। यह बताता है कि टनल के भीतर जो भी काम चल रहा था, वह बिना किसी एसओपी का पालन किये हुए बेहद असुरक्षित और मनमाने ढंग से चल रहा था। इस हादसे को लेकर भी टनल निर्माण से जुड़े कई लोगों ने कमियां उजागर की हैं। 

ऐसे ढेर सारे सवाल हैं, जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस परियोजना की संकल्पना को लेकर कुछ लोगों की विशिष्ट महत्वाकांक्षा भारतीय राजनीति में अपने प्रभाव से पूरी तरह से जुड़ी हुई हैं। हिमालय बर्बाद होता है या गंगा और यमुना जैसी नदियों के साथ-साथ उत्तराखंड में केदारनाथ आपदा जैसे हादसे होते हैं, तो भले हों, लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था को बैलट बॉक्स में कैसे उतार लिया जाये, उसके लिए किसी भी हद तक जाना उचित रहेगा। इसी सोच के तहत 5.5 मीटर सड़क की क़ानूनी बाधा को सीमा पर सुरक्षा उपकरण और मिसाइल ले जाने का तर्क देकर सर्वोच्च न्यायालय का मुंह बंद कर दिया गया। पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के तहत 100 या इससे लंबी दूरी के सड़क निर्माण के लिए आवश्यक मंजूरी को धता बताने के लिए 890 किमी चारधाम परियोजना को 53 हिस्सों में बांटकर दिखा दिया गया, और एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय को पंगु बना दिया गया।

इस प्रकार सरकार ने ही सरकार द्वारा राजमार्गों के लिए तय मानकों की अनदेखी करने के लिए प्रोजेक्ट के मूल उद्येश्य और उसकी लंबाई को कई हिस्सों में बांटकर असल में कानून का ही तो मखौल उड़ाया। जब ये बातें एनएचआईडीसीएल सहित प्रोजेक्ट में शामिल सभी ठेकेदारों और यहां तक कि श्रमिकों तक पता होती हैं कि इस परियोजना के लिए किस-किस प्रकार से कानून को ठेंगा दिखाया गया है, क्योंकि यह किसी का ड्रीम प्रोजेक्ट है तो उनके लिए भी पर्यावरण, नदियों, पहाड़ों और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की परवाह करने की कोई जगह नहीं बचती है। 

क्या ये तथ्य दारा बिंदु सिंह या मेजर जनरल हर्षा ककर के ध्यान में नहीं आते हैं? क्या गारंटी है कि जिस सुरंग में तीन-तीन escape route का प्रावधान होने के बावजूद एक भी नहीं बनाया गया, उसकी खुदाई के लिये ब्लास्टिंग नहीं की गई? स्थानीय लोगों और कई नागरिक संगठनों ने तो इस बात की लिखित शिकायत 2019 में ही कर दी थी, कि रात होते ही ब्लास्टिंग की जाती थी, और स्थानीय नदी में मलबे को पाटकर उनकी आजीविका पर ही संकट खड़ा हो चुका है। ऐसे में कैसे ये लोग इस बात की गारंटी ले सकते हैं कि कल दोबारा से सुरंग में बड़ी दुर्घटना नहीं होगी, जबकि इस इलाके का भूगर्भीय सर्वेक्षण ही नहीं किया गया, क्योंकि ईआईए की जांच से बचाने के लिए ही तो इस परियोजना के 53 टुकड़े कर दिए गये थे?

रेस्क्यू ऑपरेशन के असली हीरो अब जीरो हो चुके हैं 

सबसे मजे की बात तो यह है कि जिस बात को भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया ने देखा कि जब आगर मशीनें, प्लाज्मा मशीन सहित विश्व के टनल इंजीनियरिंग और हादसों के विशेषज्ञ ऑस्ट्रेलियाई क्रिस कूपर और अर्नाल्ड डिक्स के पास जब हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में अचानक से मलबे में मशीन और सरियों के कारण आगर मशीन के ब्लेड टूटने की खबर मिली तो उनके भी पसीने छूट गये थे। अर्नाल्ड डिक्स ने तो यहां तक कह दिया था कि अब क्रिसमस तक ब्रेकथ्रू का इंतजार करें। जिस दिन अर्नाल्ड डिक्स को हम सभी लोग सुरंग के बाहर एक मेकशिफ्ट मंदिर के सामने लेटकर भगवान से इस ऑपरेशन में सफलता की कामना करते हुए देख रहे थे, उसी दौरान देश के 12 रेट होल माइनर्स गेंती, हैण्ड ड्रिल मशीन और गैस कटर के साथ पाइप के माध्यम से घुसकर बचे हुए 10 मीटर के फासले को खोदने और मलबे को तसले में बाहर निकाल आगे बढ़ने में जुटे हुए थे। 

करीब 650 एक्सपर्ट्स, जिसमें एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, एनएचएआई सहित सीमा सड़क, भारतीय सेना और राज्य एवं केंद्र सरकार के विशेषज्ञों का मजमा लग हुआ था, समाज के तलछट पर रहने वाले इन मजदूरों ने ही अपनी जुगाड़ तकनीक से यह चमत्कार संभव कर दिखाया था। लेकिन अब यह सारा श्रेय मोदी जी को दिया जाना है, क्योंकि उन्होंने तो सारी दुनियाभर से संसाधन जुटाकर ऑपरेशन को सफल बनाने में अपने मंत्रिमंडल को लगा रखा था। 

असल बात तो यह है कि इन 41 श्रमिकों की जान किसी तरह बच गई, इसलिए इन परियोजनाओं में की गई भयानक गलतियों और अपराधों पर कोई ऊंगली न उठाये, इसलिए इस ऑपरेशन को इतना बड़ा दिखा दो कि आम लोगों की बुद्धि घास चरने लगे। लाखों लोगों पर तो इसका असर भी होने लगा है। ड्राइंग रूम से पिछले 17 दिनों तक इस ऑपरेशन को देख रहे करोड़ों लोगों को तो अंत से मतलब है, उनकी बुद्धि में तो यही समझ आता है कि वन डे विश्व कप में भारत को आखिर में हार मिली, जो उन्हें सदमे की स्थिति में ले गया था। उन्होंने वहां भी इसका विश्लेषण नहीं किया कि भारत की जीत को 100% बनाने के लिए ही बीसीसीआई ने आईसीसी तक को एक ऐसी पिच पर फाइनल खिलाने के लिए राजी कर लिया था, जिस पर तेज गेंदबाजों के स्थान पर स्पिनर्स को मदद मिल सकती थी।

लेकिन संयोग देखिये भारत ने अपनी तेज गेंदबाजी की बदौलत ही फाइनल तक सफर तय किया था, लेकिन बीसीसीआई के दिमाग में ऑस्ट्रेलीयाई तेज गेंदबाजी का हौवा बना हुआ था। हमारे हुक्मरानों के लिए नरेंद्र मोदी स्टेडियम की यह हार इतनी भयावह थी कि वे सिलक्यारा टनल हादसे में रेस्क्यू ऑपरेशन की विशालता से इसे पाट देने के लिए बेकरार थे।

हालांकि ठीक-ठीक वैसा नहीं हो पाया, और अंत में मजबूर होकर ऐसे लोगों को इस ऑपरेशन में उतारना पड़ा जो तकनीक के मामले में जीरो थे। उनके पास था तो सिर्फ अपनी भूख से लड़ने के लिए हर घंटे पहाड़ के भीतर सुरंग खोदने कि लगन। और चूंकि इस ऑपरेशन में तो उन्हें अनुरोध कर बुलाया गया था, और इसमें उनके जैसे ही 41 मजदूर भाई पिछले 15 दिनों से फंसे हुए थे, उनके लिए यह अभियान उनके निजी अस्तित्व का सवाल बन गया था। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author