वे वायदे जो नेहरू ने किये थे, जिसने भारत की प्रगति को रूप दिया

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भारतीय जनता पार्टी, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हुए नहीं थकते हैं कि पिछले 75 सालों में देश में कुछ भी नहीं हुआ है। देश के सबसे बड़े महत्वपूर्ण अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इण्डिया ने अपने 15 अगस्त के अंक में यह बताने का प्रयास किया है कि देश में अनेक क्षेत्रों ने कितनी प्रगति की है।

अखबार लिखता है कि हम उन लोगों को सलाम करते हैं जिन्होंने अपने घनघोर परिश्रम और प्रतिबद्धता से ऐसे काम किए हैं जिससे देश का सिर ऊंचा है। यद्यपि यह स्वीकार किया जाता है कि अभी भी बहुत कुछ करना है। परंतु जो कुछ भी किया गया है या हुआ है वह कम नहीं है।

सबसे पहले सिंचाई का क्षेत्र लें। हमने 1948 में भाखड़ा नंगल बांध का कार्य प्रारंभ किया था, जो 1963 में बनकर तैयार हो गया। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस बांध के बनने से अत्यधिक प्रफुल्लित थे। उन्होंने इस बांध को विकसित भारत का मंदिर बताया था। इस बांध के बनने से 9 बिलियन पानी उपलब्ध होता है। इस बांध के द्वारा की गई सिंचाई ने देश की तस्वीर बदली और अनाज के मामलों में हमें निर्भरता दी।

फिर बना इंदिरा गांधी केनल। इसके बनने में 50 साल लगे। राजस्थान के भूखे रेगिस्तान को पानी दिया और इससे 16 लाख एकड़ ज़मीन को सिंचाई की सुविधा प्राप्त हुई। इसने भी देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भरता दी। एक समय ऐसा था जब अमरीका की ओर से यह कहा जाता था कि भारतवासी तीन रोटी खाते हैं तो उसमें से एक रोटी उनके द्वारा लिए गए गेहूं से बनी होती है। इन बांधों के बनने के बाद अमरीका की तरफ से ऐसा दावा करना बंद हो गया।

फिर शिक्षा के क्षेत्र को लें। 1956 में खड़गपुर आईआईटी में भाषण देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि यह जो शिक्षा का केन्द्र है वह हमारे देश के सुखद उन्नतशील भारत का दरवाजा खोलता है। यह भारत का पहला आईआईटी था, जिसकी स्थापना 1950 में हो गई थी। इसी तरह की संस्थान एक ऐसी कमेटी की सिफारिश पर स्थापित किए गए जो Massachusetts Institute of Technology के समान होंगी। इसके बाद 1958 में बंबई में, 1959 में मद्रास में, 1959 में कानपुर में और 1961 में दिल्ली में IITs (Indian Institute of Technology) स्थापित किए गए। आज इस तरह के संस्थानों की संख्या 23 है। इन संस्थानों से प्रशिक्षित होकर ऐसे लोग निकले जो न सिर्फ भारत की तकनीकी प्रगति में मदद कर रहे हैं बल्कि अमरीका समेत बाहरी देशों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

भारत के आज़ाद होने के बाद योजना आयोग ने यह महसूस किया कि हमारे देश में जो बड़े-बड़े उद्योग और कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित हो रहे हैं उनके संचालन के लिए योग्य व्यक्तियों की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को दूर करने के लिए आईआईएमएस स्थापित किए गए। 1959 में यूसीएलए प्रोफेसर को सलाह देने के लिए आमंत्रित किया गया। उनसे यह जानकारी ली गई कि योग्य मैनेजर प्रशिक्षित करने के लिए कैसे संस्थान स्थापित किए जाएं। उनकी सिफारिश पर 1961 में कलकत्ता में पहला संस्थान स्थापित किया गया। उसके बाद इसी तरह के संस्थानों की स्थापना अहमदाबाद और बैंगलोर में हुई।

इस समय हमारे देश में 21 ऐसे संस्थान हैं जो योग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षित करके बड़े-बड़े संस्थानों को संचालित करने के लिए आवश्यक प्रतिभावान व्यक्ति दे रहे हैं। इस तरह के संस्थानों की स्थापना भी नेहरू जी के जीवनकाल में हो गई थी। न सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र में बल्कि निजी क्षेत्र में भी इस तरह के संस्थान बनने लगे थे। राजस्थान के पिलानी में इसी तरह के संस्थान की स्थापना हुई, जिसका आज के जमाने में भी बहुत उच्च स्थान है। इस संस्था की स्थापना में प्रसिद्ध उद्योगपति जीडी घनश्यामदास बिड़ला की भूमिका रही। इसी तरह के कैम्पस गोवा, हैदराबाद और यहां तक कि दुबई में स्थापित करने में सहायता दी।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बड़े-बड़े संस्थानों की स्थापना हुई। इस तरह का पहला संस्थान कलकत्ता में बनाने का प्रस्ताव आया। परंतु वहां के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने कहा कि हमें इस तरह के संस्थान की आवश्यकता नहीं है हम स्वयं आत्मनिर्भर हैं। परंतु नेहरू जी के मंत्रीपरिषद में सदस्य राजकुमारी अमृत कौर जो स्वास्थ्य मंत्री थीं ने प्रस्ताव किया कि दिल्ली में पहला ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट स्थापित किया जाए। इस समय यह देश के सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएँ देने वाले संस्थान के रूप में जाना जाता है।

फिल्म के क्षेत्र में भी हमारे देश में अद्भुत काम हुआ है। पूना में फिल्म क्षेत्र में प्रतिभा प्रदान करने के लिए एक संस्थान खोला गया। इस संस्थान में स्मिता पाटिल, नसरूद्दीन शाह, शाबाना आज़मी जैसे अभिनेता और श्याम बेनेगल, मिनाल सेन, अडूर गोपाल कृष्णन और सत्यजीत रे, रिटविट घटक और डेविड लीन जैसे निदेशक दिये। देश में बड़े-बड़े भवनों की आवश्यकता महसूस हुई। इन भवनों की डिज़ाइन कौन बनाये? इस तरह की प्रतिभा का प्रशिक्षण देने के लिए नेहरू जी के जमाने में अहमदाबाद में एक संस्थान की स्थापना की गई। फिल्म के क्षेत्र में भी हमारे देश में अद्भुत फिल्में बनाई गईं। इनमें दो बीघा जमीन, पाथेर पंचाली, शोले, अर्धसत्य, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, बाहुबली, आदि शामिल हैं।

भारतवर्ष में अनेक क्षेत्रों में अद्भुत करिश्मा दिखाने वाले व्यक्तियों में एक थीं मदरटेरेसा। वो पैदा तो विदेश में हुईं थीं परंतु वे 1929 में एक वर्ष आयरलैंड में बिताने के बाद भारत पहुंचीं। उन्होंने शुरू में कुछ समय दार्जलिंग में बिताया। उसके बाद वे कलकत्ता में आकर बस गईं और एक स्कूल में पढ़ाने लगीं। एक बार वे कलकत्ता से दार्जलिंग जा रही थीं तो उनकी आत्मा ने उनसे आह्वान किया और कहा कि तुम्हारी आवश्यकता देश के गरीबों की सेवा करने के लिए है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरेटी की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन गरीब, बीमार, ऐसे बीमार लोग जो मौत की तरफ बढ़ रहे थे, उनकी सेवा की। उनकी सेवा को सारी दुनिया ने मान्यता दी और फिर उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। यह सबकुछ उन्हें उस समय प्राप्त हुआ जब वे कलकत्ता में रहती थीं।

एक और महान प्रतिभावान व्यक्ति हैं अमृत्य सेन। जिन्होंने गरीबों के लिए विभिन्न आर्थिक सिद्धान्त बनाए। उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग गरीब से गरीब व्यक्ति की समस्याओं को हल करने में किया। उन्होंने आर्थिक सिद्धांतों के क्षेत्र में और गरीबों के हित में जो काम किया उसके लिए उन्हें भी नोबेल पुरस्कार दिया गया।

एक अन्य प्रतिभावान व्यक्ति हैं कैलाश सत्यार्थी, जिन्होंने ऐसे बच्चों के लिए काम किया जो उस समय शोषण का शिकार हो जाते हैं जब उन्हें स्कूल में रहना चाहिए। इस संबंध में जानकारी इकट्ठा करने के लिए उन्होंने 103 देशों की यात्रा की और इन देशों की यात्रा के दौरान ऐसे बच्चों के उद्धार के लिए कानून बनाने का आह्वान किया जो शोषण के शिकार होते हैं। उनके प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संस्थान को प्रेरित किया कि वह ऐसा कानून बनवाये जिससे बच्चों के शोषण का अंत हो सके। उन्हें भी उनके इस कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी तरह के एक और भारतीय हैं अभिजीत बेनर्जी। गरीबों के उन्मूलन के लिए उन्होंने जो काम किया उसके लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया।

एक चौंकाने वाला करिश्मा और हुआ। उसे हरित क्रांति के रूप में जाना जाता है। देश में समय-समय पर अकाल पड़ते रहे। इन अकालों का सामना करने के लिए और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए महान कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने सरकार को सुझाव दिया कि यदि हम अमरीकी वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोज को अपनाते हैं तो हमारे देश में अनाज की कमी दूर हो सकती है।

सरकार ने स्वामीनाथन का सुझाव माना और उस सुझाव पर अमल करने पर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश में फसलों में जबरदस्त इजाफा हुआ। देश में सिंचाई की सुविधाएँ चारों तरफ बढ़ने लगीं। खादों का उपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा। कीटनाशक दवाईयों का उपयोग भी होने लगा। 1970 के आते-आते अकेला पंजाब, देश में उगने वाली फसलों का 70 प्रतिशत अनाज पैदा करने लगा। पंजाब फिर भारत का अनाज का कटोरा कहलाने लगा।

गुजरात में एक प्रायवेट डेयरी कंपनी किसानों से सस्ते भाव में दूध खरीदकर लूट रही थी और किसानों से सस्ते भाव में दूध खरीदकर बंबई में बेचती थी। ऐसे मौके पर 1948 में एक युवा वैज्ञानिक वर्गीस कूरियन आनंद पहुंचे। वे वहां पर एक डेयरी में काम करने लगे। इसी दरम्यान वल्लभभाई पटेल ने एक बड़ा सहकारी आंदोलन चालू किया। इस आंदोलन के माध्यम से उन्होंने किसानों को एक किया।

इस आंदोलन से कूरियन भी जुड़ गये। दो शताब्दी के भीतर सफेद क्रांति ने रूप ले लिया। फिर उत्पन्न हुआ अमूल का आंदोलन। अमूल ने भारतवर्ष को, जो दूध की कमी से पीढ़ित रहता था, विश्व का एक बड़ा दूध उत्पादन करने वाला देश बनाया। हमने इतना दूध पैदा करना प्रारंभ कर दिया कि हम इस मामले में अमरीका से भी आगे बढ़ गये और इस समय हम दुनिया में जितना दूध उत्पन्न होता है उसका 25 प्रतिशत पैदा करते हैं और इस समय अमूल देश के 700 शहरों में फैला हुआ है। इतनी प्रगति के बावजूद यह कहा जाता है कि पिछले 70 सालों में हमारे देश में कुछ नहीं हुआ।

फिर हमने बड़े-बड़े साहित्यकारों और लेखकों को भी पैदा किया। उनमें शामिल हैं विक्रम सेठ, अमिताभ घोष, अरूनधिती राय, किरण देसाई, ये सब अंग्रेजी भाषा में और उसके अलावा अनेक भाषाओं में साहित्यकार हुए जिनमें आज़ादी के पहले भी और आज़ादी के बाद के साहित्यकार भी शामिल हैं जिनमें प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, फैज एहमद फैज, आदि।

इस प्रगति के बहुसंख्यक रूप नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान बन चुके थे। इसके अतिरिक्त हमने पूरी तरह से अशिक्षित मतदाता होते हुए भी चुनाव कराया। एक महान संसद बनाया। जब हमारे देश के आसपास के राष्ट्रों में प्रजातंत्र का सूरज अस्त होता रहा उस समय हमने प्रजातंत्र को पूरी तरह से फलने-फूलने दिया।

न्यायपालिका के क्षेत्र में भी हमने अद्भुत प्रगति की है। लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका ने निर्णायक भूमिका अदा की है। यद्यपि थोड़े समय के लिए आपातकाल के कारण हमारे देश में प्रजातंत्र लड़खड़ा गया था। परंतु गलती महसूस हुई और प्रजातंत्र फिर अपने पैरों पर खड़ा हो गया।

यद्यपि 1947 से आज तक हमने अनेक क्षेत्रों में अद्भुत प्रगति की है। परंतु अभी भी मंजिल बहुत दूर है। जैसा पंडित जी कहते थे कि ‘‘माईल्स टू गो बिफोर आई स्लीप’’ (मीलों चलना है चिर निद्रा से पहले)। इसलिए टाईम्स ऑफ इण्डिया भी लिखता है कि हमें अभी मीलों चलना है और हमने जो वादें किए हैं उन्हें पूरा करना है। हमारे देश में प्रतिदिन इस तरह के हीरो पैदा हो रहे हैं जो देश को प्रगति के रास्ते में बिना किसी शोर-शराबे के आगे बढ़ा रहे हैं। टाईम्स ऑफ इण्डिया लिखता है कि अगले कुछ दिनों में इस तरह के हीरोज़ की जीवन्त कहानियां आपको पढ़ने को मिलेंगी। इस तरह के हीरोज़ की कहानियां हमें लगातार आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे नेहरू जी ने कहा था कि हमने नियति से यह वादा किया था कि हम भारत की चौमुखी प्रगति करेंगे। नेहरू जी ने अपने इस वादे के अनुसार उस प्रगति के लिए जो भी आवश्यक था-शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, खेती, सिंचाई, न्यायपालिका, सांसद, लोकतंत्र के विभिन्न आयाम उन सबके लिए एक इन्फ्रास्ट्रक्चर की नींव डाली थी।

आज यदि कुछ लोग नेहरू जी और उनके सहयोगियों के योगदान को याद नहीं करते हैं तो यह दुख की बात है। अमरीकी राष्ट्र को बनाने और अमरीकी राष्ट्र को लोकतंत्र प्रदान करने में वाशिंगटन की बड़ी भूमिका थी। अमरीकी राष्ट्र वांशिगटन को सदियों तक याद रहे। इस इरादे से देश की राजधानी का नाम ही वाशिंगटन रखा गया। इससे ज्यादा अपने नेताओं का ऋण चुकाने का और कौनसा तरीका हो सकता है? हमको भी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहिए।

(एल.एस. हरदेनिया राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक हैं)

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