ग्राउंड रिपोर्ट: केजरीवाल के राज में टोकन मिलता है राशन नहीं

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नई दिल्ली। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के ट्विटर हैंडल पर जाएंगे तो आपको बहुत बड़े बड़े दावे मिल जाएंगे कि यहां ये किया वहां वो किया। लेकिन ट्विटर दिल्ली की असल दुनिया नहीं है। दिल्ली की असल दुनिया ट्विटर की दुनिया के उलट सड़कों, गलियों, मुहल्लों व नगरों में है। मैं अवधू आजाद आपको लॉकडाउन में दिल्ली की उन गलियों में ले चलता हूँ जहाँ टोकन मिलता है राशन नहीं, लाइन में 4 घंटे इंतजार के बाद बारी आने से पहले खाने के पैकेट खत्म हो जाते हैं।

छपरा बिहार के विजय पाल उधम सिंह पार्क ए ब्लॉक, वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र, दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने राशन के लिए ऑनलाइन अप्लीकेशन फॉर्म भरा था। मेसेज आया टोकन नंबर मिला था। शनिवार 16 मई को एमसीडी प्राइमरी स्कूल गए लाइन में लगे। विजय पाल बताते हैं कि वहां रात से ही लाइन लगाए खड़े थे लोग जबकि मैं सुबह 5 बजे गया तो मेरा नंबर सबसे पीछे था कुल 401 लोग थे। लेकिन सिर्फ़ 50-55 लोगों को राशन मिला बाकी लोगों को वापस भेज दिया बोला अगले महीने की 2 तारीख के बाद आना अब। बता दें कि राशन में 5 किलो चावल 15 किलो गेहूँ दिया जा रहा है एक राशनकार्ड पर। 

बता दें कि जिनका राशनकार्ड से आधार कार्ड लिंक है उन्हीं को मिल रहा है। जिनका आधारकार्ड से लिंकअप नहीं है। ऐसे 3 लाख के करीब राशनकार्ड कैंसल कर दिए गए हैं।  

 केंद्र सरकार ने कोरोना काल में 3 करोड़ राशनकार्ड कैंसिल किए

बता दें कि 8 मई 2020 को केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अपने ट्विटर हैंडल से 3 करोड़ रासन कार्डों को फर्जी बताकर कैंसिल करने की जानकारी साझा की थी। राशन-कार्ड और आधार कार्ड लिंकेज को ज़रूरी बताकर 3 करोड़ राशनकार्डों को कैंसिल कर दिया गया जो आधार कार्ड से लिंकेज नहीं थे। सरकार की इस हरकत से करोड़ों गरीब परिवार राशन के अधिकार से वंचित हो गए हैं। 

स्कूलों में 3-4 घंटे कड़ी धूप में इंतजार करने के बाद खाना मिलने से पहले ही खत्म हो जाए तो सोचिए कैसा लगेगा

दयाशंकर सिंह एमसीडी के स्कूल में खाने का हाल बताते हैं। वो कहते हैं मैं गया था लाइन में हजार लोग सुबह से लगे हुए थे खाने के लिए। खाना मिलने का समय 11 बजे से लिखा था लेकिन बँटता 12 बजे के बाद ही था। आधे लोगों को ही खाना मिला था कि खाना खत्म हो गया। उस दिन 400-500 लोग तपती दोपहरी में 3-4 घंटे लाइन में खड़े होने के बावजूद भूखे पेट लौटे थे उनमें मैं भी था। सोचिए कि 3-4 घंटे चटकती दोपहरी में लाइन में लगकर खाने का इंतजार करो और आपका नंबर आने से पहले खाना खत्म हो जाए तो कैसा लगेगा।

राम बोध निषाद बताते हैं शुरुआत में मिंटो रोड स्थित स्कूल में कुछ सप्ताह खिचड़ी मिली थी लगातार। लेकिन अब नहीं बांटते।  

दिल्ली सरकार राशन खाना देती तो हमारे जैसे लोग सड़कों पर न होते 

राम कुमारी और फूला लकड़ी काटती मिल गईं पत्रकार कॉलोनी में। ये लोग महोबा से दिल्ली रोटी कमाने आए थे। लेकिन लॉकडाउन में रोटी के लाले पड़ गए हैं। ये लोग जहां रहते हैं वहां न तो सरकार के स्कूलों से खाना मिलता है ना राशन। कुछ समाजसेवी लोग राशन मुहैया करवाए थे। ईंधन का जुगाड़ नहीं हो पाया तो आस पास के सूखे पेड़ों से लकड़ियां काटकर ईंधन का काम चल रहा है। 

हिमांशु पाहुजा एवं हरसिमरन सिंह मधोक 

हिमांशु पाहुजा निगम पार्षद चुनाव लड़ चुके हैं ये जनक पूरी B ब्लॉक मे रहते है़ं ये दोनों अपनी गाड़ी मे समान लेकर घूम घूमकर राह चलते गरीब परेशान लोगों क़ो आटा 10 किलो, चावल 5 किलो, 2 किलो दाल, 1 लीटर तेल बांटते रहते ये इनका रोज का काम। ये लोग मुझे पशुओं को चारा मकई का दाना डालते हुये दिख जाते हैं। नेता सुभाष चंद्र प्लेस वजीर पुर डिपो की तरफ मिले हिमांशु फोटो खींचने के लिये मना कर रहे थे, हरसिमरन जी बोले भाई जी हम फोटो खिंचाने के लिये ये काम नहीं कर रहे हैं।

हिमांशु पाहुजा और हरसिमरन सिंह मधोक

पूरी पश्चिमी दिल्ली में इनका ये रोज का काम है़। इसी तरह रास्ते में और यंग सरदार लड़के मिले वो लोग भी झुग्गी के लोगों क़ो राहत सामग्री दे रहे थे पर बात करने के नाम सिर्फ इतना ही बोलते कि हमारे देश के लोग दिक्कत में है़ं हमारे पास है तो आपस में दुःख बांटने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जहाँ आरएसएस की एक संस्था ‘ सेवा भारती है जो मदद के नाम पर सिर्फ डाटा एकत्र करने का काम करती है मदद कुछ नहीं दूसरी तरफ़ इस तरह के लोग हैं जो अपना नाम भी ज़ाहिर नहीं करना चाहते हैं।

दिल्ली सरकार से उम्मीद नहीं, अब मदद के लिए कांग्रेस दफ्तर जा रहे मजदूर 

रामनगर, अंबेडकर नगर निवासी राम बोध निषाद दिल्ली शिवाजी पार्क में रहते हैं। अभिमन्यु गोरखपुर सहजनवा के हैं। सुनील, वीरेंद्र फतेहपुर निवासी हैं। चारों लोग साथ रहते हैं। कारपेंटर का काम करते हैं। राम बोध निषाद बताते हैं कि हमें किसी ने बताया था कि कांग्रेस वाले रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं वो बस में लोगों को उनके घर तक छोड़ भी रहे हैं इसीलिए हम लोग कांग्रेस दफ्तर जा रहे थे। 

बहादुर भाई, राजन और विजय दोहरा, अशोक, समेत सैंकड़ों मजदूर आईटीओ पर खड़े मिले। इनके साथ दर्जनों स्त्रियां भी हैं। ये लोग नोएडा में सोसायटी के अंदर हाउस कीपिंग का काम करते थे। नोएडा सेक्टर 37 में। अब वो पैदल ही कोलकाता पश्चिम बंगाल जा रहे हैं। बता रहे हैं निजी बस साढ़े 4 हजार रुपए मांग रही है पैसे नहीं है पैदल जाऊंगा। आईटीओ पुल पर खड़े इन लोगों को दिल्ली पुलिस बॉर्डर छोड़ने के नाम पर बस में बैठायी और कश्मीरी गेट बस अड्डे होते हुए कमला नगर थाने ले गयी। कई मजदूर बस से कूदकर ही भाग गए। बाकी बस के साथ थाने गए।

(जनचौक संवाददाता अवधू आजाद की रिपोर्ट।)

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