बनारस में पीएम की सभा हो सकती है, लेकिन बीएचयू छात्रावास खोलने में कोरोना का खौफ!

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काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हॉस्टल, लाइब्रेरी समेत पूरी यूनिवर्सिटी खोलने की मांग को लेकर बीएचयू प्रशासन और छात्रों के बीच रार बढ़ती जा रही है। दो दिनों से हॉस्टल में धरना देने के बाद जब छात्रों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो बिड़ला हॉस्टल, राजाराम हॉस्टल, आचार्य नरेंद्र देव और मुना देवी हॉस्टल में रहने वाले छात्र कुलपति आवास के सामने धरने पर बैठ गए। इस दौरान छात्रों ने बीएचयू प्रशासन के विरोध में नारेबाजी की और कहा कि जब यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को खोलने के आदेश जारी कर दिए हैं, तब बीएचयू के हॉस्टल और लाइब्रेरी क्यों नहीं खोली जा रही है? छात्रों ने बीएचयू प्रशासन पर छात्र हितों की अनदेखी का आरोप लगाया है।

छात्रों के बढ़ते विरोध को देखते हुए कुलपति आवास पर कुलपति ने हॉस्टल वार्डन और चीफ प्रॉक्टर के साथ बैठक की, लेकिन बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। वहीं छात्रों का आरोप है कि बीएचयू प्रशासन की तरफ़ से बार-बार कमेटी और मीटिंग का हवाला दिया जा रहा है। प्रशासन के इस खानापूरी और असंवेदनशील रवैये से छात्र गुस्से में हैं।

छात्रों का कहना है कि हमारा भविष्य खतरे में है। आठ महीने से हमारी पढ़ाई-लिखाई चौपट हो चुकी है, लेकिन प्रशासन और कुलपति अपनी ज़िद पर अड़े हैं। जब छात्र-छात्राएं ख़ुद जिम्मेदारी लेकर पढ़ाई-लिखाई करना चाहते हैं, तब क्यों उनको पढ़ने नहीं दिया जा रहा हैं? आठ महीने से हॉस्टल बंद होने के कारण चूहों ने उनकी किताबों को नष्ट कर दिया है। छात्रों का कहना है कि अब हम अपना भविष्य और ख़राब होने नहीं देंगे, अब या तो यूनिवर्सिटी खुलेगी या हम सब कुलपति आवास के बाहर ही बैठेंगे। छात्रों ने रात को धरना जारी रखा है, छात्रों ने ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा लिया और वहीं पर पढ़ाई-लिखाई भी शुरू कर दी है।

यूजीसी ने एक माह पूर्व ही सभी विश्वविद्यालयों को क्रमशः खोलने के लिए गाइड लाइन जारी की है, लेकिन बीएचयू प्रशासन पर इस निर्देश का कोई असर नहीं हुआ है।

दर्शन शास्त्र के पीएचडी छात्र अनुपम कुमार बताते हैं कि विश्वविद्यालय और उसके हॉस्टल के आठ महीने से बंद होने के कारण अपनी पढ़ाई-लिखाई की चिंता को लेकर छात्र-छात्राएं कई बार कुलपति से मिल चुके हैं, लेकिन प्रशासन ने हमेशा ही असंवेदनशील रवैया दिखाया है। प्रशासन के इसी गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये से तंग आकर छात्रों ने 3 दिसंबर को अपने—अपने हॉस्टल के रूम के ताले को तोड़ दिया और रहने लगे।

छात्रों द्वारा इस तरह के कदम उठाने के पीछे की समस्याओं को जानने-समझने की बजाय उनको नोटिस दिया जा रहा है। उनको विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से धमकी भरे लहजे में कहा जा रहा है कि आपका हॉस्टल आवंटन क्यों न निरस्त किया जाए। अपने विश्विद्यालय के छात्रों के साथ इस तरह का व्यवहार कितना असंवेदनशील और तानाशाही पूर्ण है, यह इस बात का गवाह है। छात्रों का कहना है कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है, उन्होंने वही किया है जो उन्हें क्लास में पढ़ाया गया है। हॉस्टल खुलवाने वाले इस मुहिम में छात्रों ने शिक्षकों से भी अपील की है वो इनके समर्थन में खड़े हों।

उधर, प्रशासन एक ही बात दुहरा रहा है और कोरोना का डर बता कर हर मांग को टाल रहा है, जबकि इसी कैंपस के अंदर हज़ार की संख्या में प्रोफेसर, कर्मचारी और छात्र रह रहे हैं। मंदिर परिसर खुला है, अस्पताल खुले हैं, ऑफिस खुला है और तो और 30 नवंबर को इसी कैंपस के नज़दीक अस्सी घाट पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा हुई, जिसमें हज़ारों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हुई। इससे साफ जाहिर होता है कि बनारस संक्रमित क्षेत्रों में नहीं है, लेकिन फिर भी बीएचयू क्यों बंद है? यह सवाल सभी के मन में उठ रहे हैं। आख़िर यूनिवर्सिटी को बंद होने से किसका फायदा है?

बीएचयू का शुमार एशिया के बड़े विश्वविद्यालयों में होता है। इसके अंदर कुल 14 संकाय 140 विभाग और 75 छात्रावास हैं, जिसमें 30 हज़ार से ऊपर छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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