देश होने की एकमात्र शर्त है कि देश के भीतर आपस में युद्ध न हो

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आज के नक्सली मर जाएंगे।
आज के पुलिस वाले भी मर जाएंगे।
लेकिन फिर से नए लोग नक्सली बनेंगे।
फिर से नए गरीब पुलिस वाले बनेंगे।
और यह लड़ाई चलती रहेगी।

इसलिए इस लड़ाई को समझो।
और इसमें अपनी भूमिका को पहचानो।
इसमें आज ही हस्तक्षेप करो।
नहीं तो इससे तुम्हारे बच्चों को निपटना पड़ेगा।

आज के गरीब मर जाएंगे।
अमीर भी मर जाएंगे।
आज जो भ्रष्ट नेता हैं, वे भी मर जाएंगे।
परंतु मनुष्य को जन्म से ही अमीर, गरीब और भ्रष्ट बना देने वाली क्रूर व्यवस्था बची रहेगी।
इसलिए सारी कोशिश इस व्यवस्था को बदलने की होनी चाहिए।

दूसरे की ज़मीन, पानी, जंगल और मेहनत बंदूक के दम पर छीन कर विकास करना ही हमें आता है।
यह विकास लगातार हिंसा पैदा करता है।
इस विकास को टिकाए रखने के लिए हमें बहुत हिंसा की ज़रूरत पड़ती है।

और जब हमारे द्वारा पैदा की गई हिंसा हम पर पलटवार करती है,
तो हम शरीफ बनकर धर्म, नैतिकता, लोकतंत्र जैसे खोखले हो चुके शब्दों की आड़ लेने की असफल कोशिश करते हैं।
हमारा यह ढोंग ज्यादा दिन चलेगा नहीं।

तुम्हारा आर्थिक विकास हुआ।
तुम्हारे पास रुपया बढ़ गया।
बैंक का आंकड़ा बढ़ा।

पर उससे खेत में न गेहूं बढ़ा,
न गाय के थनों में दूध बढ़ा,
न तालाब में मछली बढ़ी।

इसलिए रुपया बढ़ने से बस यह होगा कि जिसके पास रुपया नहीं बढ़ा,
उसके हिस्से का गेहूं, दूध और मछली तुम्हारे पास आ जाएगी।

शहरी मध्यम वर्ग, जो सरकार या पूंजीपति की सेवा कर रहा है,
वह आदिवासियों और ग्रामीणों के संसाधनों को लूटने के लिए सिपाहियों के इस्तेमाल के पक्ष में तत्पर खड़ा है।

लेकिन एक राष्ट्र होने की शर्त क्या है?
एक झंडा, एक सरकार, या एक सीमा हमें राष्ट्र नहीं बनाते।
देश होने की एकमात्र शर्त है कि देश के भीतर आपस में युद्ध न हो।

लेकिन अगर देश के अमीर लोग गरीबों, आदिवासियों और गांव वालों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के लिए पुलिस की बंदूकें इस्तेमाल करते हैं,
तो समझ लीजिए कि देश गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है।
क्योंकि जिनके विरुद्ध यह युद्ध छेड़ा जा रहा है, वे इस देश के नब्बे प्रतिशत लोग हैं।

विकास का यह मॉडल देश को गृहयुद्ध की ओर ले जाएगा।

(हिमांशु कुमार गांधीवादी कार्यकर्ता हैं।)

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