छत्तीसगढ़: बघेल सरकार के खिलाफ बस्तर के आदिवासियों ने खोला मोर्चा

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बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षा बलों के बढ़ते कैम्प, मानवाधिकार हनन, पुलिस और राज्य सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ आदिवासियों ने मोर्चा खोल दिया है। बस्तर के अंचल क्षेत्र के गीदम में 6 और 7 फरवरी को आयोजित 113वें भूमकाल दिवस के दौरान आदिवासियों ने अपनी आवाज बुलंद की।

भूमकाल दिवस में बस्तर अंचल के हजारों आदिवासी शामिल हुए। जिसमें उन्होंने बस्तर में ड्रोन कैमरे से महिलाओं के आपत्तिजनक वीडियो बनाने और बस्तर में चल रहे आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओ का मोबाइल ट्रेस करने का भी आरोप लगाया है।

जन संगठनों और आदिवसियों ने आरोप लगाया है कि बस्तर सहित पुरे आदिवासी क्षेत्रों में निरंतर मानव अधिकारों का हनन, संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन, निर्दोष लोगों की हत्यायें, महिलाओं पर अत्याचार और पुलिसिया दमन जारी है।

आदिवासी आज भी ब्रिटिश काल की गुलामी से कम यातनाए नहीं झेल रहे है। आजादी के 75 वर्ष के बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, और पानी जैसी बुनियादि सुविघधाओं से आदिवासी क्षेत्र महरूम हैं। 

जन संगठनों ने प्रशासन के सामने 10 बिन्दुओं में अपनी मांग रखी है।

पहले बिंदु में टी.आई. सुक्कू नुरेटी सहित अन्य पुलिस अधिकारियों पर ड्रोन कैमरे के द्वारा आदिवासी महिलाओं के आपत्तिजनक विडियो बनाने का आरोप लगाया गया है और उनपर तत्काल कार्रवाई करने की मांग की गई है।

आदिवासी संगठनों ने बस्तर में पेशा कानून की धारा 4 (ण) के तहत स्वायत शासन लागू करने और बस्तर को पृथक राज्य घोषित करने की मांग की है।  

मार्च करते आदिवासी

ग्राम सभा के बिना अनुमति के  इन्द्रावती नदी पर फुण्डरी, बेद्रे के पास शुरू किये गये पुलिया निर्माण कार्य को बन्द करने की मांग की गई है।

शांतिपूर्ण धरना प्रर्दशन पर पुलिसिया दमन बंद करने की मांग की गई है। गिरफ्तार एवं जेलों में बंद किये गये कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की गई है। कार्यकर्ताओं पर लगाये गये झूठे केसों को वापस लेने की मांग की गई है। 

बस्तर में नरसंहारों और झूठी मुठभेड़ों को बंद करने की मांग की गई है। एड्समेटा, सारकेनगुड़ा नरसहरों तथा तिम्मापुर, मोरपल्ली, ताड़मेटला में 252 घरों को सशस्त्र बलों द्वारा जला दिये जाने के मामले में जांच आयोग की सिफारिशों पर तत्काल कार्यवाही करने की मांग की गई है।

भूमकाल दिवस में आदिवासियों का हुजूम

तिमेनर सहित तमाम झूठी मुठभेड़ों और नरसहरों के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के ऊपर कार्यवाही करने की मांग की गई है। 

कागजों पर सीमित 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) आरक्षण को सभी शासकीय एवं निजी संस्थाओं में लागू करने की मांग की गई है।

मूल पेशा कानून को लागू करते हुए छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 2022 में आवश्यक संशोधन करने की मांग की गई है।

केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये संशोधित वन संरक्षण अधिनियम का नियम संशोधित 2022 को वापस लेने की मांग की गई है।

मार्च में महिलाओं ने भी लिया हिस्सा

देश-विदेश के कार्पोरेट कंपनियों के साथ किये गये सभी खनन कारखाना, बांध, परियोजना संबंधित समझौतों (एम.ओ.यू.) को रद्ध करने, सभी पर्यटन केन्द्रो को रद्ध करने, जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकार को सुनिश्चित करने,  तेंतू पत्ता संग्रहण 18 प्रतिशत जी.एस.टी. को रद्ध करने एवं  वन अधिकार अधिनियम 2006, नियम 2007 यथा संशोधित नियम 2012 को क्रियान्वय करने का प्रशिक्षण देने और बस्तर के समस्त आन्दोलनों पर नेतृत्वकर्ताओं के मोबाईल ट्रेस को बंद करने की मांग की गई है। 

(छत्तीसगढ़ के बस्तर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट)

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