ट्रम्प और मोदी एक सिक्के के दो पहलू रहे हैं। याराना इतना ज़बरदस्त रहा कि बड़े मियां की जीत की हकीकत से लेकर उनके जुमलों और फेंकू नीतियों से आकृष्ट होकर छोटे मियां ने अब ऐसी स्थितियों में विश्वगुरु को धकेल दिया है कि ना रोते बन रहा है ना चीखते। उनके पास एक ही रास्ता है कि छोटे मियां को शाबाशी दें और उनकी अधीनता स्वीकार लें।
दिलचस्प बात तो है कि जब बड़े मियां को विदेश मंत्रालय की लाख कोशिशों के बावजूद भी शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया तो उनको गहरा धक्का लगा। उसी दिन से वे ताक में थे कि छोटे मियां से जल्द मिलना पड़ेगा वरना वह मुझे उखाड़ फेंकेगा।
इधर अमेरिका से 104 अवैध प्रवासियों को जिस तरह अमानवीय व्यवहार करते हुए भेजा गया है उससे देशवासियों में खौल थी वे चाह रहे थे कि ट्रम्प से दो टूक बात होगी उन्हें मानवाधिकार का दोषी बताया जाएगा। उस पर बड़े मियां छोटे से आंख दिखाकर तो दूर की बात सामान्य बात भी नहीं कर पाए।
इसकी वजह साफ थी उन्हें इन लोगों के ऊपर हुए दुर्व्यवहार की तनिक भी चिंता नहीं थी। वे तो अपने एलन मस्क गौतम अडानी को सताए जाने पर रोक लगाने और उनके डूबते कारोबार को संबल देने की जुहार करने ट्रम्प से मिलने गए थे। अमेरिकन पत्रकार ने जब अडानी पर सवाल दागा तो मोदी बगलें झांकते नज़र आए। आक्रोशित चेहरे और हाथ कई दफ़े फटकारते हुए बस यह कह पाए ये व्यक्तिगत मामला है दो राष्ट्र प्रमुखों के बीच का नहीं। जबकि इसी मामले की दबिश वहां उनको खींच ले गई थी। देश-विदेश में अमेरिकी आमंत्रण ना मिलने से होने वाली थू-थू को साधने का भी एक बेहतरीन मौका था लेकिन वैसा कुछ हासिल नहीं हुआ। गले मिलने को आतुर वे काफी दूरी पर बैठे नज़र आए।
दो शातिर मियांओं की इस बैठक में छोटे मियां ने बड़े मियां को चूना चपेट दिया तेल ,गैस और हथियार अब महंगे दामों पर मिलेंगे जितना भारत ने टैरिफ लगाया है, उतना अमेरिका भी लगाएगा। यानि हमारा आयात निर्यात संतुलन गड़बड़ाएगा। क्योंकि हमारा निर्यात कम है और आयात अधिक।
यानि देश की लुटाई खूब होगी साथ ही साथ संयुक्त राज्य अमरीका में प्रविष्ट ढाई लाख लोगों की वापसी होगी। जिसका भी सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। माना कि भारत भी अवैध प्रवासियों को बाहर करने के वचन पर प्रतिबद्ध है तो यह संख्या इतने बड़े देश के हिसाब से चींटी के बराबर है। याद रखिए ,इन दोनों देशों के प्रवासी अमूमन आतंकवादी नहीं हैं वे बेरोजगार या अपने देश से सताकर भगाए गए लोग हैं।
आतंकवाद तो दोनों देश के तानाशाह अपनी प्रवृत्ति से, अपनी ज़मीन पर तैयार कर रहे ताकि सत्ता सुरक्षित कर सकें।
ट्रम्प ने जो राजनीतिक ज्ञान बड़े मियां से हासिल किया है वो उसका प्रयोग अपने देश में धर्म और अदालतों की उपेक्षा करने में भी लग गए हैं। भारत में चारों शंकराचार्य की उपेक्षा और न्याय पाने, नौ करोड़ में फैसला खरीदने की घटनाएं सामने हैं। गुजरात में तो एक फेक अदालत भी चलती रही। जो हाल में पता चली संवेदनाओं और आमजन की चिंता दिखाई नहीं देती। कुंभ हादसों की जगह भीड़तंत्र पर विश्वास कायम है।
भारत लोकतांत्रिक व्यवस्था से भटका है तो ट्रम्प भी लोकतांत्रिक देश के दमन में जुट गए हैं इधर भ्रष्टाचारी देश की समृद्धि में सहयोगी हैं तो ट्रम्प के देश में भी यह सिलसिला शुरू हो चुका है। वहां भी भ्रष्टाचार में रत नगर निगम जैसी संस्था को इसलिए क्षमा मिल गई क्योंकि वे सरकार के काम में सहयोग दे रहे थे। भारत में भ्रष्टाचार के दागी भाजपा में आकर साफ़ पाक हो जाते हैं।
दोनों देश का चाल-चरित्र एक जैसा है दोनों के ख़ून में व्यापार है लेकिन अफसोसनाक यह है कि छोटे मियां ने बड़े मियां को दिन में तारे दिखा दिए हैं। यह यारी आगे कैसे चलेगी यह वक्त बताएगा। लेकिन पेरिस में जो राष्ट्र प्रमुखों का जमावड़ा था उनमें बहुसंख्यक ट्रम्प विरोधी थे। यह खुद फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रो के व्यवहार में समझ आया। फ्रांस प्रमुख ने हमारे देश के प्रधानमंत्री की जिस तरह अवहेलना की उसे देखकर दुख पहुंचना स्वाभाविक है। जब हमारे पीएम हाथ जोड़कर उनका अभिवादन करने आतुर दिख रहे हैं और मैक्रो इतने बड़े भारत देश के पीएम को छोड़कर अन्य देशों के प्रमुखों से मुस्करा कर मिलते हैं। यह सब ट्रम्प के साथ उनका कथित दोस्ताना व्यवहार की बदौलत ही हुआ है।
बुंदेलखंड में एक कहावत है जो इस वक्त हमारे मुखिया पर लागू होती है
दोनों दीन सें गए पांड़े, हलुआ मिले ना भांड़े।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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