रूस-यूक्रेन शांति वार्ता से ठीक पहले रूस पर बड़े पैमाने पर ड्रोन अटैक के मायने 

इस्तांबुल शांति वार्ता से ठीक एक दिन पहले यूक्रेन की ओर से रूस के आंतरिक क्षेत्रों में सैन्य हवाई अड्डों पर अब तक की सबसे बड़े ड्रोन हमलों से पूरी दुनिया अवाक रह गई। यह सब कैसे संभव हो सका, इसके बारे में अभी भी कयासों का दौर जारी है। इस भीषण हमले में लगभग 13 रुसी विमान नष्ट हो गये, और 40 रुसी बमवर्षक विमान नष्ट होने की सूचना है।

करीब 150 ड्रोन हमलों में उसके मलबे ने रूस के रिहायशी इलाकों में आग लगा दी। अनुमान है कि रूस को कई बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। पिछले तीन दिनों से पश्चिमी देश रूस के जवाबी हमले को लेकर कई तरह के कयास लगा रहे हैं, जिसमें रूस के राष्ट्रपति की ओर से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका ने तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को आसन्न बना दिया है। 

हालांकि रुस की ओर से कुछेक मिसाइल हमलों और सैनिक मोर्चे को लगातार आगे बढ़ाने से अधिक खबरें सुनने को नहीं मिल रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जो चुनाव पूर्व से ही रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में समाप्त करने के दावे कर रहे थे, का इस घटनाक्रम पर कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई सूचना नहीं है। तमाम भूराजनीतिक विशेषज्ञ इसे ट्रंप की जरूरत से ज्यादा होशियार बनने या फिर सीआईए और अमेरिकी लॉबी के बीच अलगाव की स्थिति में पा रहे हैं। 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि स्थिति वास्तव में बेहद चिंताजनक है। इसी बीच अमेरिकी सोशल मीडिया में रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम और रिचर्ड ब्लूमंथल के बयानों की खूब चर्चा हो रही है, और माना जा रहा है कि यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ता को नुकसान पहुंचा रहे हैं? लिंडसे ग्राहम की 2014 में यूक्रेन की यात्रा के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे यूक्रेनी सेना को युद्ध के लिए उकसा रहे थे और अब ट्रंप की शांति की पहल के बावजूद खुलकर रूस को नेस्तनाबूद करने के मंसूबे सार्वजनिक मंचों से बयां करते पाए गये। 

वहीं, राष्ट्रपति ट्रम्प का दावा है कि उन्हें नहीं पता था कि पुतिन पर हत्या का प्रयास किया गया था और उन्हें नहीं पता था कि यूक्रेन कल रूस पर ये हमले करने जा रहा है। लोग जानना चाहते हैं कि क्या ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति पुतिन से फोन पर बात करेंगे और तनाव को कम करने की कोशिश करेंगे? या क्या राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत-पाकिस्तान तनाव में हाथ डालने के बाद से कूटनीति छोड़ दी है?

बताते चलें कि पिछले माह रूस की ओर से यूक्रेन पर एक बड़े हमले की खबरें पश्चिमी प्रेस के माध्यम से हमारे बीच आई थी, जिस पर ट्रंप ने पुतिन की कड़ी आलोचना की थी। लेकिन उससे पहले 20 मई को यूक्रेन की ओर से व्लादिमीर पुतिन पर ड्रोन हमले की खबर विश्व में चर्चा का कारण क्यों नहीं बन सकी। एक सोशल मीडिया यूजर के अनुसार, ‘ट्रंप का कहना है कि पुतिन पागल हो गए हैं और यूक्रेन शांति वार्ता से दूर जाने की धमकी दे रहे हैं। लेकिन वे ये नहीं बता रहे हैं कि यूक्रेन ने 20 मई को रूस पर एक बड़ा ड्रोन हमला किया था – कुर्स्क की यात्रा के दौरान पुतिन के हेलीकॉप्टर को निशाना बनाकर – जिसे अमेरिकी खुफिया जानकारी का इस्तेमाल करके अंजाम दिया गया था।’

कहाँ तो यह माना जा रहा था कि ट्रंप अंततः रूस-यूक्रेन शांति को अपने एजेंडे में सबसे पहले स्थान पर रखेंगे, ताकि चीन से रूस को अलग कर अमेरिका अपनी असली लड़ाई पर फोकस कर सके। लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि डोनाल्ड ट्रंप न सिर्फ ट्रेड वॉर को सिरे चढ़ा पाने में सफल हो पा रहे हैं, ना ही घरेलू मोर्चे पर सरकारी खर्चों में भारी कटौती और ना ही अमेरिकी मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स के युद्ध से पैसा बनाने की होड़ को काबू कर पाने में सक्षम साबित हो पा रहे हैं। 

यही कारण है कि एक अनुमान के मुताबिक, यूरोपीय देशों में क्षेत्रीय महाशक्ति बनने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो चुकी है। चूँकि अमेरिका को छोड़, अधिकांश नाटो देश यूरोप से हैं, जिन्हें अब लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप के नाटो को नेतृत्वकारी भूमिका से पीछे हटने की सूरत में अपने-अपने देशों को रूस से आगामी खतरे के प्रति चाक-चौबंद करना होगा। 

इस होड़ में फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन से लेकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर के बाद अब जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ का नाम प्रमुखता से सामने आने लगा है। पिछले माह 9 मई, 2025 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन और जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने यूक्रेन की राजधानी कीव को जाने वाली ट्रेन की सवारी की थी। 

एक सप्ताह पहले जब यूक्रेन की ओर से ड्रोन हमले नहीं हुए थे, जर्मनी के नए चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से कहा था कि बर्लिन कीव को रूसी हमले से खुद को बचाने के लिए लंबी दूरी के हथियार बनाने में मदद करेगा। जब बर्लिन में पत्रकारों ने पूछा कि क्या जर्मनी कीव को अपनी टॉरस मिसाइलें देगा, तो उन्होंने कहा, “हम उत्पादन के बारे में बात करना चाहते हैं और हम सार्वजनिक रूप से इस पर विस्तार से चर्चा नहीं करेंगे।”

मर्ज़ ने मई माह की शुरुआत में ही अपना पदभार संभाला था, और तब उन्होंने यूक्रेन के लिए जर्मन समर्थन बढ़ाने का वादा किया था, और पिछले सप्ताह उन्होंने घोषणा की कि कीव के पश्चिमी सहयोगियों द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले हथियारों पर “अब कोई सीमा प्रतिबंध नहीं है”। कई सप्ताह से अटकलें लगाई जा रही हैं कि मर्ज़ जर्मन निर्मित टॉरस मिसाइलों की तैनाती की अनुमति देने जा रहे हैं, जिनकी रेंज 500 किमी है और जो अन्य दूर तक मार कर सकने वाले हथियारों की तुलना में रूसी क्षेत्र में अधिक गहराई तक जा सकती हैं।

इस पर क्रेमलिन ने चेताया था कि यूक्रेन द्वारा उपयोग की जा सकने वाली मिसाइलों पर सीमा प्रतिबंध समाप्त करने का कोई भी फैसला पालिसी में एक बेहद खतरनाक बदलाव होगा जो राजनीतिक समझौते तक पहुँचने के प्रयासों को नुकसान पहुँचाएगा। 

उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से अपरोक्ष रूप में यूरोप में यदि किसी एक देश को सबसे अधिक आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है, तो वह देश है जर्मनी। रुसी सस्ते ईंधन की आपूर्ति ठप हो जाने से उसके उद्योग या तो अमेरिका जा रहे हैं या उन्हें चीन में निवेश तलाशना पड़ रहा है। यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर आसन्न संकट उसके राजनीतिक नेतृत्व में भी दिख रहा है। चांसलर मर्ज के दादा को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा है कि वे हिटलर की नाज़ी आर्मी में बड़े पद पर तैनात थे, और पिछले दिनों मर्ज़ के नाजी स्टाइल में अभिवादन की तस्वीर भी सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है।  

इसके अलावा, ताजा खबर के मुताबिक नीदरलैंड के कार्यवाहक रक्षा मंत्री के अनुसार, यूक्रेन को 400 मिलियन यूरो की सहायता राशि दी जा रही है, जिसमें ड्रोन और नावें शामिल हैं। जबकि फ्रांस ने यूक्रेन पर 1.6 बिलियन डॉलर इस शर्त के साथ खर्च किये हैं कि फ्रांसीसी डिफेंस कांट्रेक्टर को कीव में रखा जायेगा। इसके अलावा, ‘पुनर्निर्माण एवं यूरोपीय संघ एकीकरण परियोजनाओं’ के लिए ज़ेलेंस्की को 216 मिलियन डॉलर भी दिए जाएंगे। 

जबकि रुसी स्रोतों के मुताबिक, यूक्रेन में युद्ध को जारी रखने के लिए जवानों का भारी अभाव हो गया है। इसके लिए यूक्रेन 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को भर्ती करने के लिए अनुबंध विधेयक पेश करने जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में देखा जा सकता है कि यूक्रेनी सैनिक डिलीवरी का आर्डर देकर उत्पाद लाने वाले कर्मी को जबरन फ़ौज में भर्ती कराने के लिए घसीट रहे हैं।

दो दिन पहले रूस ने यूक्रेनी सैनिकों के 6,000 पार्थिव शवों को वापस करने की पेशकश की थी, जिसके बारे में खबर है कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इससे इंकार कर दिया है। रूसी विदेश मंत्री की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा के अनुसार, “’यूक्रेनियों को [उनके नेतृत्व] उनकी कोई जरूरत नहीं है, चाहे वे मर चुके हों या जीवित।’

इसी बीच रूस-यूक्रेन को जोड़ने वाले क्रीमिया पुल को विस्फोट से उड़ाने की कोशिश की गई थी, जिसके बारे में क्रेमलिन ने पुष्टि करते हुए कहा है कि पुल को कोई नुकसान नहीं हुआ है, और पुल चालू है।

जहां तक यूक्रेन को ड्रोन की आपूर्ति का प्रश्न है तो 2000 के दशक से यूक्रेन में इसका निर्माण शुरू हो गया था, किंतु उसे ब्रिटेन, पोलैंड, तुर्किये और अमेरिका से बड़ी संख्या में ड्रोन की आपूर्ति हुई है।

पिछले वर्ष, ब्रिटेन ने यूक्रेन को 10,000 से ज़्यादा ड्रोन सप्लाई किए थे और इस साल दसियों हज़ार ड्रोन सप्लाई किए जा चुके हैं। चालू वित्त वर्ष में 1 लाख ड्रोन पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। यूक्रेन के लिए ब्रिटेन की ओर से ड्रोन में रिकॉर्ड 350 मिलियन पाउंड का निवेश होने वाला है।

सोमवार को ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने घोषणा की कि वे रूस से बढ़ते खतरों से निपटने के लिए यूनाइटेड किंगडम की सेना को “युद्ध-लड़ने की तत्परता” में ले जा रहे हैं। ग्लासगो, स्कॉटलैंड में नौसेना के जहाज निर्माण यार्ड, BAE Systems Govan facility के दौरे के दौरान, प्रधानमंत्री ने देश की रणनीतिक रक्षा समीक्षा के जवाब में किए जाने वाले “तीन मूलभूत परिवर्तन” बताए। 

स्टारमर ने कहा, “सबसे पहले, हम अपने सशस्त्र बलों के केंद्रीय उद्देश्य के रूप में युद्ध-लड़ने की तत्परता की ओर बढ़ रहे हैं। जब हमें उन्नत सैन्य बलों वाले राज्यों द्वारा सीधे तौर पर धमकी दी जा रही हो, तो उन्हें रोकने का सबसे प्रभावी तरीका तैयार रहना है। और स्पष्ट रूप से, उन्हें यह दिखाना है कि हम ताकत के माध्यम से शांति स्थापित करने के लिए तैयार हैं।” 

अमेरिका में आर्चर एफपीवी ड्रोन निर्मित किया जा रहा है और एक अंतरराष्ट्रीय पहल के तहत यूक्रेन को सप्लाई किया जा रहा है। अमेरिकी कंपनी नेरोस ने यूक्रेन को 6,000 एफपीवी अटैक ड्रोन डिलीवर करने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया है। 

ऐसा माना जा रहा है कि यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में ड्रोन का इस्तेमाल यूक्रेन की सेना के लिए गेम-चेंजर साबित हो रहा है। इसके जरिये खुफिया जानकारी जुटाने, टोही करने और दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने की क्षमता के अलावा ड्रोन यूक्रेन के सशस्त्र बलों के लिए एक ज़रूरी उपकरण बन गए हैं।

तो इस प्रकार से पश्चिमी लोकतंत्र विश्व में शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। इन देशों के लिए यूक्रेन एक चारे से अधिक कुछ नहीं, जिसे आर्थिक और सामरिक सहायता प्रदान कर अपने ढाल और आक्रामकता के लिए इस्तेमाल करना है। प्रतिउत्तर में यदि रूस ने बड़े पैमाने पर सैन्य कार्यवाही की तो उसे हमलावर, तीसरे विश्व युद्ध की जद में ले जाने वाला और निरंकुश राजसत्ता साबित किया जा सकता है। और इस सबमें उनके लिए सबसे मुफीद बात यह है कि नव-उदारवादी अर्थनीति के चलते उत्पन्न आर्थिक विषमता से उठने वाले जन-असंतोष को युद्ध की आशंका के तले आसानी से दबाया जा सकता है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

More From Author

सिंदूर के नाम पर वोट की राजनीति क्यों? 

डिंडोरी जिले में आदिवासियों की ज़मीन भाजपा विधायक के हाथ में क्यों और कैसे पहुंची?

Leave a Reply