रामलीला मैदान में महापंचायत: नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने का संयुक्त किसान मोर्चा का आह्वान

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नई दिल्ली। रामलीला मैदान में किसान-मजदूर महापंचायत ने एक स्वर से नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने का आह्वान किया। महापंचायत ने कहा कि यह सरकार कॉर्पोरेट के इशारे पर काम करती है, सिर्फ कॉर्पोरेट के हितों के लिए काम करती है। कॉर्पोरेट किसानों को बर्बाद करना चाहता है, खेती पर पूरी तरह नियंत्रण करना चाहता है। किसान और कॉर्पोरेट आमने-सामने हैं, नरेंद्र मोदी की सरकार पूरी तरह किसानों के खिलाफ और कॉर्पोरेट के साथ खड़ी है। ऐसे में किसानों के सामने इस सरकार को सत्ता से बेदखल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। ये बातें किसान आंदोलन के नेता दर्शनपाल, उगराहां, राजेवाल और टिकैत आदि ने एक स्वर से कही।

संयुक्त मोर्चा ने इस सरकार को ‘कॉर्पोरेट, सांप्रदायिक और तानाशाह’ सरकार नाम दिया। रामलीला मैदान में संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य बैनर पर भी यह लिखा हुआ था। संयुक्त मोर्चा ने जो संकल्प-पत्र रामलीला मैदान में पास किया, उसमें भी सबसे पहले इस सरकार को ‘कॉर्पोरेट, सांप्रदायिक और तानाशाह’ सरकार ही नाम दिया गया है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने जो संकल्प-पत्र पास किया उसमें भी मुख्य जोर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने पर ही है। इस संकल्प की शुरुआत इस आह्वान से होती है- ‘भाजपा के विरोध में देशव्यापी जन प्रतिरोध खड़ा करो: भाजपा की पोल खोलो, विरोध करो और उसे सजा दो’ किसान नेता भाजपा सरकार को न केवल किसानों और खेती का शत्रु मानते हैं, बल्कि उसे भारतीय गणतंत्र, धर्मनिपेक्षता और संघीय चरित्र के लिए बड़ा खतरा मानते हैं। किसान मोर्चे के संकल्प-पत्र में यह आह्वान किया गया कि, ‘भारतीय गणतंत्र के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और संघीय चरित्र पर किए जा रहे हमले के खिलाफ’ एकजुट हों।

संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा के विरोध में देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन की भी अपील की। मंच से नेताओं ने तो अपील की है, इसके साथ ही रामलीला मैदान में पारित संकल्प-पत्र में कहा गया है कि ‘एकताबद्ध जन आंदोलन के बैनर तले देश भर में भाजपा के खिलाफ विरोध प्रर्दशन’ की अपील की गई है।

केंद्र से मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने ठोस कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस को भारतीय लोकतंत्र के रक्षा दिवस के रूप में मानने का भी मोर्चे ने आह्वान किया। किसान नेता दर्शन पाल ने कहा कि हमें पूरे देश में 23 मार्च को बड़े पैमाने पर ‘लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए। हर गांव, मुहल्ले और शहर में लोकतंत्र रक्षा दिवस मनाना चाहिए। मोर्चे के संकल्प-पत्र में भी कहा गया है कि, ‘धनबल और बाहुबल के खतरे के खिलाफ 23 मार्च 2024 को देश के सभी गांवों में ‘लोकतंत्र बचाओ दिवस मनाओ’ भाजपा राज में पनपे कॉर्पोरेट-आपराधिक-भ्रष्ट गठजोड़ का पर्दाफाश करो।’

रामलीला मैदान की रैली और उसमें पारित संकल्प-पत्र बार-बार केंद्र की मोदी सरकार को निशाने पर लेता है। संकल्प-पत्र में मोदी सरकार को देश के बुनियादी उत्पादक वर्गों के खिलाफ मानते हुए कहता है कि, ‘भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार देश के बुनियादी उत्पादक वर्गों की आय और आजीविका पर हमला बोल रही है, जिसके कारण वह भारत में आज तक की सबसे आक्रामक किसान-विरोधी और मजदूर विरोधी सरकार बन गई है। पिछले 10 वर्षों में यह सरकार देशी-विदेशी कॉर्पोरेट ताकतों के एजेंट के रूप में काम कर रही है ताकि एयरलाइन, बंदरगाह, बीमा, बैंक, उर्जा सहित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और जल, जंगल, जमीन और संसाधनों का निजीकरण किया जा सके और हमारी राष्ट्रीय संपत्ति को लूटा जा सके।’

रैली 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी भूमिका भी संयुक्त मोर्चा ने स्पष्ट कर दी। मोर्चे ने खुले तौर पर कहा कि भाजपा को लोकसभा चुनावों में शिकस्त देना आज का सबसे बड़ा तात्कालिक कार्यभार है। रैली में पारित संकल्प-पत्र में कहा गया कि, ‘यदि लोग भाजपा को चुनते हैं, तो वे किसानों और मजदूरों के लिए कुछ भी अच्छा होने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। लोकतंत्र में आम जनता सर्वोच्च है…भारत की जनता को एक वास्तविक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरना होगा तथा राजसत्ता के गलियारों से कॉर्पोरेट ताकतों को हटाना होगा और उसे पीछे धकेलना होगा, ताकि बुनियादी उत्पादक वर्गों की आजीविका और हमारे देश के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सरकार की रक्षा की जा सके।’

रामलीला मैदान की इस रैली में पारित संकल्प-पत्र में कहा गया है कि, ‘महापंचायत एकताबद्ध आंदोलन के बैनर तले देश भर में बीजेपी के खिलाफ बड़े पैमाने पर और व्यापक विरोध प्रदर्शन की अपील करती है।.. महापंचायत आम जनता से अपील करती है कि भाजपा द्वारा भारतीय राज्य के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और संघीय चरित्र पर हमला करने वाली भाजपा को सजा दें।’

रामलीला मैदान की इस महापंचायत में देश के लगभग सभी राज्यों के संयुक्त मोर्चा के प्रतिनिधि मौजूद थे। हालांकि सबसे बड़ी संख्या पंजाब के सिख किसानों की थी। इसे संयुक्त मोर्चे की कमजोरी के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। रैली में लोगों की उपस्थिति भी उम्मीद से कम थी। हालांकि इसमें सरकार के सख्त रवैए की भूमिका थी। केंद्र सरकार ने साफ शब्दों में चेतावनी के अंदाज में कहा था कि रामलीला मैदान में 5 हजार से अधिक लोग एकत्रित नहीं हो सकते हैं। इस मुद्दे पर संयुक्त मोर्चे को भी सहमति जाहिर करने के लिए सरकार ने बाध्य किया था। क्योंकि सरकार किसी न किसी बहाने इस रैली को न होने देने पर आमादा थी। रैली होगी या नहीं, इस लेकर अंतिम समय तक संशय बना रहा।

(डॉ. सिद्धार्थ स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक हैं)

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