बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ देर से मगर एक दुरुस्त फैसला

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिन्हें अब निर्लज्ज ढंग से ‘बुलडोजर महराज’ कहा जाता है, उनके अधिकारियों को “बुलडोजरी अत्याचार” के लिए कड़ी फटकार लगाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (6 नवंबर, 2024) को एक पत्रकार और नागरिक को 25 लाख रुपए का मुआवजा देने और तब के डीएम समेत 27 अफसरों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया था।

ताजा खबर यह है कि रिपोर्ट दर्ज हो गई है। मामला गोरखपुर मंडल के महराजगंज जिले का है। घटना करीब पांच साल पुरानी यानी 13 सितंबर, 2019 की है।

इसी तारीख को महराजगंज जिले के वासी और पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल का मकान सड़क चौड़ीकरण के नाम पर बिना किसी पूर्व सूचना के तब के डीएम अमरनाथ उपाध्याय की टीम ने ढहा दिया था। टिबड़ेवाल ने नए साल पर प्रेस कान्फ्रेंस करके उस घटना की याद दिलाते हुए बताया कि उनके छोटे भाई की पत्नी स्टोव पर दूध गरम कर रही थीं।

दूध गरम करने की मोहलत दिए बगैर बुलडोजर गरजने लगे और उनका पुश्तैनी मकान ध्वस्त कर दिया गया। इस कार्रवाई में 123 लोगों के मकान इसी तरह तोड़े गए। ज्यादातर लोग रो-गाकर ठंडे पड़ गए। प्रशासन के सामने हार मान ली। लेकिन, मनोज टिबड़ेवाल ने इसमें काफी लिखा-पढ़ी की। शासन-प्रशासन से कोई राहत नहीं मिली। 

आखिरकार उन्होंने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की, जिसमें रिपोर्ट उनके पक्ष में आई। और, फिर उन्होंने सारे कागज-पत्तर जुटा कर सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी भेजी, जिस पर उसने स्वत: संज्ञान लिया। इसमें लंबा वक्त लगा। पांच साल के करीब।    

पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को महाराजगंज जिले में अवैध ध्वस्तीकरण से संबंधित मामले की जांच करने को कहा। पीठ ने टिप्पणी की, “आप बुलडोजर लेकर नहीं आ सकते और रातोंरात घर को ध्वस्त नहीं कर सकते।”

आखिरकार, मुख्य सचिव से जांच रिपोर्ट मांगी गई, जिसमें गुनहगार अफसरों के नाम सामने आए। उसी रिपोर्ट को आधार मान कर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, जो रिजर्व था, अब जाकर सार्वजनिक हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एक मार्मिक वाक्य लिखा है कि घर किसी का आखिरी ठिकाना होता है, उसे ऐसे नहीं गिराया जा सकता। 

बुलडोजर से मकान तोड़ने पर तत्कालीन महाराजगंज के तत्कालीन डीएम अमरनाथ उपाध्याय, एडीएम कुंज बिहारी अग्रवाल, अपर पुलिस अधीक्षक आशुतोष शुक्ल, तत्कालीन अधिशासी अधिकारी नगर पालिका महराजगंज राजेश जायसवाल, कार्य अधीक्षक लोनिवि गोरखपुर मणिकांत अग्रवाल समेत 27 अधिकारी व कर्मचारी शामिल हैं। 

क्या है बुलडोजर संस्कृति

“बुलडोजर संस्कृति” शब्द का प्रयोग अक्सर आक्रामकता, दबंगई या बलशाली नेतृत्व के लिए किया जाता है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सत्तासीन होने के बाद तेजी से प्रचलन में आया।

इसका इस्तेमाल अल्पसंख्यकों, खासकर, मुसलमानों के खिलाफ किए जाने पर समाज के एक तबके ने इसकी वाहवाही की और शासन-प्रशासन के धतकरम को भी औचित्यकरण का जामा पहनाया।

इसका नतीजा, यह रहा कि योगी के अफसर सत्ता के नशे में बेलगाम होते गए। और उन्हें हर जगह बुलडोजर की कार्रवाई ही मुफीद लगने लगी। कहा जाता है कि बुलडोजर की कार्रवाई का यह तरीका इजराइल द्वारा फिलीस्तीनियों के खिलाफ किए जा रहे दमन से आया। 

मामले में कार्रवाई को लेकर आशंकाएं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से थाने में रिपोर्ट तो दर्ज हो गई है, लेकिन कई आशंकाएं हैं कार्रवाई को लेकर। सुप्रीम कोर्ट ने महीने भर के भीतर दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने और चार महीने में जांच करने का आदेश दिया है। लेकिन, पीड़ित मनोज टिबड़ेवाल ने प्रेस-कॉन्फ्रेंस में कहा है कि जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी गई है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की सीबी-सीआईडी मामले को लटकाने के लिख कुख्यात है। इसके पीछे यह चालाकी भी हो सकती है कि जांच को लंबा खींच दिया जाए। और तब हल्की-फुल्की दिखावटी कार्रवाई करके मामले को दरकिनार रखा जाए। मगर, जैसा कि टिबड़ेवाल ने कहा है कि अगर समयबद्ध तरीके से जांच न हुई तो वे फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। 

वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दबाव में रिपोर्ट तो दर्ज कर ली गई है, लेकिन शासन और प्रशासन नहीं चाहता कि बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ कोई संदेश जाने पाए। लेकिन, आम आदमी की जुबान पर इतनी बात तो आ ही गई है कि देर से ही सही, मगर एक दुरुस्त फैसला आया है।

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