आजमगढ़। स्मृतियां हमेशा संरक्षण के लिए प्रेरित करती हैं। भूलना, खंडहर होने के लिए अभिशाप बनकर आता है। स्मृति और भूलना इंसानी फितरत में है। ये दोनों ही कथानक बनकर हमारे सामने बार बार आते रहते हैं। ये मिथक बनकर हमारे यथार्थ का हिस्सा बनते हैं और वर्तमान से मुड़कर देखने की ओर ले जाते हैं। जिन्हें हम मुड़कर देखते हैं, उन पर धूल की परतें चढ़ी होती हैं, उन्हें सीधे देख सकना आसान नहीं होता है। उस धूल-धक्कड़ को कई बार साफ करना होता है। देखने के लिए संदर्भों में जाना होता है और उसे अपने समय के साथ राब्ता भी बनाना होता है। वेस्ली इंटर कॉलेज को देखते हुए भी इन्हीं अहसासों के साथ गुजरना पड़ा।

1937 में बना वेस्ली इंटर कॉलेज अपनी स्थापना के समय एक चर्च मिशन स्कूल के रूप में सामने आया। बाद में यह हाई स्कूल बना और फिर इसमें उच्चतर शिक्षा के रास्ते खुलते गये। आज यह इंटर कॉलेज है। यह शिक्षण संस्थान पूर्वांचल के सबसे पुराने आधुनिक स्कूलों में से एक है। पिछले हफ्ते जब मैं इस स्कूल के प्रांगण में प्रवेश किया, तब उमस भरी गर्मी में चंद विद्यार्थी ही दिखाई दे रहे थे।
विशाल प्रांगण में अलग-अलग बिल्डिंग के सामने की दीवारों पर अलग अलग विषयों का नाम तो लिखा था, लेकिन उनके अधिकांश कमरों के दरवाजों पर ताला लगा हुआ था। कुछ ही कमरे खुले थे जिसमें बमुश्किल 20-25 छात्र रहे होंगे। मुख्य और सबसे पुरानी बिल्डिंग, जिसमें प्रधानाचार्य बैठते हैं, प्रशासनिक कार्यालय, हॉल और कुछ शिक्षण के लिए कमरे हैं, एकदम जर्जर हालात में दिखा। पूरा प्रांगण एक अजब से सन्नाटे से भरा हुआ था। यहां बच्चों की युवा चहचहाहट गायब थी।

वेस्ली इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य जॉन सुबोध शुक्ला से फोन पर हुई बातचीत में बताते हैं कि 1997 तक यहां छात्रों की संख्या 2600 थी। इसके बाद छात्रों की संख्या में गिरावट आनी शुरू हुई। जिस समय मैं वेस्ली इंटर कॉलेज के कैंपस में था, कुछ अध्यापकों से विद्यालय की गिरती हालत और उसके कारणों पर बात करने की कोशिश किया।
लेकिन अध्यापक प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए बात करने से इंकार करते रहे। यहां हाल ही में नियुक्त प्रधानाचार्य अजीत पोर्टर ने खराब हालत के कारणों के बारे में बताने के बजाय, यहां के स्थिति को दुरूस्त करने के बारे में जरूर बताया। वह जोर देकर बता रहे थे कि स्कूल की गरिमा हम वापस जरूर लाएंगे।
शिक्षकों की कमी निश्चित ही नई नियुक्तियों में हुई कमी की वजह से है। इसका सीधा असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ रहा था। कई विभागों में शिक्षक या तो हैं नहीं या नाममात्र के ही रह गये हैं। ऐसे में छात्रों द्वारा अन्य स्कूलों की ओर रुख करना लाजिमी है। अध्यापकों और पूर्व प्रधानाचार्य जॉन सुबोध शुक्ला से ही हुई बातचीत में एक बड़ी समस्या स्कूल का प्रबंधन, चर्च और प्रशासनिक व्यवस्था के त्रिकोण में फंसी हुई लग रही है। स्कूलों की व्यवस्था देखने के लिए जिला स्तर पर डिस्ट्रिक्ट इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स होते हैं। इनका काम स्कूलों को कानून और मानकों के आधार पर बनाये रखना होता है। मानकों और कानूनों के पूरा न होने पर वह स्कूल की मान्यता रद्द करने की संस्तुति और इसे लागू करा सकता है।

वेस्ली इंटर कॉलेज में दूसरी प्रबंधन व्यवस्था चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के हाथ में है। ऐसा लगता है कि इसमें तीसरा पक्ष मेथोडॉटिस्ट आस्ट्रेलियन चर्च सोसायटी भी है जो चर्च ऑफ नार्थ इंडिया का हिस्सा होने के साथ ही स्कूल में सीधा हस्तक्षेप करने की क्षमता रखता है। स्कूल प्रबंधन में स्कूल की संपत्ति और वित्त एक महत्वपूर्ण पक्ष है। दूसरा, वहां पर प्रधानाचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति भी निर्णायक पक्ष है। तीसरा, प्रशासनिक कार्य, खासकर परीक्षा केंद्र और अन्य गतिविधियां भी इसमें कारगर भूमिका होती है।
ऐसा लगता है कि इन तीनों की आपसी टकराहट न सिर्फ कॉलेज के वित्त को प्रभावित किया, शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट की ओर ले गया। स्कूल व्यवस्था में आपसी टकराहटें अंततः छात्रों की पढ़ाई को नुकसान की ओर ले गईं। स्थिति इतनी बदतर होती गई कि 2018 के बाद इस स्कूल की मान्यता पर ही सवाल उठने लगे। आज इस स्थिति में कोई खास बदलाव आता हुआ नहीं दिख रहा है। हालांकि, वहां के शिक्षक और प्रधानाचार्य दोनों ही इसकी गरिमा को वापस लाने के लिए दावा जरूर कर रहे थे।

स्कूल के प्रबंधन में उपरोक्त तीन पक्षों को सामने लाने वाला एक महत्वपूर्ण पक्ष प्रांगण में उपस्थित चैपल, स्कूल में बने चर्च को चैपल कहा जाता है; की भयावह स्थिति है। इस चैपल का मुख्य दरवाजे को बंद करते हुए एक ऊंची बिल्डिंग खड़ी हो गई है। चर्च का मुख्य प्रवेश बंद हो जाने पर इसमें पूजा अर्चना के लिए पीछे की ओर एक दरवाजा खोला गया है। दुकानदारों और मकान मालिकों का दावा है कि चर्च प्रबंधन व्यवस्था ने ही यह जमीन उन्हें बेच दी है।

पूर्व प्रधानचार्य जॉन सुबोध शुक्ला बताते हैं कि यह एक जटिल मामला है। जो खरीद का कागज दिखाया जाता है उसकी कोई कानूनी प्रासंगिकता नहीं है। वह बताते हैं कि दरअसल, वेस्ली इंटर कॉलेज का प्रांगण बहुत बड़ा है। लोगों को शिक्षा की जरूरत के तौर पर इस संस्थान को देखने की बजाय इसे प्रापर्टी की तरह देख रहे हैं। लोग इसी पर नजर गड़ाये हुए हैं। यह एक बड़ी समस्या है। यह समझना मुश्किल है कि कोई चर्च प्रबंधन अपने ही चर्च को इस तरह से नुकसान की ओर क्यों ले जाएगा! दूसरा, यह भी कि प्रशासन ने चर्च के प्रवेश द्वार को बंद करते हुए मकान खड़ा करने की अनुमति कैसे दे दिया!
आजमगढ़ के इतिहास के संदर्भ में वेस्ली इंटर कॉलेज एक महत्वपूर्ण जीवंत शिलालेख की तरह है। 1801-02 तक अंग्रेजों ने आजमगढ़ को अपने नियंत्रण में ले लिया था। आजमगढ़ इसके पहले मेहनगर, अजमतगढ़ और निजामाबाद में बसता था। अवध के नवाब के पतन और शाहाबाद पर अंग्रेजों के कब्जा, गाजीपुर में अफीम फैक्टरी की स्थापना के साथ आजमगढ़ का इतिहास भी अंग्रेजों के हाथ से लिखा जाने लगा।
ऐतिहासिक तौर पर इस शहर में मौर्य काल का स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध है। गुप्तकाल के अवशेष इस इलाके में मिलते रहते हैं। शर्की शासन के बाद यह शहर अवध का हिस्सा बना। अंग्रेजों ने वर्तमान आजमगढ़ की स्थापना यहां के एक जमींदार शासक की जमीन को हथिया कर किया। प्रशासनिक भवन, स्कूल, रेलवे, बिजली, अस्पताल जैसी आधुनिक व्यवस्था 19वीं सदी आरम्भ से लेकर बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक आ चुकी थी।

आजमगढ़ में 1822 में मिशनरी और कुछ व्यक्तिगत प्रयासों से बच्चों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था का आरम्भ हो चुका था। आज का वेस्ली इंटर कॉलेज शुरूआती दिनों में प्राथमिक शिक्षा के केंद्र के तौर पर सामने आया। 1837 में इसकी विधिवत स्थापना की घोषणा हुई। हालांकि इसका कई हिस्सा इसके पहले से अस्तित्व में आ चुका था। 1839 में उस समय की कंपनी राज ने इसे मान्यता प्रदान किया। 1842 में चर्च मिशनरी सोसायटी जो ब्रिटिश केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय संस्था थी, ने इसे अपने हाथ में ले लिया।
उस समय इसका नाम चर्च मिशन स्कूल रखा गया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर परगन सिंह की सैन्य टुकड़ी ने इस स्कूल पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजों के साथ यहां हुई भिड़ंत में काबिज सैन्य टुकड़ी ने इस बिल्डिंग में आग लगा दी। उस समय इस स्कूल को काफी नुकसान हुआ। 1861 में एक बार फिर इस स्कूल को पुनःअस्तित्व में लाने का प्रयास हुआ। उस समय 1880 तक यह स्कूल कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्वावधान में चलता रहा। इसके बाद इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दिया गया।

बीसवीं सदी में के दूसरे दशक में वेस्लियन मिशनरी सोसायटी ने इसमें रुचि ली। आस्ट्रेलियाई मेथोडिस्टि चर्च के इसमें भागीदारी के साथ ही इस स्कूल के नाम में वेस्ली जुड़ गया। 1947 के बाद भारत की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव और उत्तर-प्रदेश में नई शिक्षा व्यवस्था में यह स्कूल भी उसका हिस्सा बन गया। इस स्कूल को अस्तित्व में आये 187 साल से ऊपर हो रहे हैं। इस स्कूल ने आजमगढ़ और पूर्वांचल में आधुनिक शिक्षा की नींव रखी।
यह कंपनी राज से लेकर विक्टोरिया राज और फिर आज के भारत की शिक्षा व्यवस्था को अपने में समेटे हुए है। इसने 1857 की लड़ाई को देखा और भुगता। इसने देश की आधुनिक पीढ़ी को गढ़ा। यह एक जीवंत इतिहास की तरह आजमगढ़ की व्यस्त जिंदगी के बीचों बीच खड़ा है। और, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
हरेक स्कूल, विश्वविद्यालय और संस्थान अपने लोगों की यादों को संजोये हुए नये को गढ़ते हुए जिंदा रहता है। वेस्ली इंटर कॉलेज ने कई पीढ़ियां गढ़ीं। ऐसा लगता है कि ये पीढ़ियां अपने इस गौरवशाली स्कूल को भूल गई हैं। उनकी स्मृतियों में निश्चित ही वेस्ली इंटर कॉलेज का प्रांगण होगा, अध्यापक, कक्षाएं और चैपल होगा। कोने का वह कुंआ भी होगा जिसकी घिर्रीं अब भी घिसने के बावजूद बची हुई है। यह ऐतिहासिक स्कूल अपने लोगों का याद कर रहा है।

अपनी खूबसूरत बनावट, जिसमें थोड़ी गोथिक शैली है, कुछ इस देश की शहतीरों पर खड़े खपड़ैल के मकानों की छाप है और कुछ मुगल शैली की दीवारें हैं। और, निश्चित ही आधुनिक मिशनरियों के अंदाज में बनी कक्षाएं हैं। निश्चित ही इस स्थापत्य शैली की छाप इसके पूर्व छात्रों की आखों और दिलों में बसा होगा। अब, जबकि यह नष्ट होने की ओर बढ़ चला है, इसे बचाने की उम्मीद इन बीती पीढ़ियों से जरूर बनती है। इसे बचाने की उम्मीद निश्चित ही इस शहर के लोगों से है और सबसे अधिक उम्मीद इसके प्रबंधन से जुड़ी संस्थाओं, शिक्षकों से है।
(अंजनी कुमार लेखक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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