झारखंड के बगोदर से माले की हार के मायने

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रांची। राजा वड़िग की एक प्रचलित शायरी है – “हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, हमारी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था।”

अगर हम इस शायरी पर गौर करें तो यह शायरी झारखंड के बगोदर विधानसभा में माले प्रत्याशी विनोद कुमार सिंह की हार पर सटीक बैठता है। 

आगे बढ़ने से पहले बताना जरूरी हो जाता है कि विनोद सिंह जो गठबंधन की सरकार के समर्थक होते हुए भी जन सवालों को लेकर विपक्ष की भूमिका भी निभाते रहे हैं। 

एक बात और, जब झारखंड अलग राज्य हुआ और भाजपा की राज्य में सरकार बनी तब विनोद सिंह के पिता शहीद कामरेड महेंद्र सिंह जो बगोदर से भाकपा माले के विधायक थे, विपक्ष की अकेली आवाज हुआ करते थे। बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री थे जो इनके किसी भी जन सवालों पर कोई जवाब नहीं दे पाते थे। 

बता दें कि 1990 में महेंद्र प्रसाद सिंह पहली बार बगोदर से आईपीएफ (इंडियन पीपुल्स फ्रंट) के बैनर तले चुनाव लड़े, बगोदर की जनता ने उन्हें हाथों हाथ लिया और वे विधायक बने, तब एकीकृत बिहार था और झारखंड अलग राज्य का आंदोलन चल रहा था।

बगोदर की जनता ने खुद आपसी चंदा करके महेंद्र सिंह को चुनाव में खड़ा किया और चुनाव प्रचार सहित तमाम खर्चे बगोदर की जनता ने खुद वहन किया। आईपीएफ उस वक्त भाकपा माले का राजनीतिक विंग था। 1994 में भाकपा माले को आईपीएफ में विलय कर दिये जाने के बाद आईपीएफ को समाप्त कर दिया गया, तब 1995 के विधानसभा चुनाव में महेंद्र प्रसाद सिंह को भाकपा माले से उम्मीदवार घोषित किया गया और उन्होंने पुनः जीत हासिल की। 

2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद उन्होंने पुनः जीत हासिल की और झारखंड विधानसभा पहुंचे। कहने को तो बाबूलाल मरांडी सरकार की विधानसभा में कई दलों के सदस्य और निर्दलीय विधायक थे लेकिन महेंद्र प्रसाद सिंह एक ऐसी अकेली आवाज थे जो अकेले विपक्ष की भूमिका में थे और पूरे विपक्ष का इनको सहयोग था।

बताते चलें कि अलग राज्य गठन के बाद बाबरी ध्वंस के सहभागी भूमिका वाले तत्कालीन प्रधान सचिव प्रभात कुमार को झारखंड का राज्यपाल बनाए जाने के खिलाफ महेंद्र सिंह के आह्वान पर 6 दिसंबर, 2000 को अभूतपूर्व झारखंड बंद रहा। वहीं राज्य गठन के बाद हुई डोरंडा गोलीकांड, तपकरा कांड, सेमरी बंजारी कांड, लेवाटांड़ कांड, घंघरी गोलीकांड, मरकच्चो गोलीकांड वगैरह कांडों के खिलाफ जोरदार आन्दोलन चला।

विनोद सिंह।

2005 के चुनाव से ठीक पहले महेंद्र सिंह की हत्या के बाद पार्टी ने विनोद कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। विनोद सिंह की जबरदस्त जीत हुई। उन्होंने सदन में जन सवालों पर माले की परम्परा को आगे बढ़ाया, परिणामत: 2009 के चुनाव में भी बगोदर की जनता ने इन्हें हाथों-हाथ लिया। लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी के जुमले का बगोदर की जनता पर भी असर पड़ा और विनोद सिंह चुनाव हार गए। भाजपा के नागेंद्र महतो ने जीत दर्ज की। लेकिन 2019 के चुनाव में बगोदर की जनता ने अपने फैसले को बदला और पुनः विनोद सिंह ने जीत दर्ज की। 

विनोद कुमार सिंह ने अपने पिता महेंद्र सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने में कोई कोताही नहीं बरती। वे भी जन सवालों को लेकर काफी मुखर रहे हैं। 

ऐसे में अब विनोद सिंह की हार क्षेत्र ही नहीं झारखंड की जनता को भी भौचक किए हुए है। 

बताते चलें कि महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में माले ने पांच सीटों पर दावा किया था। जमुआ, धनवार, निरसा, सिंदरी और बगोदर। वैसे महागठबंधन में बगोदर, सिंदरी और निरसा पर कोई मतभेद नहीं था। क्योंकि बगोदर माले का वर्चस्व क्षेत्र रहा है, वहीं निरसा और सिंदरी कामरेड एके राय द्वारा स्थापित मासस (मार्क्सवादी समन्वय समिति) का प्रभाव क्षेत्र रहा है, जो हाल ही में मासस का माले में विलय के बाद यह सीट माले के प्रभाव क्षेत्र में बदल गया।

लेकिन जमुआ और धनवार पर झामुमो ने अपना दावा ठोकते हुए दोनों सीटों से माले को अपना दावा वापस देने का दबाव बनाया। अंततः माले ने जमुआ सीट से अपना दावा वापस ले लिया लेकिन धनवार से दोस्ताना संघर्ष के तौर पर अपना उम्मीदवार उतार दिया, नतीजतन माले और झामुमो ने यह सीट गवां दी। वहीं बगोदर भी माले को निराश किया। जो कई अनुत्तरित सवाल खड़े करते हैं।

देखने में तो बगोदर में INDIA गठबंधन के नेताओं खासकर झामुमो की ओर से कोई कोताही नहीं बरती गई, लेकिन आंतरिक तौर पर स्थानीय नेताओं में विक्षोभ जरूर रहा, जिसका ही नतीजा विनोद सिंह जैसे जननेता को हार का मुंह देखना पड़ा। कहना मुश्किल है कि परोक्ष रूप का यह विक्षोभ गठबंधन के प्रांतीय नेताओं को दिखा या इसे देखने के बाद भी इसकी अनदेखी की गई। जबकि इस चुनाव में भी जनसहयोग पूरी तरह दिखाई दिया। 

अगर हम मान लें कि 2005 में विनोद कुमार सिंह की जीत महेंद्र सिंह की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति वोट के कारण हुई, तो हमें यह भी मानना पड़ेगा की 2009 के चुनाव में विनोद की जीत महेंद्र सिंह की विरासत से मिली जननेता के उभार के कारण मिली।

वहीं 2014 में देश के राजनीतिक वायुमंडल में अचानक फैली नफरत और घृणा की प्रदूषित हवा ने मतदाताओं के दिमाग को विकलांग बना दिया था जिसके असर से बगोदर भी मुक्त नहीं हो सका था। लेकिन 2019 में फैली प्रदूषित हवा का असर धीरे धीरे कम हुआ और बगोदर की जनता ने विनोद को पुनः सिर आंखों पर बैठाया और फासिस्ट सत्ता के खिलाफ माले ने गठबंधन की हेमंत सरकार को अपना समर्थन दिया। बावजूद इसके विनोद कुमार सिंह जन सवालों को लेकर विपक्ष की भूमिका में नजर आए। 

अब जबकि 2024 के चुनाव में झारखंड के मतदाताओं ने INDIA गठबंधन पर जहां पूरा भरोसा जताया है वहीं, बगोदर से विनोद की हार कुछ पच नहीं रही है। जाहिर है कोई बड़ा खेल इस तरह के नतीजे में जरूर शामिल है, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। 

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बगोदर विधनसभा के अब तक के विधायक 

1972 – के बसंत नारायण सिंह – बीजेएस

1977 – गौतम सागर राणा – जनता पार्टी

1980 – खरगधारी नारायण सिंह – निर्दलीय

1985 – गौतम सागर राणा – लोक दल

1990 – महेंद्र प्रसाद सिंह – आईपीएफ

1995 – महेंद्र प्रसाद सिंह – भाकपा माले

2000 – महेंद्र प्रसाद सिंह – भाकपा माले

2005 – विनोद कुमार सिंह – भाकपा माले

2009 – विनोद कुमार सिंह – भाकपा माले

2014 – नागेंद्र महतो – भाजपा

2019 – विनोद कुमार सिंह – भाकपा माले

2024 – नागेंद्र महतो – भाजपा

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आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव 2024 में जहां भाजपा के नागेंद्र महतो को 1,27,501 मत मिले वहीं, माले के विनोद कुमार सिंह 94,884 वोटों पर सिमट गए जो काफी चौंकाता है। दूसरी तरफ जेएलकेएम (झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा) के एमडी सलीम को 17,736 मत मिले। 

 जेएलकेएम एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है, जिसकी स्थापना वर्ष 2024 में जयराम कुमार महतो ने की जो कुर्मी को आदिवासी घोषित करने के आन्दोलन से होते हुए अंततः झारखंड के सभी मूल वासियों की आवाज बनने की जुमले बाजी की ओर उन्मुख होकर आगे बढ़े। जेएलकेएम ने 71 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें 1 सीट पर जीत हासिल की, 2 पर दूसरे पायदान पर रहा और 33 सीटों पर तीसरे स्थान पर। 

चर्चा है कि जेएलकेएम को इतने सीटों के लिए चुनाव प्रचार सहित अन्य खर्चे कहां से आए? इस पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक समझदारों का मानना है कि दरअसल INDIA गठबंधन को नुकसान पहुंचाने के लिए ही यह दांव खेला गया था जो कहीं न कहीं उल्टा पड़ गया।

अगर हम इस चुनाव में बहुचर्चित धनवार विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां इस चुनावी समर में जेएमएम और भाजपा के बीच माले ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था। माले के राजकुमार यादव, भाजपा के पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और जेएमएम के निजामुद्दीन अंसारी मैदान में थे। बाबूलाल ने निजामुद्दीन अंसारी को 35 हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया।

बाबूलाल मरांडी को 106296, निजामुद्दीन अंसारी को 70858 और राजकुमार यादव को मात्र 32187 वोट मिले। 

जेएमएम और माले का वोट मिला भी दिया जाए तो भी बाबूलाल मरांडी की ही जीत होती क्योंकि दोनों के वोट मिलाकर मात्र 103,045 मत हो रहे हैं।

धनवार में माले के कारण जेएमएम की हार को मान भी लिया जाए तो जमुआ से जेएमएम की हार को किस रूप में देखा जाएगा। 

क्योंकि जमुआ से पिछले दो बार से लगातार विधायक रहे झामुमो के केदार हाजरा को भाजपा की मंजू कुमारी ने 32631 वोट से परास्त किया है। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मंजू कुमारी को 1,17,532 वोट मिले वहीं, झामुमो प्रत्याशी केदार हाजरा को 84,901 वोट से संतोष करना पड़ा।

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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