व्यापार युद्ध कहीं विश्वयुद्ध में तब्दील ना हो जाए!        

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इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ से संपूर्ण दुनिया दहशत में है। एक तानाशाह के सख़्त रवैए से उसके पड़ोसी देश, यूरोपियन देश और एशियाई और आस्ट्रेलिया वगैरह देशों में अपने व्यापार को लेकर जो चिंता व्याप्त है। उसका समाधान नज़र नहीं आ रहा है।

डोनाल्ड ट्रम्प ने अब अपनी कूटनीति के तहत जो रवैया अपनाया है वह अधिनायकवाद की आहट देता है। उसका साफ़ कहना है जो उसकी नीतियों का समर्थन करेगा उसे टैरिफ में छूट मिलेगी। उसने समर्थक देशों के साथ इस छूट पर हस्ताक्षर भी विगत दिनों कर दिए हैं। इससे दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत चीन ने भी उन देशों को धमकी दी है जिससे उसका व्यापार लंबे अर्से से चल रहा है। उसका भी स्पष्ट कहना कि यदि उसमें कमी आई तो सम्बंधित देश पर समुचित कार्रवाई की जाएगी।

कहने का आशय यह है कि दो बिगड़े सांड़ों की तरह अमेरिका और चीन दुनिया भर में आतंक फैलाए हुए हैं। इससे छोटे मुल्कों की तुलना में भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश की स्थिति डांवाडोल है। क्योंकि भारत के बड़े बाजार की ज़रूरत चीन और अमेरिका दोनों को है।अमेरिका ने मोदी जी की दोस्ती का एक बार फिर उल्लेख करते हुए जो छूट देने की घोषणा की है उससे विदेश मंत्री और मोदी मीडिया भले अपनी जीत मानकर इतरा रहे हैं। लेकिन इस कमी से लूट कम नहीं होगी तथा व्यापार घाटे में ही चलेगा।

2021-22 से 2024-25 तक अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका का योगदान लगभग 18%, आयात में 6.22% तथा द्विपक्षीय व्यापार में 10.73% है।

इसी सामंजस्य को बढ़ाने या यूं कहें भारत के बाजार को हथियाने अमेरिका के उपराष्ट्रपति बीबी बच्चों सहित भ्रमण हेतु भारत पधारे। उनका गर्मजोशी से सत्कार हुआ तथा मोदीजी ने निजी तौर पर भोज दिया। यह चीन को दिखाने के लिए भी हो सकता है। वैसे मोदीजी जब बिन बुलाए डोनाल्ड से मिले थे और उसने भारत सरकार को तब जिस तरह फांसा है।

उससे देश उबर नहीं सकता है। कहा जाता है कि दबे व्यक्ति को ही सबसे ज्यादा दबाव में रखा जा सकता है। वही हाल इस वक्त देश का है। उन्हें ऐसे हथियार चिपकाए गए जिन्हें अमेरिका में खारिज कर दिया गया है। एलन मस्क की टेस्ला के बहाने एंट्री ने भारत के कृषि संसाधनों पर हमले का प्लान बना लिया है। अब अडानी की जगह एलन मस्क ले रहे हैं। भारत ख़ामोश है।जबकि अमेरिका के पूरे पचास राज्य दूसरी बार टैरिफ के विरोध में उत्तेजक आंदोलन कर रहे हैं।

इस पर चीन नज़र रखे हुए है। उसकी धमकी भारत के व्यापार के लिए भी है हम सब जानते हैं कि हमारे देश में चीनी माल की बिक्री होती है। नन्हें दिए से लेकर पूजा की मूर्तियों के अलावा बड़ी तादाद में उपभोक्ता सामग्री भारत में चीन से गुप्त रूप से आती है इसका बड़ा बाजार भारत में है। अन्य आने वाले इलेक्ट्रॉनिक और तकनीकी सामान वगैरह भारत आते हैं।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि चीन के साथ देश का व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2025 में 99 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो एक साल पहले 85 बिलियन डॉलर था।

दो एशियाई पड़ोसियों के बीच बढ़ती खाई भारत के चीन को निर्यात में गिरावट के कारण है, जबकि चीन से आयात लगातार बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2025 में चीन को भारत का निर्यात 14.5% घटकर 14.25 बिलियन डॉलर रह गया, जबकि चीन से आयात 11.6% बढ़कर 113.5 बिलियन डॉलर हो गया। वित्त वर्ष 2025 में चीन को भारत का निर्यात 2019-20 के स्तर से नीचे आ गया है।

मतलब साफ है चीन का व्यापार घटता है तो वह हिंसक हो सकता है। वैसे भी चीन भारत का बहुत सा हिस्सा लद्दाख में अपने कब्जे में ले चुका है। उसकी नज़र चिकिन नेक पर है। अरुणाचल में क्षेत्रों का अपने अनुरूप नामकरण भी कर लिया। उसे वह अपना मानता है। दूसरी तरफ़ ट्रम्प के जाल में मोदी सरकार फंस चुकी है।

ये तमाम स्थितियां भारत के लिए एक तरफ कुआं और खाई जैसी हैं। जितने मोदी जी अमेरिका के जाल में फंसे हुए हैं उससे ज़्यादा सीमावर्ती चीन से भी ख़तरा है।

तीसरा कोना यूरोपीय और मध्य एशियाई देशों का है जो इस वक्त ना तो अमेरिका के साथ है और ना ही चीन के साथ। ट्रम्प टैरिफ के समाधान की रणनीति तैयार कर रहा है। संभव है वे सब मिलकर अमेरिका को अच्छा सबक सिखा दें।

फिलहाल तो यही कहा जा रहा है कि भारत की स्थिति संकट में है। उगलत लीलत पीर घनेरी। चीन को झूला झुलाना और ट्रम्प नमस्ते दोनों के बीच यदि ऐसा तटस्थ भाव रहा। तो इस  व्यापार युद्ध का आग़ाज़ शांति प्रिय भारत से हो सकता है जो तीसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर सकता है।काश, सभी मुल्क एक होकर इन दोनों मुल्कों को रोक पाते। अमेरिकी जनता का आंदोलन हम सबके लिए एक सबक की तरह है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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