भारतीय संविधान और विधि के अनुसार राष्ट्र के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने वाला, ऐसे विद्रोह की सुनियोजित तैयारी करने वाला, या राष्ट्र को हानि पहुँचाने वाले किसी बाहरी राष्ट्र या संगठन से राष्ट्र के लिए हानिकारक सहयोग करने वाला देशद्रोही होता है। किंतु आज कल जिस चाहे उसी को देशद्रोही का तमगा दे देते हैं। यह असंवैधानिक है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं वह संविधान विरोधी हैं अधिनायकवादी हैं।वे ही संविधान से इतर अपने ख्याल रखते हैं संविधान को कुचलकर मनमानी कार्रवाई करते रहते हैं। जबकि देशद्रोही कौन है यह अदालत संवैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत सिद्ध करती है।
उपर्युक्त पैमाने के मुताबिक यदि हम गहराई से जांच करें तो पता चलेगा कि राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े तथाकथित राष्ट्रभक्त ही देशद्रोह के दायरे में आते हैं। राष्ट्र विरोधी कामों में संलग्न बहुतेरे लोग जो रोज़ाना सामने आते जा रहे हैं वे ऐसे ही तथाकथित राष्ट्रभक्त हैं। जिन्होंने देश को इस वक्त चारों ओर से ख़तरे में डाला ही नहीं, फौज कमज़ोर की, शिक्षा, स्वास्थ्य और भाईचारा कमज़ोर किया है। यहां तक कि अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने पर उतारू हैं।
आश्चर्यजनक तो यह है कि संसद में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को बोलने भी नहीं दिया जाता। इंडिया गठबंधन के सदस्यों के साथ भी यही व्यवहार सरे आम हो रहा है। जबकि हमारे लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में प्रतिपक्ष नेता को शैडो प्रधानमंत्री का दर्जा मिला हुआ है। यह इसलिए क्योंकि वह भी देश के सत्ता विरोधी भारी मतों की आवाज़ सदन में बुलंद करता है। आखिरकार सदन में उनको भी अधिकार लोकतंत्र देता है। यही तो खूबसूरती है इसकी।
लेकिन जब जनता की आवाज़ का दमन हो उनके चयनित प्रतिनिधियों का अपमान हो तो इसका विरोध उचित है।
लेकिन सदन का स्पीकर ही जब सत्ता के चरण चुंबन में लगा हो तो इसे राष्ट्रभक्त कैसे कह सकते हैं। जिसने चुनाव आयोग और स्वतंत्र जांच एजेंसियों को दबोच रखा हो वह राष्ट्र हितैषी कतई नहीं हो सकता।
सदन को और महत्वपूर्ण बनाने लिए उच्च सदन में कलाकार, बुद्धिजीवी, संस्कृति कर्मी, लेखक और अपने क्षेत्र में विशिष्ट अवदान देने वाले 14 सदस्यों को मनोनीत भी किया जाता है ताकि इनकी आवाज़ भी सदन में पहुंचे। लेकिन आज तो ऐसे लोगों से सरकार ख़फ़ा हो जाती है जो सरकार को मार्गदर्शन देने और उनकी त्रुटियों पर ध्यान दिलाने की कोशिश करते हैं। वे मूक बैठे रहें और सरकार की वाह वाह करें ज़रूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े रहें। इसलिए पुराने मानदंडों की भेंट चढ़ाकर अपने पक्षधरों को यहां उपकृत किया जा रहा है।
आजकल भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौर ने लोकगीत की बजाए सीधे सीधे जनता के बीच सरकार की सच्चाई बताने का जो रुख किया है वह लोग पसंद कर रहे हैं। अभिव्यक्ति के ख़तरों के बीच नेहा की यह बेबाक आवाज पाकिस्तान तक पहुंची तो वहां से उसे अच्छा रिस्पांस मिला। इसलिए उसे देशद्रोही करार देकर उस पर एफआईआर दर्ज की गई है।
अपने प्रधानमंत्री से सवाल पूछना कतई ग़लत नहीं है। चूंकि उसके सवाल पाकिस्तान में लोकप्रिय हो गए तो वह देशद्रोही कैसे हो गई?
आज इंटरनेट का युग है भारत की ऐसी कई सरकार विरोधी आवाज़ विदेशों में गूंज रही हैं तो क्या वे देशद्रोही हो गए। राहुल गांधी जब भारतीय चुनाव तंत्र की पोल अमरीका में खोलते हैं वह भी देशद्रोही हो जाते हैं किंतु देश का प्रधानमंत्री जब विदेशी धरती पर जाकर यह कहता है कि मैंने कौन से पाप किए थे जो भारत में जन्म मिला तो देशद्रोह नहीं होता।
बहरहाल, देशद्रोह जैसे अपराध से, चाहे जिस आलोचना करने वाले को जोड़कर देखना, संविधान की उपेक्षा ही माना जाएगा। यह तमगा सिर्फ डराने धमकाने के सबब से नहीं होता बल्कि ये उस चाल का हिस्सा है जो उसे अपने साथ शामिल करने का न्योता होता है। कमज़ोर दिल के लोग भाजपा शरणम् गच्छामि हो जाते हैं। पर समझदार और असली देशभक्ति से अपने वतन से गद्दारी नहीं करते। वे नेहा सिंह की तरह झुकते नहीं हैं कष्ट सहने के लिए तैयार हो जाते हैं। फिर वर्तमान सरकार जिस शानदार संगठन से आती है उसका इतिहास देशद्रोही ग़द्दारों से भरा पड़ा है। किसी ने सच फरमाया है -जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। बेशक उन्हें अपने दाग सबमें दिखते हैं। यह सत्य है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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