ब्रिटेन में होने जा रही ‘नगा मानव खोपड़ी’ की नीलामी का भारत में विरोध क्यों?

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साम्राज्यवाद के दौर में ब्रिटेन में भारत सहित अपने उपनिवेशों से के धन-संपत्ति की ही लूट नहीं की, बल्कि भारी पैमाने पर धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व की चीज़ों की भी लूट की। इनमें बहुत सी ऐसी चीज़ें थीं, जिस पर लोगों की धार्मिक आस्थाएं भी‌ जुड़ी हुई थीं।

लन्दन स्थित ब्रिटिश म्यूजियम तथा ब्रिटेन तथा इंग्लैंड के अनेक संग्रहालय इन चीज़ों से भरे पड़े हैं। दुनिया भर में इसकी बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त भी होती रहती है। अभी इस सम्बन्ध में एक दिलचस्प मामला प्रकाश में आया, जब लन्दन में एक संग्रहालय में स्थित पवित्र नगा खोपड़ियों को नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया।

भारत स्थित नागालैंड की नगा जनजाति की बहुत प्राचीन जनजाति है, इसकी अनोखी प्रथाएं हैं।‌ इसमें एक प्रथा यह भी है कि वे‌ अपने दुश्मनों का‌ सिर काटकर उसे ट्राफी के रूप में अपने यहां सजाकर रखते थे। जिसके पास जितने सिर होते थे, वह उतना ही बहादुर माना जाता था।‌

वे अपने पूर्वजों के सिर भी रखते थे तथा उनसे अपने धार्मिक अनुष्ठान भी करते थे, हालांकि शिक्षा तथा ईसाई धर्म के प्रसार के कारण धीरे-धीरे ये प्रथाएं लुप्त हो गईं, लेकिन अभी भी नगाओं की अपने प्राचीन मूल्यों पर गहरी आस्था है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के एक नीलामी गृह ने बुधवार को ‘नगा मानव खोपड़ी’ को अपने ‘लाइव ऑनलाइन बिक्री’ की सूची से हटा लिया। नीलामी गृह ने इस मुद्दे पर भारत में विरोध के बाद यह कदम उठाया।

ऑक्सफोर्ड शायर के टेस्ट्सवर्थ में स्वॉन नीलामी गृह के पास दुनिया भर से प्राप्त खोपड़ियों और अन्य अवशेषों का संग्रह है। 19वीं शताब्दी की सींग युक्त नगा मानव मानव खोपड़ी, नगा जनजाति’ को बिक्री के लिए सूची में ‘लॉट नंबर 64’ पर रखा गया था।

इसकी बिक्री को लेकर नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने विरोध जताया था और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस बिक्री को रोकने में हस्तक्षेप की मांग की थी।

रियो ने अपने पत्र में लिखा, ‘‘ब्रिटेन में नगा मानव खोपड़ी की नीलामी के प्रस्ताव की खबर ने सभी वर्ग के लोगों पर नकरात्मक असर डाला है क्योंकि हमारे लोगों के लिए यह बेहद भावनात्मक और पवित्र मामला है। दिवंगत लोगों के अवशेषों को सर्वोच्च सम्मान और आदर देने की हमारे लोगों की पारंपरिक प्रथा रही है।’’

नीलामी गृह के मालिक टॉम कीन ने कहा कि इसमें शामिल सभी लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए नगा खोपड़ी की बिक्री को वापस लेकर अब इसे नहीं बेचा जा रहा है।

कीन ने कहा, ‘‘हमने व्यक्त किए गए विचारों को सुना। भले ही बिक्री के साथ आगे बढ़ना कानूनी था, हमने लॉट वापस लेने का फैसला किया क्योंकि हम किसी को परेशान नहीं करना चाहते थे।’’

फोरम फॉर नगा रिकॉन्सिलीएशन (एफएनआर) द्वारा इस मामले को लेकर चिंता जताने के बाद रियो ने विदेश मंत्री से यह मामला लंदन में भारतीय उच्चायोग के समक्ष उठाने का अनुरोध किया ताकि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया जा सके कि खोपड़ी की नीलामी रोका जा सके।

नीलामी सूची में नगा मानव खोपड़ी की तस्वीर के नीचे लिखा था, ‘‘यह मानवशास्त्र और जनजातीय संस्कृतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले संग्रहकर्ताओं के लिए विशेष रुचिकर होगी’’।

नीलामी के लिए शुरुआती राशि 2,100 ब्रिटिश पाउंड (करीब 2.30 लाख रुपये) रखी गई थी और नीलामीकर्ताओं को इसके 4,000 पाउंड (करीब 4.3 लाख रुपये) में बिकने की उम्मीद थी।

इसकी उत्पत्ति के बारे में 19वीं शताब्दी के बेल्जियम के वास्तुकार फ्रेंकोइस कोपेन्स के संग्रह से पता चलता है। एफएनआर ने जोर देकर कहा कि मानव अवशेषों की नीलामी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जनजातीय मूल के लोगों के अधिकारों की घोषणा (यूएनडीआरआईपी) के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।

जिसमें कहा गया है, ‘‘जनजातीय मूल के लोगों को अपनी संस्कृतियों, परंपराओं, इतिहास और आकांक्षाओं की गरिमा और विविधता को बनाए रखने का अधिकार है, जिसे शिक्षा और सार्वजनिक सूचना में उचित रूप से प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए।’’

इसके बाद एफएनआर ने नीलामी घर से सीधे संपर्क कर बिक्री की निंदा की और वस्तु को नागालैंड वापस भेजने की मांग की। यह संगठन दुनिया भर के कई जातीय मूल के समूहों में से एक है। संगठन वर्तमान में ऑक्सफोर्ड में पिट रिवर्स संग्रहालय के संग्रह में रखी कलाकृतियों के बारे में उसके साथ बातचीत कर रहा है।

संग्रहालय की निदेशक लॉरा वैन ब्रोकहोवेन को ‘बीबीसी’ द्वारा सचेत किया गया था कि नगा, शुआर, दयाक, कोटा, फॉन, विली लोगों और पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीप, नाइजीरिया, कांगो और बेनिन के अन्य समुदायों के मानव अवशेषों की नीलामी की जा रही है।

प्रोफेसर ब्रोकहोवेन ने कहा, ‘‘यह सुनकर राहत मिली है कि नीलामी गृह ने आज की बिक्री से सभी मानव अवशेषों को हटा दिया है और उम्मीद है कि दुनिया भर के समुदायों की व्यापक टिप्पणियों और आलोचना ने यह दर्शा दिया है कि पैतृक अवशेषों की बिक्री आक्रामक और अस्वीकार्य है।’’

प्रोफेसर ने कहा,‘‘समुदायों के पूर्वजों के अवशेषों की नीलामी करना बेहद अनैतिक है, जो उन समुदायों की सहमति के बिना लिए गए थे”।

“यह उस नुकसान को जारी रखता है जो औपनिवेशिक काल के दौरान शुरू हुआ था और इससे उन समुदायों में आक्रोश और उदासी पैदा हुई जो आज भी बहुत कठिन परिस्थितियों में रह रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि ये अवशेष 19वीं और 20वीं शताब्दी में एकत्र किए गए होंगे, लेकिन 2024 में उनकी बिक्री होना काफी चौंकाने वाला है।”

(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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