प्रयागराज। प्रदेश के प्रयागराज में मंगलवार देर रात महाकुंभ में संगम क्षेत्र के आसपास हुई भगदड़ ने लाखों तीर्थयात्रियों के दिलों में पुरानी यादों का जख्म फिर से ताजा कर दिया। अराजक भीड़, बदइंतजामी और अफरा-तफरी के बीच कई लोगों की जान चली गई और बड़ी संख्या में लोग जख्मी हो गए।
प्रशासन ने जारी किया आधिकारिक आंकड़ा, 30 की मौत, 50 से अधिक घायल
महाकुंभ के दौरान हुई दर्दनाक भगदड़ में मरने वालों की संख्या को लेकर प्रशासन ने घटना के लगभग 20 घंटे बाद आधिकारिक आंकड़ा जारी किया। प्रशासन के अनुसार, इस हादसे में 30 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से 25 की पहचान कर ली गई है। इस घटना में 50 से अधिक श्रद्धालु घायल हुए हैं, जिन्हें प्रयागराज के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस हादसे पर गंभीर चिंता जताई और घायलों के इलाज का पूरा खर्च सरकार द्वारा उठाने का आदेश दिया। उन्होंने प्रशासन को निर्देश दिया कि पीड़ित परिवारों को हरसंभव सहायता प्रदान की जाए और हादसे की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।
कई परिवारों के लिए यह हादसा किसी त्रासदी से कम नहीं था, क्योंकि एक ही परिवार के कई सदस्यों ने अपनी जान गंवा दी। कुंभ मेले में देशभर से श्रद्धालु आते हैं, और यह हादसा उनके लिए एक भयावह अनुभव बन गया। इस भगदड़ में कुछ परिवारों के एक से अधिक सदस्य हताहत हुए हैं, जिससे उनका दुख और भी बढ़ गया।
कुंभ नगर के डीआईजी वैभव कृष्णन ने इस घटना को लेकर बयान जारी किया। उनके अनुसार, हादसे का मुख्य कारण भारी भीड़ के दबाव में बैरिकेड्स का टूटना था। जब बैरिकेड टूटा, तो श्रद्धालु अनियंत्रित हो गए और भगदड़ मच गई। अफरा-तफरी के बीच कई लोग गिर पड़े और एक-दूसरे के ऊपर चढ़ गए, जिससे दम घुटने और कुचलने के कारण कई लोगों की मौत हो गई।

महाकुंभ में इस बार श्रद्धालुओं की संख्या अपेक्षा से अधिक थी। मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ संगम तट की ओर उमड़ पड़ी थी। इसके कारण प्रशासन को कई पांटून पुलों को बंद करना पड़ा, जिससे श्रद्धालुओं के पास जाने के रास्ते सीमित हो गए।
इसके चलते लोगों को एक ही रास्ते से गुजरना पड़ा, जिससे भीड़ अत्यधिक बढ़ गई। जब श्रद्धालु बैरिकेड से पार जाने की कोशिश कर रहे थे, तो अत्यधिक दबाव के कारण बैरिकेड गिर गया और हजारों लोग अचानक एक ही दिशा में दौड़ पड़े। इसी दौरान कुछ लोग गिर गए और भगदड़ मच गई।
घटना के बाद प्रशासन ने तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया और घायलों को विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया। इसके अलावा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। प्रशासन अब यह सुनिश्चित करने के प्रयास में है कि आगे इस तरह की घटना न हो।
प्रशासन ने कुंभ क्षेत्र में सुरक्षा को और कड़ा कर दिया है। अतिरिक्त पुलिस बल और एनडीआरएफ की टीमें तैनात कर दी गई हैं। साथ ही, भीड़ प्रबंधन को लेकर नई रणनीति बनाई जा रही है, जिससे किसी भी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके।
इस बीच, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि, “वीआईपी कल्चर और सरकार की बदइंतजामी के कारण भगदड़ मची है।” वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “महाकुंभ को सेना के हवाले कर देना चाहिए।”

प्रयागराज में संगम के किनारे स्नान करने पहुंचे गाजीपुर के प्रकाश यादव जब यह खबर सुनते हैं, तो उनकी आंखों में पुरानी स्मृतियों की लहर दौड़ जाती है। वह बताते हैं, “साल 2013 के महाकुंभ में प्रयागराज जंक्शन पर भगदड़ हुई थी। उसी हादसे में मेरे एक रिश्तेदार किसी तरह बच गए थे, लेकिन दर्जनों परिवार तबाह हो गए थे। इस बार कहा जा रहा था कि व्यवस्थाएं चाक-चौबंद हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि इतनी दर्दनाक घटना फिर से हो गई?” इतना कहते ही उनका गला भर आता है।
प्रकाश यह भी कहते हैं, ” घटना के बाद चारो ओर अफरा-तफरी का माहौल था। घटना के बाद ज्यादतर उन लोगों की मौतें हुईं जो संगम नहाने आए लोगों के कपड़े और समानों की देख-भाल रहे थे। अचानक भीड़ बढ़ी तो लोग बेकाबू हो गए। जान-बचाने की कोशिश में लोग एक दूसरे के ऊपर गिरते चले गए।
इस घटना में कई लोग भीड़ के नीचे आ गए। हर तरफ चीत्कार मचा था और महिलाएं सीना पीटकर रो रही थीं। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि कौन बचा, कौन भीड़ की चपेट में आ गया।”

प्रकाश ही नहीं, महाकुंभ में आए हजारों तीर्थयात्री इस हादसे से स्तब्ध हैं। कुछ खुद को सौभाग्यशाली मान रहे हैं कि वे बच गए, लेकिन कई लोग अपनों को खोने के गम में टूट चुके हैं। कई तीर्थयात्री व्यवस्था को कोसते नजर आए। घटना के बाद प्रशासन का क्राउड मैनेजमेंट तो फेल हो ही गया, लेकिन पीने के पानी का इंतजाम नहीं होने के कारण तमाम लोग बेसुध होकर जहां-तहां गिर पड़े। भीड़ पर नियंत्रण के लिए किए गए सरकारी दावों की सच्चाई उस भगदड़ में उजागर हो गई, जिसने न जाने कितनी जिंदगियां लील लीं?
जब प्रयागराज जंक्शन बना था त्रासदी का केंद्र
इसी तरह का हादसा 10 फरवरी 2013, मौनी अमावस्या के दिन हुआ था। उस दिन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे थे। रेलवे स्टेशन पर हर ओर सिर ही सिर दिख रहे थे। प्लेटफार्म से लेकर फुट ओवरब्रिज तक तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ थी। धक्का-मुक्की इतनी भीषण थी कि कुछ श्रद्धालु ओवरब्रिज से नीचे गिर गए और कई भीड़ के नीचे कुचल गए। उस हादसे में उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के श्रद्धालुओं ने अपनी जान गंवा दी थी। प्रयागराज जंक्शन की भगदड़ उस समय के कुंभ मेले की सबसे बड़ी त्रासदी बन गई थी।
आजादी के बाद साल 1954 में हुए कुंभ मेले की यादें भी ऐसी ही दिल दहला देने वाली हैं। उस वर्ष मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी बांध पर भयानक भगदड़ मची थी। तब भीड़ को संभालने के इंतजाम नाकाफी साबित हुए थे। सैकड़ों श्रद्धालु इस घटना में अपनी जान गंवा बैठे थे।
लेकिन सरकार इस त्रासदी को छिपाने की कोशिश करती रही। हालांकि, तब के दो छायाकारों ने भगदड़ की असल तस्वीरें अपने कैमरों में कैद कर लीं और इस त्रासदी को दुनिया के सामने उजागर कर दिया। इन तस्वीरों ने प्रशासन की असफलता की पोल खोल दी थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत
इस हादसे को लेकर हाईकोर्ट के अधिवक्ता गजेंद्र सिंह यादव ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है। उनका कहना है कि यह एक बड़ी प्रशासनिक विफलता है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

अधिवक्ता गजेंद्र कहते हैं, “यह हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि यदि समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में ऐसे और भी हादसे हो सकते हैं। लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा के प्रति प्रशासन की इतनी लापरवाही निंदनीय है। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार इस हादसे पर क्या कदम उठाती है और क्या पीड़ितों को न्याय मिल पाता है या फिर यह मामला भी दबा दिया जाएगा।”
क्या बदला इन वर्षों में?
साल 1954 से लेकर 2013 और अब 2025-हर बार सरकारें बदलती रहीं, व्यवस्थाओं के वादे किए जाते रहे, लेकिन नतीजा वही रहा-हजारों श्रद्धालुओं की बेबस चीखें, लाशों के ढेर और परिजनों की बिलखती आवाजें। इस बार भी कहा गया था कि कुंभ में भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा को लेकर हाई-टेक इंतजाम किए गए हैं, लेकिन नतीजा सबके सामने है।
दिल्ली से आए संगम लाल सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं, “आखिर कुंभ मेले में भीड़ का प्रबंधन क्यों नहीं हो पाता? क्या लाखों-करोड़ों का बजट सिर्फ सरकारी ब्रांडिंग के लिए होता है? क्या इतिहास की त्रासदियों से कोई सबक नहीं लिया गया? ” इन सवालों के जवाब शायद प्रशासन के पास भी न हों, लेकिन उन परिवारों की पीड़ा को कौन समझेगा, जिन्होंने अपनों को खो दिया? क्या वे दोबारा इस महाकुंभ में आ पाएंगे? या फिर इस बार भी यह हादसा कुछ दिनों में भुला दिया जाएगा? “
कैसे हुआ हादसा?
प्रयागराज के संगम तट पर मंगलवार-बुधवार की रात करीब डेढ़ बजे भगदड़ मच गई। हादसे में अब तक 30 से ज्यादा लोगों की मौत होने की खबर है। भगदड़ में 50 से ज्यादा श्रद्धालु घायल हैं। एंबुलेंस से कुछ और शवों को मेला क्षेत्र से लाया गया, जिनके बारे में पुष्ट जानकारी नहीं मिल सकी।”इधर, प्रशासन ने मौत या घायलों की संख्या को लेकर हादसे के 15 घंटे बाद भी कोई जानकारी नहीं दी।

इस बीच, पीएम नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना जताई है। दिल्ली की एक चुनावी सभा में मोदी ने कहा, “मैं उत्तर प्रदेश सरकार के साथ निरंतर संपर्क में हूं। करोड़ों श्रद्धालु आज वहां पहुंचे हैं, कुछ समय के लिए स्नान की प्रक्रिया में रुकावट आई थी, लेकिन अब कई घंटों से सुचारू रूप से लोग स्नान कर रहे हैं।” उधर, सीएम योगी आदित्यनाथ ने श्रद्धालुओं से संयम बरतने की अपील करते हुए कहा, “श्रद्धालु संगम पर ही स्नान करने की न सोचें। गंगा हर जगह पवित्र है, वे जहां हैं उसी तट पर स्नान करें।”
मृतकों की सही संख्या और हादसे के कारणों को लेकर प्रशासनिक बयानबाजी जारी है, लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े आयोजन में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए? मंगलवार की रात करीब सवा एक बजे स्थिति बेकाबू हो गई, लेकिन अधिकारियों को इस घटना की जानकारी दो बजे तक भी नहीं थी या फिर वे इसे छिपाने में लगे थे।
घटनास्थल पर अफरा-तफरी का माहौल था, लोग अपने परिवार के सदस्यों को ढूंढ रहे थे, लेकिन प्रशासन न सिर्फ देर से पहुंचा, बल्कि कई जगहों पर पत्रकारों को कवरेज करने से भी रोका गया। पुलिस ने मौके पर कई मीडिया कर्मियों के मोबाइल से फोटो और वीडियो डिलीट करा दिए, जिससे साफ है कि मामला दबाने की कोशिश की जा रही थी।

इस दौरान लोगों ने “डायल 112” पर फोन कर पुलिस प्रशासन से मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में सवाल उठता है कि जब लाखों की भीड़ एक जगह इकट्ठा होती है, तो आपातकालीन सेवाएं कैसे ठप हो सकती हैं? सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या प्रशासन पहले से ही असफल हो चुका था, या फिर यह पूरी तरह से लापरवाही का नतीजा था?
इस भगदड़ के बाद दर्जनों लोग लापता हो गए हैं। किसी की मां, बेटी, पिता गायब हैं और कई लोग बदहवास होकर अपनों को ढूंढ रहे हैं। लेकिन प्रशासन की ओर से बुधवार की शाम तक कोई ठोस मदद नहीं मिल पा रही थी। अस्पतालों में भर्ती घायलों की सही जानकारी देने में भी आनाकानी की जा रही है। उधर फाफामऊ में जबर्दस्त भीड़ और अफरा-तफरी का आलम है। इस इलाके में प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था चरमराती नजर आ रही है।
प्रशासन की चुनौतियां
हादसे के बाद पूरे प्रयागराज में अफरा-तफरी का माहौल रहा। अस्पतालों में घायलों के परिजनों की भीड़ उमड़ पड़ी। मेडिकल कॉलेज और अन्य अस्पतालों में बेड कम पड़ गए, जिससे कई घायलों को जमीन पर ही लिटाकर इलाज किया गया। रामलाल, जो अपनी पत्नी के साथ हरिद्वार से आए थे, अपनी आंखों के सामने हुई इस भयावह घटना को याद कर कांप उठे। उन्होंने भावुक होकर कहा, “हमने सोचा नहीं था कि इतने बड़े आयोजन में भी इस तरह की अराजकता होगी। कुछ देर के लिए हमें भी लगने लगा था कि हम नहीं बचेंगे।”
संगम क्षेत्र में भगदड़ के बाद मची अफरातफरी में कई बच्चे और बुजुर्ग अपने परिजनों से बिछड़ गए। पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं ने ऐसे श्रद्धालुओं की पहचान के लिए विशेष शिविर लगा रखे थे, लेकिन अव्यवस्था के कारण कई लोग शाम तक अपनों को खोजते रहे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। मुख्य सचिव स्तर की एक कमेटी बनाई गई है, जो अगले 48 घंटे में अपनी रिपोर्ट देगी। अपर मुख्य सचिव (गृह) संजय प्रसाद ने कहा कि प्रारंभिक जांच में बैरिकेडिंग और भीड़ नियंत्रण में चूक की बात सामने आई है। इस बीच, प्रशासन ने महाकुंभ में शामिल सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को स्थिति सामान्य होने तक ड्यूटी पर बने रहने के निर्देश दिए हैं।
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में हर बार श्रद्धालुओं की संख्या प्रशासन के अनुमान से कहीं अधिक होती रही है। संगम क्षेत्र में एक दिन में 10 करोड़ से अधिक लोगों के पहुंचने की संभावना जताई गई थी, लेकिन सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स प्लानिंग में भारी खामियां उजागर हुईं। विशेषज्ञों का मानना है कि भीड़ नियंत्रण के लिए और सख्त उपाय करने की जरूरत थी, लेकिन सरकारी नुमाइंदों ने सुरक्षा इंतजाम सिर्फ वीवीआईपी तक ही सीमित रखा। आम तीर्थयात्रियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था। सरकारी अमला सिर्फ अति विशिष्ट लोगों को संगम स्नान कराने में जुटा रहा और दूसरी ओर, भगदड़ मचने से हादसा हो गया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वह कुंभ मेले की ऐतिहासिक और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का अध्ययन कर चुके हैं। साल 1954, 2013 और अब 2025 में हुई भगदड़ दर्शाती है कि इतने बड़े आयोजनों में भीड़ नियंत्रण की रणनीति में लगातार सुधार की जरूरत है। वीआईपी मूवमेंट और पब्लिक मूवमेंट को स्पष्ट रूप से अलग किया जाना चाहिए।”
वीआईपी कल्चर के चलते हादसा

महाकुंभ में हुई इस भगदड़ ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष इसे “प्रशासनिक विफलता” और “वीआईपी कल्चर” का नतीजा बता रहा है, जबकि सरकार इसे “अनियंत्रित भीड़ और अफवाहों का असर” कहकर बचाव कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है। कई लोग अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।
हादसे के बाद प्रशासन के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। भोपाल से आए संजय त्रिपाठी ने कहा, “हमने कई घंटों तक संगम क्षेत्र में फंसे लोगों को मदद के लिए पुकारते देखा। भगदड़ के बाद एंबुलेंस और राहत कार्य देरी से शुरू हुए, जिससे कई लोगों की जान जा सकती थी।”

प्रशासनिक दावों के बावजूद प्रयागराज जंक्शन पर स्थिति भयावह है। लोगों को रेलवे स्टेशन की ओर नहीं जाने दिया जा रहा है। तेलियरगंज की ओर जाने वाले रास्तों को भी प्रशासन ने बंद कर दिया है।
संगम नगरी में चल रहे महाकुंभ या अन्य धार्मिक स्नानों के दौरान भक्तों और संतों के स्वागत की परंपरा वर्षों पुरानी है। इसी परंपरा के तहत इस बार भी मेला प्रशासन ने संतों के स्नान के दौरान उन पर पुष्प वर्षा करने के लिए बड़ी मात्रा में गुलाब की पंखुड़ियां मंगवाई थीं। उम्मीद थी कि जैसे ही साधु-संत स्नान के लिए बढ़ेंगे, आसमान से गुलाब की पंखुड़ियां बरसाई जाएंगी, जिससे माहौल भक्तिमय हो उठेगा। लेकिन लाए गए फूल उपयोग में नहीं आ सके।

संतों के स्नान का प्रमुख उद्देश्य आध्यात्मिक शुद्धिकरण और परंपरा का निर्वहन है। ऐसे में कई संतों और अखाड़ों के साधुओं ने फूल-मालाओं और पंखुड़ियों की बारिश को गौण बताते हुए इसे तामझाम करार दिया। अब सवाल उठता है कि उन हजारों किलो गुलाब की पंखुड़ियों का क्या हुआ, जो मंगवाई गई थीं? क्या वे यूं ही बर्बाद कर दी गईं, या उनका कोई और उपयोग हुआ?
इस बीच, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने बताया, ‘हम अपने देवता के साथ सांकेतिक अमृत स्नान करेंगे। कोई बड़ा जुलूस नहीं निकालेंगे।’ संगम तट पर बुधवार को दोपहर 12 बजे तक 4.24 करोड़ लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई। महाकुंभ मेले और प्रयागराज शहर में इस समय करीब दस करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु मौजूद हैं। वहीं, 28 जनवरी तक 20 करोड़ लोग महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं। प्रशासन की कोशिश है कि आसपास के घाटों पर स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं को वापस किया जाए।
हादसे के बाद मेला क्षेत्र में ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से निगरानी बढ़ा दी गई है। संगम क्षेत्र में सुरक्षा और व्यवस्थाओं की समीक्षा के लिए डीजीपी, प्रमुख सचिव (गृह) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक हुई। प्रशासन की ओर से लोगों से अपील की जा रही है कि घबराने की जरूरत नहीं है, स्नान के लिए अलग-अलग घाटों का इस्तेमाल करें और निर्देशों का पालन करें।
आगे की कार्रवाई
1. घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं।
2. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नए सिरे से रणनीति बनाई जा रही है।
3. अगले प्रमुख स्नान पर्वों के दौरान भीड़ नियंत्रण के लिए अतिरिक्त जवानों की तैनाती होगी।
4. श्रद्धालुओं से संयम बनाए रखने और प्रशासन के निर्देशों का पालन करने की अपील की गई है।
विपक्ष ने बोला हमला
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार की नीतियों और कुंभ की व्यवस्थाओं को कटघरे में खड़ा करते हुए तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि “यह भगदड़ किसी प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह सरकार की विफलता का जीता-जागता उदाहरण है। वीआईपी कल्चर और प्रशासनिक नाकामी के कारण श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी।”
राहुल गांधी ने कहा कि महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में करोड़ों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सरकार ने आम लोगों की सुरक्षा से ज्यादा ध्यान विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों (वीआईपी) के लिए विशेष व्यवस्थाओं पर दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब वीआईपी लोगों के लिए अलग से विशेष स्नान घाट बनाए जा सकते हैं, उनकी आवाजाही के लिए विशेष सुरक्षा घेरे और बैरिकेडिंग लगाई जा सकती है, तो आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए?
“महाकुंभ आस्था का पर्व है, लेकिन यह सरकार के लिए दिखावे और प्रचार का माध्यम बन गया है। प्रशासनिक लापरवाही और कुप्रबंधन की वजह से कई निर्दोष लोगों की जान चली गई। सरकार को तुरंत इसकी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।”
वहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना को लेकर योगी सरकार पर हमला बोला और महाकुंभ की सुरक्षा को पूरी तरह से भारतीय सेना के हवाले करने की मांग की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बार-बार महाकुंभ और अर्धकुंभ के दौरान भगदड़, अव्यवस्था और प्रशासनिक नाकामी देखने को मिलती है, उसे देखते हुए अब जरूरी है कि इस आयोजन को पूरी तरह से सेना के नियंत्रण में दिया जाए।
“हर बार प्रशासन के दावों की पोल खुल जाती है। सरकार कहती है कि सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम हैं, लेकिन जब लाखों-करोड़ों श्रद्धालु आते हैं, तो व्यवस्था चरमरा जाती है। अधिकारियों और मंत्रियों की वीआईपी गाड़ियों के काफिले के कारण श्रद्धालुओं की आवाजाही प्रभावित होती है, और इस बार भी यही हुआ। अगर प्रशासन इस तरह से फेल होता रहेगा, तो यह देश की प्रतिष्ठा पर भी असर डालेगा। इसलिए सेना को इसकी पूरी जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिए।”
अखिलेश यादव ने इस भगदड़ को “सरकार की विफलता” करार देते हुए कहा कि “अगर सेना की मदद ली जा सकती है, तो इस तरह की अव्यवस्थाओं से बचा जा सकता है। भारतीय सेना ने कई बार बड़े आयोजनों और आपातकालीन स्थितियों में अपनी दक्षता साबित की है। ऐसे में कुंभ जैसे आयोजनों को सेना की निगरानी में लाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।”
राहुल गांधी और अखिलेश यादव के इन बयानों के बाद सरकार पर दबाव बढ़ गया है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अलावा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती, आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल, और अन्य विपक्षी दलों ने भी सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। मायावती ने कहा, “इतने बड़े आयोजन के दौरान सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए था कि हर श्रद्धालु की सुरक्षा प्राथमिकता हो, न कि सिर्फ चुनिंदा लोगों की। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?”
AAP नेता संजय सिंह ने भी इस हादसे के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि “जब दिल्ली में छोटे आयोजनों के लिए भी प्रशासन को महीनों पहले योजना बनानी पड़ती है, तो इतने बड़े महाकुंभ में इतनी लापरवाही क्यों?” विपक्ष के इन आरोपों के जवाब में यूपी सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि “सरकार ने महाकुंभ के लिए सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए थे। लेकिन अचानक भीड़ बढ़ने और अफवाहों के कारण भगदड़ मच गई। अब हालात नियंत्रण में हैं और सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ स्थिति को संभाल रही है।”
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं और कहा कि “श्रद्धालुओं की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। हम किसी भी दोषी को बख्शेंगे नहीं।”
कुंभ हादसों पर एक नजर—–
2003: हरिद्वार हादसा
साल 1986 में हरिद्वार में आयोजित कुंभ मेले में एक भयानक भगदड़ मच गई। घटना तब हुई जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों के साथ हरिद्वार पहुंचे। इस दौरान, सुरक्षाकर्मियों ने आम श्रद्धालुओं को नदी के किनारे जाने से रोक दिया, जिससे भीड़ बेकाबू हो गई। इस भगदड़ में 200 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। यह घटना एक बार फिर दर्शाती है कि जब सुरक्षा प्रबंधन कमजोर हो, तो भारी भीड़ को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
2003: नासिक कुंभ में 39 मौतें
साल 2003 में महाराष्ट्र के नासिक में हुए कुंभ मेले में भी एक गंभीर भगदड़ की घटना घटी। इस दौरान गोदावरी नदी में पवित्र स्नान के लिए हजारों तीर्थयात्री जमा हुए थे। जब अचानक भगदड़ मची, तो कई लोग एक-दूसरे को धक्का देते हुए गिर पड़े और कुचलने से कई लोग घायल हो गए। इस भगदड़ में 39 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। यह घटना भी उस समय हुई जब श्रद्धालुओं की भारी संख्या थी, और यदि सुरक्षा की योजनाएं उचित होतीं, तो यह दुर्घटना टाली जा सकती थी।
2013: प्रयागराज में 42 की मौतें
साल 2013 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले के दौरान एक और भगदड़ मच गई। 10 फरवरी 2013 को इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज ढहने से भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। श्रद्धालु अपनी यात्रा पर थे और जब फुटब्रिज गिरा, तो लोग उसे पार करने की कोशिश करने लगे, जिससे और ज्यादा दबाव बढ़ गया और लोग गिर गए। इस दुर्घटना में 42 लोगों की मौत हो गई और 45 लोग घायल हो गए। यह घटना दर्शाती है कि जब सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा उपायों का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है, तो ऐसी दुखद घटनाएं घटित हो सकती हैं।
(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं। प्रयागराज से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
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