दिल्ली विधानसभा चुनाव में वोटर सबको घुटने टेकने के लिए कर रहा मजबूर

दिल्ली में चुनाव है, इसका अहसास कल 28 जनवरी से होना शुरू हुआ। यदि आपका मोबाइल नंबर कई वर्षों से एक ही बना हुआ है तो आपके पास एक दिन में 10-20 स्पैम कॉल अवश्य आ रहे होंगे। ये सभी ऑटोमेटेड कॉल्स अपने-अपने दलों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों की ओर से बड़ी मात्रा में भेजे जा रहे हैं। सबसे अधिक भाजपा पार्टी और उसके बाद आप पार्टी के स्पैम कॉल्स आ रहे हैं। कांग्रेस भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं है।

जून 2024 के बाद 4 विधानसभा चुनावों के परिणामों को देखते हुए कोई भी ओपिनियन पोल जारी नहीं किया गया है। वैसे भी दिल्ली की आबादी को किसी जाति, धर्म के दायरे में बांधकर पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है। हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, यूपी और बिहार मूल के लोगों की बहुतायत दिल्ली की बुनावट को काफी हद तक राष्ट्रीय पहचान प्रदान कर देती है। इसके बावजूद, कामकाजी और उद्यमी होने के नाते बहुसंख्यक आबादी के लिए रोजी-रोटी, महंगाई, परिवहन और शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे अहम रहते हैं।

शायद यही कारण है कि लगातार दो बार आम आदमी पार्टी (आप) से बुरी तरह पिटने के बाद, इस बार के चुनाव में भाजपा काफी संभलकर अपनी चुनावी बिसात को बिछा रही है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के कार्यकर्ता खुलेआम अरविंद केजरीवाल की फ्री बिजली, फ्री पानी की योजना का मखौल उड़ाते हुए, दिल्ली वालों को भीख पर जीने की आदत डालने का लांछन लगाते थे। लेकिन इस बार बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सबसे पहले मुद्दे के तौर पर इसी बात को आगे रखा है कि जो भी स्कीम दिल्ली में चल रही हैं, उसे जीतने के बाद जारी रखा जायेगा। इतना ही नहीं उन्हें और भी प्रभावी ढंग से लागू किया जायेगा।

आम आदमी पार्टी इसे अपनी बड़ी जीत के तौर पर बता रही है। उसका साफ़ कहना है कि यह एक तरह से उसकी स्कीम को सही ठहराना है, लेकिन बीजेपी इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार करने से कतरा रही है। दिसंबर तक ऐसा माना जा रहा था कि इस बार आप और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। लेकिन जैसे-जैसे 5 फरवरी नजदीक आती जा रही है, ऐसा जान पड़ता है कि आम आदमी पार्टी एक बार फिर से अपने वोट बेस को फिर से अपने पक्ष में करती जा रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक, अभय कुमार दुबे के मुताबिक सीएसडीएस के प्रमुख संजय कुमार का भी आकलन है कि गरीब वर्ग का वोट अभी भी आप के साथ बना हुआ है। अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से यह वोट बैंक प्रभावित नहीं हो पाया है। उनके मुताबिक, आप पार्टी अभी भी भाजपा से आगे चल रही है। 

दिल्ली के मतदाताओं के मूड को लेकर राजनीतिक दल ही नहीं राजनीतिक विश्लेषक भी समझने में नाकामयाब रहे हैं। यह तीसरी बार है जब लोकसभा चुनावों में बीजेपी तीनों बार सभी 7 सीटों को अपने पाले में लाने में कामयाब रही। लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव की बारी आती है, दिल्ली के आम लोगों का मूड पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के पक्ष में चला जाता है। 

लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के वोट आधे से भी कम हो जाते हैं। उनमें से बड़ा हिस्सा बीजेपी और छोटा हिस्सा कांग्रेस के खाते में चला जाता है। वहीं विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट आश्चर्यजनक ढंग से सफाचट होकर आप पार्टी के पक्ष में चले जाते हैं, और बीजेपी भी अपने 15 वर्ष पुराने 32-38% वोट बैंक तक सिमट जाती है।

यह तथ्य इस बात को पुख्ता करता है कि दिल्ली का गरीब मतदाता राज्य और केंद्र की राजनीति के बारे में अपनी ठोस राय रखता है। उसे केंद्र में स्थिर सरकार चाहिए, और यदि उसमें हिंदुत्व का पुट है तो और भी बेहतर। लेकिन इसके साथ ही वह दिल्ली में पिछले दस वर्षों से बेजान पड़ी कांग्रेस को आप पार्टी से ऊपर रखता है। इसका साफ़ मतलब है कि यदि उसे कांग्रेस वास्तव में विकल्प बनती नजर आई, तो दिल्ली पूरी तरह से एक बार फिर 2009 की तरह कांग्रेसमय नजर आने लगे। 

इस कड़वी हकीकत को समझने में भाजपा को दस वर्ष लग गये। आज उसे बखूबी पता है कि भले ही दिल्ली की बहुसंख्यक आबादी उन राज्यों से आती है, जहां पर उसकी राज्य सरकारें दो-तीन कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं, लेकिन दिल्ली में आकर उन्हीं लोगों की प्राथमिकताएं पूरी तरह से बदल जाती है।

कांग्रेस के हाथ में उलटफेर की ताकत थी 

इस बार ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि 11 वर्षों तक बनवास काटने के बाद कांग्रेस कुछ हरकत करे। मार्च 2020 में हुए दिल्ली दंगे और दलित वोट बैंक में फिर से कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति दिल्ली में बड़ा उलटफेर कर सकती थी। लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने लगता है पिछले कई महीनों से अपनी चुनावी रणनीति पर काफी काम कर रखा था।

शुरू-शुरू में कांग्रेस ने जब अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की तो लगा कि उसने अपने वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली के दंगल में उतारकर वाकई में इसे गंभीरता से लिया है। लेकिन एक चुनावी सभा करने के बाद जिस प्रकार से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक के बाद एक लगातार तीन चुनावी सभाओं को स्वास्थ्य का बहाना बनाकर कैंसिल किया, वह एक तरह से आप पार्टी के लिए हरी झंडी देना साबित हुआ। 

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने दोहरी चुनौती मौजूद थी। इंडिया गठबंधन में बाकी अधिकांश क्षेत्रीय दल आप पार्टी के समर्थन में थे, और इसके पीछे उनका तर्क था कि बीजेपी को हराने के लिए आम आदमी पार्टी ही सबसे उपयुक्त है। कांग्रेस यदि अपने वोट बैंक को 4 से बढ़ाकर 12-15% करने में कामयाब रहती है, तो यह बीजेपी की जीत की वजह बनेगी। 

फिर कांग्रेस को भी अहसास है कि उसके पास भले ही राज्य स्तरीय नेतृत्व है, लेकिन जमीन पर उसकी पकड़ न के बराबर है। ऐसे में वह एक-दो सीट भी जीत जाये तो गनीमत है, लेकिन खुद भी हारने और आप पार्टी की शिकस्त का सारा ठीकरा उसके सिर फूटेगा। 

यहां तक तक तो ठीक था, लेकिन पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्ट राजनेताओं की सूची जारी करते हुए, लिस्ट में राहुल गांधी को भी नत्थी कर दिया, जिसने एक बार फिर से दिल्ली के सियासी तापमान को अचानक से कई गुना बढ़ा दिया है।  

इसके बाद तो कांग्रेस नेतृत्व भी सक्रिय हो चुका है, जबकि स्थानीय नेतृत्व तो पहले से अरविंद केजरीवाल को अपना नंबर वन दुश्मन माने बैठा था। एक सभा में राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल की राजनीति के बारे में कहा, “जब वे पहली बार आये थे, तो उनके पास छोटी सी गाड़ी थी। उन्होंने कहा था कि नए तरीके की राजनीति करूँगा। बिजली के खंभे पर चढ़ गये थे और कहा था कि दिल्ली को बदल देंगे। जब दिल्ली में हिंसा हुई तो कहीं नहीं नजर आये। शराब का घोटाला किया। मोदी जी ने मेरा मकान खाली करा लिया, वहीं केजरीवाल शीशमहल में रहते हैं।”

इसके जवाब में अरविंद केजरीवाल ने जो कहा, वो बीजेपी के आईटी सेल वाले आरोप थे, जिसमें राहुल और सोनिया गांधी पर नेशनल हेराल्ड केस मामला, रोबर्ट वाड्रा मामला शामिल है। अरविंद केजरीवाल के मुताबिक, इन मामलों में बीजेपी और कांग्रेस की पर्दे के पीछे की सांठगाँठ है। 

ये ऐसे आरोप हैं, जो आगे चलकर देश की राजनीति तक को प्रभावित कर सकते हैं। यहां पर अभी तक कांग्रेस बड़ी दुविधा की स्थिति में थी। उसे लड़ना तो बीजेपी से है, लेकिन दिल्ली, पंजाब में तो यह आप पार्टी है, जिसने उसके वोट बैंक पर भारी सेंध लगा रखी है। इसके अलावा, गुजरात और गोवा में भी यह पार्टी बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के बजाय उसी को खत्म कर अपना राष्ट्रीय वजूद बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है। 

उम्मीद है कि दिल्ली चुनाव के बाद कांग्रेस को उसका जवाब मिल जाये, लेकिन फ़िलहाल दिल्ली के आम लोगों को अपने भविष्य की चिंता है। ऐसे में अभी तक की स्थिति से तो यही लगता है कि दिल्ली में यथास्थिति ही कायम रहने वाली है। अधिक से अधिक यह हो सकता है कि आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में 5-6% की गिरावट देखने को मिले, वहीं बीजेपी 40% तक पहुँचने में कामयाब रहे। 

अल्पसंख्यकों के बीच AIMIM की कोशिश  

इस पहलू पर अभी अधिकांश मीडिया का ध्यान नहीं जा रहा है। लेकिन एक के बाद एक कोर्ट से दो फैसले आये हैं, जो दिल्ली चुनाव की सूरत को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पूर्व आप पार्षद और 2020 के दिल्ली दंगों के कथित आरोपी ताहिर हुसैन को कस्टडी पैरोल पर अपना चुनाव प्रचार करने की इजाजत मिल गई है। बता दें कि ताहिर हुसैन पिछले 5 वर्ष से जेल में बंद थे, और उन्हें अभी तक चुनाव प्रचार की इजाजत नहीं मिली थी। मुस्तफाबाद विधानसभा से AIMIM के टिकट पर चुनाव लड़ रहे ताहिर हुसैन के पक्ष में उनकी बेटी अभी तक क्षेत्र की जनता से भावनात्मक अपील कर रही थी।

इसी तरह AIMIM पार्टी के ओखला सीट से उम्मीदवार शिफा उर रहमान को भी आज कोर्ट ने पैरोल पर चुनाव प्रचार की इजाजत दे दी है। पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी विशेषकर ओखला सीट पर जमकर मेहनत कर रहे हैं।

AIMIM के इन दोनों उम्मीदवारों को पैरोल पर छोड़े जाने को लेकर हिंदुत्ववादी शक्तियों ने अभी से अपने प्रचार अभियान को तेज कर दिया है। इसका दोहरा लाभ भाजपा को ही होना है। एक तरफ मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय में यदि बिखराव होता है तो उसे इसका फायदा मिलेगा, दूसरा इससे उसे चुनाव के अंतिम चरण में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में मदद मिल सकती है। 

आम आदमी पार्टी नए नैरेटिव के साथ सबसे आगे 

इन तमाम कोशिशों के बावजूद अरविंद केजरीवाल की पार्टी ऐसा लगता है कि दिल्ली के आम लोगों की नब्ज को सबसे बेहतर समझती है। पार्टी ने काफी पहले से ही कहना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस तो सत्ता में आने से रही, इसलिए उसे वोट देने का मतलब है बीजेपी को जिताना। और भाजपा विरोधी वोटर इस बात से भलीभांति परिचित है।

इसके अलावा, पार्टी दिल्ली की कामकाजी मध्य वर्गीय आबादी और गरीबों को ध्यान में रखते हुए एक-एक कर उन मुद्दों को सामने ला रही है, जिसे आमतौर पर अन्य पार्टियों और राज्य चुनावों में मुद्दा नहीं बनाया जाता। उदहारण के लिए फ्रीबी (मुफ्त की रेवड़ी) के बारे में अरविंद केजरीवाल देश बढ़ती गैरबराबरी का मुद्दा उठा रहे हैं। 

उनका साफ़ कहना है कि वे बेहद कम खर्चे में दिल्ली की जनता को मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, मोहल्ला क्लिनिक और महिलाओं को फ्री बस सेवा की सुविधाएं मुहैया करा रहा हूँ। इसके उलट, मोदी जी पिछले 5 वर्षों में 400 कॉर्पोरेट को 10 लाख करोड़ के कर्जे माफ़ कर चुके हैं। इसके बाद वे सवाल करते हैं कि सरकार को आम लोगों के लिए बजट को खर्च करना चाहिए कि अमीर लोगों पर उड़ा देना चाहिए। दिल्ली के गरीबों और कोरोना महामारी के बाद तेजी से निम्न या गरीब वर्ग में जा रहे मिडिल क्लास को समझ भी आ रही है।    

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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