योगी जी! तख्ती पर ‘सुरक्षा’ नहीं, ‘अराजकता’ लिखा है

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यह देखना खासा दिलचस्प है कि इस बार के बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी शासन की तथाकथित ‘अराजकता’ को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने के लिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश (यूपी) के बड़बोले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आगे कर दिया है। जबकि इन भगवा पुरुष का अपना कानून-व्यवस्था का ट्रैक रेकॉर्ड ‘कानून का शासन’ से एकदम बेपरवाह, बल्कि अराजक पुलिस व्यवस्था चलाने का रहा है।

मुस्लिम बहुल मालदा शहर में आयोजित बंगाल की अपनी पहली चुनावी सभा में योगी के दावे के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अपराधी गले में जान बख्शने की तख्ती लटकाने को मजबूर कर दिए गए हैं। क्या सचमुच? यदि ऐसा होता तो यूपी में आम लोगों का कानून के रास्ते सुरक्षा और न्याय मिल पाने का भरोसा उठ न गया होता।

एक जांचा-परखा तथ्य है कि समाज अपनी पुलिस के व्यवहार से भी बहुत कुछ सीखता है। जिस समाज में पुलिस कानून की परवाह नहीं करती, वहां लोग भी प्रायः कानून की धज्जियाँ उड़ाते मिलेंगे। उत्तर प्रदेश से इस हफ्ते हाथरस का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें गाँव की एक लड़की रो-रो कर अपने पिता के हत्यारे का ‘एनकाउंटर’ करने यानी उसे पुलिस द्वारा पकड़कर मार डालने की गुहार लगा रही है। जिस दबंग के खिलाफ लड़की की यौन प्रताड़ना का केस लड़की के परिवार ने 2018 में दर्ज कराया था, अब उसी व्यक्ति ने खेत में पिता को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। जाहिर है, आज लड़की की ‘एनकाउंटर’ की मांग की रट लगाने का एक ही संदेश निकलता है- पीड़ित का योगी सरकार की कानून-व्यवस्था से भरोसा उठ गया है।

दरअसल, बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावे कुछ भी रहे हों लेकिन उनके प्रदेश से आये दिन आती किसी न किसी लोमहर्षक अपराध की खबर से समाज हिला रहता है।अपराध नियंत्रण के नाम पर अपनी पुलिस को योगी ने, स्वयं उनके ही शब्दों में, ‘राम नाम सत्य’ करने का लाइसेंस दिया हुआ है।फलस्वरूप, उनकी निरंकुश पुलिस निरंतर हत्या, टार्चर, अपहरण, अपराधियों से मिलीभगत, झूठे मुकदमे और धन वसूली के आरोपों से घिरी मिलेगी|

योगी राज की यूपी के सन्दर्भ में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वहां पुलिस के भीतर सरकार समर्थित अपराधीकरण ने समाज में अपराधीकरण को हवा दी है, और, पुलिस की अपनी नृशंसता अपराध की नृशंसता में भी प्रतिबिंबित होती जा रही है।

दशकों से यूपी की प्रथा रही कि आंकड़ों की हेरा-फेरी से कागजों पर अपराध नियंत्रण को बेहतर दिखाया जा सकता है। दरअसल, ऐसा यूपी में ही नहीं, कमोबेश अन्य प्रदेशों में भी होता आया है। हालाँकि, इस प्रयास में योगी के लिए अपनी ‘रामराज्य’ वाली छवि को निभाना एक बड़ी समस्या है। क्योंकि सोशल मीडिया की सक्रियता के चलते उनकी पुलिस के लिए भी स्त्री विरोधी गंभीर अपराधों को छिपा पाना मुश्किल हो चला है।

इसी बृहस्पतिवार को स्वयं योगी के गृहनगर गोरखपुर में एक नाबालिग लड़की की सामूहिक बलात्कार की शिकायत पर थाने में कार्यवाही न होने पर सोशल मीडिया तुरंत सक्रिय हो गया। लिहाजा, पुलिस को मुक़दमा भी दर्ज करना पड़ा और साथ ही दोषी पुलिसकर्मियों का निलंबन भी हुआ। भारत सरकार के संगठन एनसीआरबी के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, 2015 के बाद चार वर्षों में यूपी में स्त्री विरुद्ध अपराध, देश में सबसे अधिक, 66 प्रतिशत बढ़ गए हैं। योगी की ऐन नाक के नीचे राजधानी लखनऊ में, प्रदेश भर में, सर्वाधिक स्त्री विरुद्ध अपराध रिपोर्ट हो रहे हैं।

यूपी में स्त्री विरुद्ध अपराधों को लेकर बंगाल चुनाव प्रचार के सन्दर्भ में एक आयाम और है। किसी भी चुनावी सभा में योगी रामराज्य का चारा भी फेंकने से नहीं चूकते। इसे उन्होंने भाजपा के भीतर अपना एक विशिष्ट ब्रांड जैसा बना लिया है। राजनीतिक नफा-नुकसान के नजरिये से देखा जाए तो बंगाल में इससे ममता शासन की ‘अराजकता’ को तीखे रूप से रेखांकित करने में उन्हें आसानी भी होगी। लेकिन, योगी जी, रोजाना आपके शासित यूपी में घटने वाली कोई न कोई नृशंस आपराधिक घटना याद दिला जाती है कि यूपी में स्त्री के हाथ में भी एक तख्ती है और उस पर ‘सुरक्षा’ नहीं, ‘अराजकता’ लिखा है!

(विकास नारायण राय हैदराबाद पुलिस अकादमी के निदेशक रहे हैं।)

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