Saturday, April 27, 2024

देश की 57 फीसदी महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त, 33.8 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार: स्मृति ईरानी

लोकसभा के मॉनसून सत्र में सबसे चर्चित चेहरा महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का रहा। हंगामें से भरे इस सत्र में स्मृति ईरानी की चिखती आवाज विपक्ष पर हमलावर थी। इसी सत्र में उन्होंने बेहद सौम्य तरीके से कुछ ऐसे हंगामाखेज तथ्यों को पेश किया, जिसके बारे में फिलहाल तो कोई बात नहीं हो रही है।

उन्होंने 28 जुलाई, 2023 को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) के पांचवें राउंड के आंकड़ों के आधार पर बताया कि 15 से 49 वर्ष की महिलााओं की कुल जनसंख्या का 57 प्रतिशत हिस्सा खून की कमी से ग्रस्त है। और 5 साल से कम उम्र के बच्चों का 33.8 प्रतिशत हिस्सा बाधित-विकास का शिकार है (लोकसभा में प्रश्न संख्या 1591 का जबाब)।

यहां यह जान लेना ठीक होगा कि बाधित विकास शब्द अंग्रेजी के स्टंटेड का हिंदी रूपांतर है। यह शरीर के विकास के लिए जरूरी पोषण की कमी से पैदा होता है। लेकिन, इसके पीछे एक बड़ा कारण माता-पिता के पोषण और विकास के साथ जुड़ा होता है। खासकर, यदि मां का पोषण और स्वास्थ्य बाधित है तो इसका सीधा प्रभाव उसके जन्म लेने वाले बच्चे पर होता है। जन्म के समय और उसके बाद की पोषण की स्थिति अच्छी नहीं है, तब इस तरह के बाधित विकास की स्थितियां बनने लगती हैं। ये दोनों एक दूसरे जुड़े हुए हैं और निर्भर भी हैं।

उन्होंने इसी सर्वे के हवाले से बताया कि जन्म के समय में प्रति हजार बच्चों की मौत में 8.80 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह 49.7 से घटकर 41.9 प्रतिशत हो गया है। लेकिन, उन्होंने यह भी बताया कि सरकार के पास कुपोषण से मरने वाले बच्चों के बारे में राज्यों द्वारा दी गई ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है, जिससे इसके बारे में बताया जा सके।

यदि हम 29 सितम्बर, 2022 के इकोनॉमिक टाइम्स की खबर (वीडियो) देखें, तो सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में बताया था कि 2022 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में हुई मौत का 69 प्रतिशत हिस्सा कुपोषण की वजह से हुआ है और भूखे लोगों की संख्या 19 करोड़ (2018) से बढ़कर 35 करोड़ हो गई है। यहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने यह नहीं बताया कि किन कारणों से राज्यों से यह रिपोर्ट नहीं आई है।

लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीन पंवार ने 2017-19 के आंकड़ों के आधार पर बताया कि बच्चों की जन्म के समय हो रही मौतों में 31.2 प्रतिशत हिस्सा कम भार और समय से पहले होने वाला प्रसव है और 17.5 प्रतिशत न्यूमोनिया जैसी समस्या है। इसमें अन्य जिन कारणों को बताया गया है, उसमें सांस, संक्रमण, चोट जैसे कारण हैं, जो या तो पोषण और देखभाल से जुड़े हैं या उपयुक्त नर्सिंग का अभाव है।

मार्च, 2023 में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा को सूचित किया था कि पोषण अभियान के तहत 5.6 करोड़ बच्चों के मापन में 43 लाख बच्चे कुपोषण (गंभीर और मध्यम) के शिकार मिले। यह संख्या 7.7 प्रतिशत बैठती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (2019-21) में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में पोषण संबंधी समस्या बाधित विकास, क्षरण और कम-भार का प्रतिशत क्रमशः 35.5, 19.3 और 32.1 प्रतिशत था। यह कुल योग 86.9 प्रतिशत बैठता है।

नवम्बर, 2019 में उन्होंने संसद में कहा था कि भोजन की मात्रा से अधिक उसकी गुणवत्ता जरूरी है जिससे कि गरीब परिवारों में कुपोषण की समस्या को हल किया जा सके। इसी जवाब में उन्होंने नीति आयोग के आंकड़ों के हवाले से बताया था कि केवल 9 प्रतिशत लोगों को ही उचित पोषण वाला भोजन मिल पाता है। उन्होंने इस समस्या से लड़ने के लिए एकजुट प्रयास और आंदोलन बनाने का के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही थी।

लेकिन, जो परिणाम आ रहे हैं वे उन वादों, संकल्पों से भिन्न हैं। उन्होंने 21 जुलाई, 2023 को चल रहे मॉनसून सत्र में 2021-22 और 2022-23 के आंकड़ों को आधार बनाते हुए लोकसभा में बताया कि 20 से ज्यादा राज्यों में लैंगिक अनुपात में गिरावट आई है। यह गिरावट 10 अंकों की है। हरियाणा में पिछले एक साल के भीतर ही 10 अंक की गिरावट आई है। 2022 में प्रति हजार लड़कों पर 916 लड़कियां थीं, जो अब 906 पर पहुंच गई है।

अन्य राज्य निम्न हैंः बिहार, आंध्र-प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और प.बंगाल। यह आंकड़ा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बहुप्रचारित नारे की उस सच्चाई को उजागर कर देता है, जिसका ढोल पीटा गया लेकिन इस दिशा में काम करने की जगह बेटियों पर हमला करने वाली राजनीति को बढ़ाया गया।

इसी दिन उन्होंने यह भी बताया कि 2.75 लाख बच्चे पिछले पांच सालों में गायब हुए, जिसमें से 2.12 लाख बच्चियां थीं। सरकार का कहना है कि इसमें से 2.4 लाख से अधिक की तलाश कर ली गई। उन्होंने यह भी बताया कि इस साल 1,550 ऐसे बच्चों को मुक्त  कराया गया जो सड़क पर बेआस थे।

यहां यह बता देना उपयुक्त होगा कि मार्च, 2022 में एनसीपीसीआर ने बताया था कि लगभग सड़क पर जीने वाले 20 लाख बच्चों को चिन्हित किया गया है और उन्हें व्यवस्थित जीवन देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। केवल दिल्ली में 73,000 हजार बच्चे सड़क पर जीवन जी रहे थे जिसमें से 1,800 बच्चों को सामान्य जीवन की प्रक्रिया में शामिल किया जा सका है।

इस संगठन का मानना है कि देश में 15 से 20 लाख ऐसे बच्चे हैं जो सड़क पर ही जीवन जी रहे हैं। इसी तरह, यदि हम गृह मंत्रालय के दिये आंकड़ों को देखें, तो गायब होते बच्चों की संख्या कुछ अलग ही दिखती है। 2017-21 के बीच 3 लाख 40 हजार, 418 बच्चों के गायब होने की सूचना दर्ज है (20 सितम्बर, 2022, डीएनए डिजिटल मीडिया रिपोर्ट)। यह खबर एनसीआरबी के  आधार पर बताती है कि प्रतिदिन 212 बच्चे गायब होते हैं इसमें 75 प्रतिशत बच्चियां हैं।

मॉनसून सत्र, जो भारतीय संसदीय इतिहास में एक प्रमुख मोड़ साबित हो रहा है, में एक के बाद एक बिल पेश हो रहे हैं और उसमें जवाब भी दिये जा रहे हैं। ये बिल और जवाब अक्सर खबर बन पाने से दूर हो जा रहे हैं। ये जो जवाब आ रहे हैं, वे चाहे मनरेगा  मजदूरों से संबंधित हों या देश के स्वास्थ्य के बारे में, वे इतना जरूर बता रहे हैं कि देश में आम जिंदगी बेहद तबाह है, रोजगार की स्थिति बदतर है। इन आंकड़ों को सरकार के नारों और योजनाओं के मद्देनजर पढ़ना, देखना चाहिए। चाहे वह आयुष्मान भारत हो,  सबको रोजगार हो, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ हो या सबकी सुरक्षा का दावा हो।

अंत में, उपरोक्त विषय से अतिरिक्त केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के एक और जबाब को उद्धृत करना उपयुक्त होगा। उन्होंने इसी सत्र में बताया कि मुस्लिम आबादी 2023 के अंत तक 19.7 करोड़ रहने का अनुमान है। 2011 की जनगणना में जनसंख्या भागीदारी  14.2 प्रतिशत थी। यह लगभग 17.2 करोड़ बैठता है। नये अनुमानित आंकड़ों को प्रतिशत में बदला जाए तो यह 14.2 प्रतिशत ही बनता है।

इस अनुमान में स्पष्ट है कि मुस्लिम जनसंख्या स्थिर दिख रही है। लेकिन, यदि श्रम भागीदारी अनुपात देखें, तो भारत के औसत से उनकी भागीदारी लगभग 4 प्रतिशत कम है। आने वाले समय में, सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में देखा जा सकेगा कि इसकी वास्तविक स्थिति क्या है। इस संदर्भ में सच्चर कमेटी जैसी रिपोर्ट ही इसका खुलासा ठीक से कर सकेगी।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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