Saturday, April 20, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

ममता बनर्जी का ‘एकला चलो रे’ का राग, महागठबंधन की संभावनाओं को धक्का

नई दिल्ली। 2024 लोकसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय स्तर पर संघ-भाजपा के समानांतर एक मजबूत महागठबंधन बनाने की बात होती रही है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल समान विचारधारा वाले दलों का गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरने की वकालत करते रहे हैं। विपक्षी दलों का मानना है कि इससे भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा रोक कर संघ-भाजपा को हराया जा सकता है। इस दिशा में कांग्रेस गठबंधन के नेता और पीएम कुर्सी पर अपनी दावेदारी छोड़ने को भी तैयार हैं। लेकिन विपक्षी खेमे के कई क्षेत्रीय दल अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते विपक्षी एकता से दूरी बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ताजा बयान विपक्षी एकता को पलीता लगाने के लिए काफी है। ममता बनर्जी 2019 के लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों के गठबंधन से दूर रहीं। अब 2024 में भी अकेले चुनाव लड़ने का राग अलाप रही हैं।

ममता बनर्जी ने 2024 में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का बयान देकर राजनीतिक भूचाल ला दिया है। उनके बयान ने कांग्रेस समेत सीपीएम, राजद, जेडीयू और सपा जैसे दलों के संभावित गठबंधन को बनने के पहले ही कमजोर घोषित कर दिया है।

दरअसल, ममता बनर्जी का यह बयान तब आया है जब पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में भाजपा ने राजनीतिक बढ़त बनाते हुए अपने को राष्ट्रीय राजनीतिक विकल्प साबित किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी का यह बयान उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं से जोड़कर देखना चाहिए। ममता बनर्जी और कई क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल तो होना चाहते हैं, लेकिन उनके नेतृत्व की बजाए खुद नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहते हैं। जब उक्त क्षेत्रीय दलों को यह सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक महागठबंधन में सारे विपक्षी दलों का आना महज कोरी कल्पना है।

त्रिपुरा चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला, सीपीएम बहुमत से काफी दूर रही तो कांग्रेस को नाममात्र की सीट पर ही संतोष करना पड़ा। त्रिपुरा में बड़ी बंगाली आबादी है, बावजूद इसके टीएमसी का खाता नहीं खुला। जबकि मेघालय में टीएमसी के केवल पांच विधायक ही जीते। मेघालय और त्रिपुरा में बड़ी बंगाली आबादी है। टीएमसी ने मेघालय और त्रिपुरा में अपना समय और संसाधन लगाया।

टीएमसी बंगाल के इतर कई राज्यों में अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहती है। इसी कड़ी में वह गोवा चुनाव में भी जोर-शोर से उतरी थी। गोवा में भी टीएमसी ने कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया था। लेकिन, गोवा विधानसभा चुनाव में भी टीएमसी का हाई-प्रोफाइल अभियान फ्लॉप शो साबित हुआ था।

पूर्वोत्तर के नतीजों के बाद टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी की टिप्पणी पार्टी की कमजोर आकांक्षाओं का संकेत देती है। ममता ने कहा-“2024 के चुनावों में, टीएमसी अकेले मैदान में उतरेगी। हम लोगों के समर्थन से लड़ेंगे। मेरा मानना है कि जो लोग भाजपा को हराना चाहते हैं वे निश्चित रूप से टीएमसी को वोट देंगे।”

ममता बनर्जी का यह बयान भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ एकजुट विपक्षी गठबंधन के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा। पश्चिम बंगाल में सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत और टीएमसी की हार ने ममता बनर्जी के क्रोध को बढ़ा दिया है।

टीएमसी सूत्रों का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका निभाने के लिए पार्टी का दूसरे राज्यों में भी मजबूत जनाधार होना चाहिए। जिसके लिए टीएमसी 2021 के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में सत्ता में वापस आने के बाद से ही कोशिश कर रही है। बीजेपी के राजनीतिक उत्पीड़न को रोकने के लिए यह कारगर रास्ता है। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद टीएमसी को सफलता नहीं मिल रही है।

दूसरे राज्यों में टीएमसी का जनाधार बढ़ाने के लिए ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को राष्ट्रीय महासचिव के रूप में पदोन्नत करते हुए राष्ट्रीय विस्तार का काम सौंपा, अभिषेक ने गोवा, मेघालय और त्रिपुरा चुनावों में बड़े पैमाने पर प्रचार किया लेकिन टीएमसी असफल रही है।

त्रिपुरा में टीएमसी का वोट शेयर (0.88%) नोटा के वोट शेयर (1.36%) से भी कम है। टीएमसी नेताओं को इस पर आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि त्रिपुरा में 2021 के स्थानीय चुनावों में पार्टी को 17 प्रतिशत वोट मिले थे। मेघालय में टीएमसी को 5 सीटें और 13.7 प्रतिशत वोट मिले।

ममता के तीखे तेवर पर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि टीएमसी ने चुनावी हार के बाद अब अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो दिया है, उन्होंने इसका संज्ञान लेने के लिए चुनाव आयोग को ट्वीट किया। बीजेपी नेता ने ट्वीट किया, “टीएमसी सबसे भ्रष्ट क्षेत्रीय पार्टी है।”

सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि टीएमसी के पास राष्ट्रीय राजनीति के बारे में बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचा है। “जो पार्टी बंगाल में सुशासन की पेशकश नहीं कर सकती, उसे बहुत अधिक महत्वाकांक्षा दिखाने से बचना चाहिए। जब इसके नेता जेल में हैं और जब इसकी सरकार अपने कर्मचारियों को महंगाई भत्ता नहीं दे सकती है, तो पार्टी का चुनाव में हारना तय है। ”

कांग्रेस सांसद और पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, जिनके लिए सागरदिघी उपचुनाव एक व्यक्तिगत जीत थी, ने कहा कि टीएमसी का खराब प्रदर्शन आश्चर्यजनक नहीं है। “समाज में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। टीएमसी को दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ना चाहिए।”

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने के आरोप पर टीएमसी ने कहा कि शुभेंदु अधिकारी झूठ फैला रहे हैं। टीएमसी के राज्य उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार ने कहा, ‘पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा वास्तव में मजबूत हुई है। मेघालय में, हमारे पास 10 प्रतिशत से अधिक वोट हैं, और इसलिए हमारे खाते में एक और राज्य है।”

मजूमदार ने कहा: “शुभेंदु अधिकारी को शायद राष्ट्रीय पार्टी बनने के मानदंड नहीं पता हैं। बसपा, समाजवादी पार्टी और भाकपा को राष्ट्रीय दलों का दर्जा तब मिलता है जब देश के किसी भी हिस्से में उनकी निर्वाचित सरकार भी नहीं होती है (कई राज्यों में उनके वोट शेयर के आधार पर)। अधिकारी सिर्फ झूठा राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।”

अभिषेक बनर्जी पर किसी भी प्रभाव के बारे में, मजूमदार ने कहा: “हम केवल इस परिणाम से सकारात्मकता ले रहे हैं। हमारी पार्टी बंगाल से आगे निकल गई है और मेघालय में सीटें जीती है। यह अच्छा है कि हम हाल ही में अन्य राज्यों में सफल हुए हैं।”

(जनचौक के राजनीतिक संपादक प्रदीप कुमार सिंह की रिपोर्ट। )

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