Sunday, April 28, 2024

मणिपुर: आस और काश के बीच झूलती एक जिंदगी

इंफाल। मणिपुर में तीन महीने से चली आ रही हिंसा ने तो लोगों को झकझोर कर रख दिया है लेकिन उससे भी ज्यादा दर्दनाक है, वहां के राहत शिविरों में रह रहे लोगों की कहानी और उम्मीदों को खोती उनकी आंखें। आस और काश के बीच चल रही इनकी जिंदगी में आस कम है और काश ज्यादा। राज्य में जातीय हिंसा भड़कने की तारीख 3 मई थी और इसी दिन मणिपुर के कांगपोकपी जिले में आग लगने से नुपीमाचा का घर नष्ट हो गया। जबकि घटना से ठीक दो महीने पहले नुपीमाचा को यह पता चलता है कि वह कैंसर से ग्रसित हैं।

घटना के तीन दिन बाद इंफाल के एक राहत शिविर में खुद को पायी 15 वर्षीय नुपीमाचा सोचने लगी कि क्या वह इतने लंबे समय तक जीवित रह सकेगी कि अपने पांच सदस्यीय परिवार को अपने पैतृक गांव डेयरी में वापस से देख सके? तीन महीने बीतने के बाद अब उसकी घर लौटने की इच्छा प्रबल हो गई है। बावजूद इसके न पहले जैसी स्थितियां और न ही वैसी कोई संभावना। ऐसे में उसने अब यह मान लिया है कि जो चीजें उसके नियंत्रण में नहीं हैं, उनके बारे में बहुत अधिक सोचने का कोई मतलब नहीं है।

मुस्कुराना ज़रूरी है

अभी तक सामने आये आंकड़ों के मुताबिक विस्थापितों में तकरीबन 10,000 बच्चे और किशोर शामिल हैं जिन्हें 350 अलग-अलग राहत शिविरों में रखा गया है। इनमें से 37 शिविरों के लगभग 1,100 नाबालिगों में से नुपीमाचा एक है, जिसे एक वैश्विक शिक्षा सहायता संगठन द्वारा तैयार किए गए “तनाव-ख़ात्मे” के एक कार्यक्रम से कुछ सहायता मिली है।

नुपीमाचा का कहना है कि “मुझे अपने वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि अपने अनिश्चित भविष्य से कुछ सुकूनदायक क्षण छीन सकूं।” नुपीमाचा ने यह बात जातीय संघर्ष के पीड़ितों के लिए बने सबसे बड़े राहत शिविर लेम्बोइखोंगांगखोंग ट्रेड सेंटर में कही। राज्य में अब तक 130 से अधिक लोगों की जान गई है और कम से कम 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं।

स्टार (सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन एंड रिजुवेनेशन) एजुकेशन की प्रबंध निदेशक अमृता थिंगुजम ने कहा, “कार्यक्रम के पीछे का उद्देश्य हिंसा से पीड़ित बच्चों को उनकी सीखने और समझने की शक्ति को बहाल करना और इसके अलावा फिर से मुस्कुराने में उनकी मदद करना है।”

‘स्टार’ मणिपुर के शिक्षा विभाग और एक शैक्षिक हस्तक्षेप विशेषज्ञ समूह न्यूग्लोब के बीच एक गठजोड़ है, जिसने पिछले दस वर्षों में विकासशील देशों में पहली पीढ़ी के बीस लाख पच्चीस हजार शिक्षार्थियों के साथ काम किया है।

थिंगुजम बताती हैं कि, “मनोविज्ञान हमारी विशेषज्ञता नहीं है, लेकिन हम अपनी कक्षा प्रबंधन तकनीकों की तर्ज पर क्विज़ और पेंटिंग प्रतियोगिता जैसी गतिविधियों का आयोजन करके राहत शिविरों में बच्चों के लिए एक बेहतर वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं।”

घाव भरने की कोशिश

इंफाल पश्चिम जिले की क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी सुचेता खुमुकचम ने बताया कि जब दो महीने पहले विशेष कार्यक्रम शुरू किया गया था, उस वक्त विभाग का दो उद्देश्य था। पहला “बहुत करीब से हिंसा का अनुभव करने के बाद ये बच्चे अत्यधिक भावनात्मक तनाव में हैं। हम उन्हें उनकी छिपी हुई प्रतिभा को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच देना चाहते हैं। और उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने का मौका देकर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से बेहतर बनने में मदद करना चाहते हैं।”

उनका आगे कहना था कि “बच्चों में सकारात्मक बदलाव आया है। वे खुल रहे हैं और लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं,” खुमुकचम अपने क्षेत्र के 33 स्कूलों में स्टार कार्यक्रम से जुड़ी हैं।

नई जिंदगी की शुरुआत

न्यूग्लोब-साउथ एशिया के एक अधिकारी ने कहा कि “मणिपुर सरकार ने 2019 में हमें आमंत्रित किया जब उन्होंने भौतिक बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए अपना स्कूल फगाथंसी मिशन लॉन्च किया था। उसी समय हम सरकारी स्कूलों का चेहरा बदलने और सामाजिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए 2021 में मिशन का हिस्सा बन गए”।

कार्यकारी ने कहा, “मणिपुर भारत में हमारी पहली बड़ी परियोजना है और हम आभारी हैं कि हमारा कार्यक्रम, प्रौद्योगिकी-संचालित होने के बावजूद, बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाली मौजूदा चुनौतियों पर काबू पा रहा है।”

(द हिंदु में प्रकाशित खबर पर आधारित)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles