अज़ैरबाइजान और आर्मेनिया के बीच 36 नहीं 27 का आंकड़ा है। हम कह सकते हैं कि आर्मेनिया ने अज़ैरबाइजान के मान्य नक्शे के 27 प्रतिशत भूभाग पर शुरू से कब्जा कर रखा है और पिछले महीने 27 सितंबर को आर्मेनियाई सेना ने अज़ैरबाइजान पर बाक़ायदा हमला कर दिया। इसे हम जंग कह सकते हैं। अब तक आर्मेनियाई हमले में अज़ैरबाइजान के 19 आम नागरिकों की मौत हो चुकी है। ऑस्ट्रेलियाई समाचार पत्रिका एबीसी ने अब तक 230 लोगों के मारे जाने की ख़बर दी है, जिसमें सैनिकों के अलावा अज़ैरी मुस्लिम और आर्मेनियाई ईसाई दोनों हैं। आर्मेनिया कब्जे वाले इलाक़ों में एक सांप्रदायिक सिस्टम चलाना चाहता है मगर अज़ैरबाइजान पिछले 30 साल से अपने क्षेत्र की शांतिपूर्ण तरीके से वापसी चाहता है।
आर्मेनिया खनिज संपदा से भरपूर नागोर्नो काराबाख ही नहीं बल्कि इससे लगते शूशा, अगदाम, जबरैल, फुज़ूली, कलबाजार, गुबादली, लाचिन और जंगीलान ज़िले भी क़ब्ज़े में रखना चाहता हैं। सोवियत रूस से आज़ादी के फौरन बाद से अज़ैरबाइजान के हिस्से वाले नागोर्नो काराबाख संभाग के आठ ज़िलों पर आर्मेनिया ने जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है। अज़ैरबाइजान के इतने बड़े भूभाग पर कब्जे का मतलब है कि देश के कुल नक्शे के 27 प्रतिशत पर आर्मेनिया का कब्जा है। हम अज़ैरबाइजान के उस नक्शे की बात कर रहे हैं जिसे संयुक्त राष्ट्र के अलावा पूरी दुनिया की मान्यता है।
क्या है नागोर्नो काराबाख
पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप में, नागोर्नो-काराबाख को अंतरराष्ट्रीय रूप से अज़ैरबाइजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन अधिकांश क्षेत्र अर्मेनियाई अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित हैं। नागोर्नो-काराबाख सोवियत काल से अज़ैरबाइजान का हिस्सा रहा है। जब 1980 के दशक के उत्तरार्ध में सोवियत संघ के विघटन के समय से यहां आर्मेनियाई स्वतंत्र देश चाहते थे। अज़ैरबाइजान बलों और अर्मेनियाई अलगाववादियों के बीच कई साल संघर्ष चला। इस दौरान हज़ारों लोग मारे गए और वर्ष 1994 में, रूस ने युद्ध विराम किया, मगर तब तक आर्मेनियाई लोगों ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया था।
यह क्षेत्र अज़ैरबाइजान का है, लेकिन अलगाववादी आर्मेनियाई लोगों द्वारा शासित है, जिन्होंने इसे “नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त प्रेक्षक” नामक एक गणराज्य घोषित किया है, जबकि आर्मेनियाई सरकार नागोर्नो-काराबाख को स्वतंत्र रूप से मान्यता नहीं देती है। आर्मेनिया इस क्षेत्र को राजनीतिक और सैन्य रूप से समर्थन देता है।
आर्मेनिया का अत्याचार
नागोर्नो काराबाख का कुल 4388 स्कैवयर किलोमीटर के इलाके में 1989 की जनगणना के मुताबिक 1,89,085 लोग रहते हैं। इतनी पुरानी जनगणना का मतलब यह है कि आर्मेनिया इस क्षेत्र के आंकड़े जारी नहीं करता और अज़ैरबाइजान के पास यहां तक पहुंच नहीं है। इस जनसंख्या का अनुपात 1989 तक करीब 77 प्रतिशत आर्मेनियाई और 22.5 प्रतिशत अज़ैरी है। यह संख्या सिर्फ नागोर्नो काराबाख की है, बाक़ी कब्जे वाले हिस्सों की नहीं। बाक़ी रूसी और अन्य लोग हैं। अज़ैरबाइजान के पास शूशा का भी आंकड़ा है, जिसमें 92.5 अज़ैरी हैं और 6.7 प्रतिशत आर्मेनियाई। सोवियत रूस से आज़ादी के बाद से आर्मेनिया ने मई 1992 से लेकर अक्तूबर 1993 तक इस पूरे इलाक़े पर अपनी सेना के दम पर कब्जा किया है। उस समय अज़ैरबाइजान के राष्ट्रपति हैदर अलीयेव थे।
आर्मेनिया की तरफ से एक स्वतंत्र देश पर थोपे गए इस युद्ध और कब्जे की वजह से आज तक 20 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जबकि 50 हज़ार से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। लगभग पांच हज़ार लोग लापता हैं। पूरी दुनिया में आर्मेनियाई पहचान का रोना रोने वाली आर्मेनियाई सेना ने इस क्षेत्र में लाचिन से 71 हज़ार, कलबाजार से 74 हज़ार, अगदाम से 1 लाख 65 हज़ार 600, फिजूली से 1 लाख 46 हज़ार, जबराइल से 66 हज़ार, गुबादली से 37 हज़ार 900, ज़ंगीलान से 39 हज़ार 500 अज़ैरी मुसलमानों को निकाल दिया, जिन्होंने अज़ैरबाइजान में शरण ली। यह विस्थापन धर्म और संस्कृति की पहचान के आधार पर आर्मेनिया ने किया। जिस नागोर्नो काराबाख में वह आर्मेनियाई बहुल का दावा करता है वह यह क्यों नहीं बताता कि शुशा ज़िले में 92.5 प्रतिशत मुस्लिम अज़ैरी हैं तो वह उसे क्यों अपने कब्जे में रखना चाहता है? क्यों शुशा समेत पूरे क्षेत्र में मस्जिदों को तोड़ा जा रहा है? आर्मेनियाई गोली का शिकार सिर्फ अज़ैरी ही क्यों होते हैं?
अज़ैरबाइजान कब्जे वाले क्षेत्र में आर्मेनियाई ज़ुल्म की इंतहा सिहरा देती है। बीस हज़ार लोगों के कत्ल के अलावा आर्मेनिया ने नागरिक सुविधाओं, पुरातत्व ही नहीं नर्सरी और स्कूल तक नहीं छोड़े। सिर्फ नागोर्नो काराबाख ही नहीं इस मक़बूज़ा (कब्जे वाले) 27 प्रतिशत इलाके में आर्मेनिया ने डेढ़ लाख मकान तोड़े हैं। दस लाख हैक्टेयर की खेती को बर्बाद कर दिया, दो लाख 80 हज़ार हैक्टेयर के जंगल बर्बाद किए हैं। आर्मेनिया ने 890 बस्तियां साफ कर दीं। करीब सात हज़ार लोक प्रशासन की इमारतें ध्वस्त कर दीं।
कुल 693 स्कूल, 855 नर्सरी स्कूल, 695 अस्पताल तोड़ डाले। आर्मेनिया ने बर्बरता की हद पार कर दी। क्षेत्र में आर्मेनिया ने 927 पुस्तकालय, 9 मस्जिदें और 44 मंदिर भी ढहा दिए। नौ ऐतिहासिक स्थल, 464 पुरातत्व स्थल एवं संग्रहालय, छह हज़ार फैक्ट्रियां तोड़ डालीं। कुल 800 किलोमीटर का रास्ता खोद डाला, 160 पुल मटियामेट कर दिए, 2300 किलोमीटर लंबी पानी की पाइप लाइन तोड़ दी। आर्मेनिया ने कब्जे वाले अज़ैरबाइजानी क्षेत्र में 2000 किलोमीटर गैस पाइपलाइन बर्बाद कर दी। कुल 15 हज़ार किलोमीटर के इलाके की बिजली लाइन को नष्ट कर दिया और 1200 सिंचाई स्थलों को धूल में मिला दिया।
आज अज़ैरबाइजान के मकबूजा इलाके में आर्मेनिया के 40 हज़ार सैनिक 316 टैंक, 322 आर्टिलरी और 324 एसीवी के साथ मौजूद है। इतना ही नहीं क्षेत्र की डेमोग्राफी को बदलने के लिए आर्मेनिया ने अब तक 23 हज़ार आर्मेनियाई शरणार्थियों को यहां बसाया है। लेबनान से आर्मेनियाई ईसाइयों को बुलाकर यहां बसाया जा रहा है। आर्मेनिया के इस क्षेत्र में अत्याचार की बदौलत 10 लाख से ज्यादा लोग यायावर हो चुके हैं।
आर्मेनियाई जनता को भी अपनी सरकार के अज़ैरी लोगों पर अत्याचार जायज लगता है। यही कारण है कि आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोल पाशिनयान की पत्नी अन्ना हाकोबयान ने जब नागोर्नो काराबाख में बंदूक के साथ सैनिक अभ्यास किया तो किसी को अचरज नहीं हुआ। बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री निकोल ने अब तक आर्मेनियाई जुल्म से मारे जा चुके लोगों के लिए माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया।
अज़ैरबाइजान को बढ़त
ताज़ा संघर्ष आर्मेनिया की तरफ से शुरू किया गया, लेकिन अज़ैरबाइजान को बढ़त मिल रही है। अज़ैरबाइजान की बढ़त से घबरा कर आर्मेनिया ने मकबूजा क्षेत्र से बाहर देश के दूसरे सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र गांजा पर हमला कर दिया। क़रीब पांच लाख की आबादी वाले गांजा पर आर्मेनियाई सेना ने हमला किया।
आम अज़ैरी लोगों पर आर्मेनियाई सेना के हमलों की वजह से मृतकों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन सैनिक संघर्ष में अज़ैरबाइजान को बढ़त हासिल है। आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिनयान ने ख़ुद स्वीकार किया है कि आर्मेनिया का जंग में काफ़ी नुक़सान हो रहा है। अज़ैरबाइजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव ने आर्मेनियाई हमले की निंदा करते हुए देश की जनता को कहा है कि अज़ैरबाइजान झुकने वाला नहीं है। अज़ैरबाइजान की सरकारी वेबसाइट के अनुसार अब तक मकबूजा नागोर्नो काराबाख क्षेत्र से अज़ैरबाइजानी सेना ने कई गांवों को आज़ाद करवाते हुए अपने देश के साथ मिला लिया है।
विश्व राजनीति पर प्रभाव
अज़ैरबाइजान को तुर्की का खुला समर्थन है। तुर्की पर आर्मेनिया का यह भी आरोप है कि वह अज़ैरबाइजान को सैनिक समर्थन दे रहा है। तुर्की की भूमिका पर फ्रांस बहुत नाराज़ है, क्योंकि फ्रांस हमेशा से आर्मेनिया की तरफदारी करता आया है। तुर्की और फ्रांस दोनों नाटो के सदस्य देश हैं। उस्मानी साम्राज्य से आर्मेनिया के साथ शत्रुता के बल पर इस बात की उम्मीद नहीं है कि तुर्की अपने वर्तमान स्टैंड से झुकेगा। रूस और अमेरिका ने दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र संघ में आर्मेनिया को यह क्षेत्र खाली करने के तीन प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं, लेकिन वह सुनवाई करने को तैयार नहीं।
अज़ैरबाइजान और आर्मेनिया के संघर्ष से तुर्की और रूस भी आमने-सामने आ गए हैं। तुर्की और रूस के बीच सीरिया में भी विवाद की स्थिति बन गई थी जब तुर्की की वायुसेना ने रूस का एक फाइटर जेट उड़ा दिया था। तुर्की में रूस के राजदूत की भी हत्या हुई थी। अज़ैरबाइजान को तुर्की के समर्थन का मतलब रूस से परोक्ष संघर्ष भी है, क्योंकि रूस और आर्मेनिया कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन के सदस्य हैं। रूस दोनों देशों को हथियार भी सप्लाई करता है।
इस संघर्ष से क्षेत्र में तेल और गैस की आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ने की आशंका है। अज़ैरबाइजान की राजधानी बाकू से कच्चे तेल के पाइप लाइन से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर ही जंग जारी है। बाकू से जॉर्जिया की राजधानी तिबलीसी होते हुए तुर्की के शहर सेहून तक तेल के अलावा गैस की पाइप लाइन भी गुज़रती है। सेहून से यह तेल और गैस बाक़ी यूरोप को सप्लाई होता है। अज़ैरबाइजान तेल और गैस के ख़ज़ाने का मालिक है, जो इसे देश के जलीय क्षेत्र में कैस्पीयन सागर से प्राप्त होता है। पूरे यूरोप की ज़रूरत का पांच प्रतिशत तेल और गैस की आपूर्ति अज़ैरबाइजान करता है। यूरोप को तेल और गैस की सप्लाई पर तो संकट आ सकता है, लेकिन तेल और गैस के दाम बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है। आर्मेनिया और अज़ैरबाइजान जंग के बावजूद ब्रेंट तेल दामों में स्थिरता बनी हुई है।
(लेखक कूटनीतिक मामलों के जानकार हैं।)
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