राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों की जानकारी अपनी वेबसाइटों पर अपलोड करेंगी। अगर पार्टियां आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाती हैं, तो उसका कारण भी बताना होगा कि आखिर वो किसी बेदाग प्रत्याशी को टिकट क्यों नहीं दे रही हैं? साथ ही राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में तमाम जानकारी अपने आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर हैंडल पर भी देनी होगी।
साथ ही इस बारे में एक स्थानीय और राष्ट्रीय अखबार में भी जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया था। जस्टिस आरएफ़ नरीमन और जस्टिस एस रविंद्रभट ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की दलीलें सुनने के बाद अपना फ़ैसला सुनाते हुए राजनीतिक पार्टियों को दिशा-निर्देश जारी किया था। यह आदेश एक बार फिर चर्चा में है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में पहला चुनाव बिहार विधानसभा का हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का असर राज्य में नहीं दिख रहा है। सभी राजनीतिक दलों के आपराधिक छवि का उम्मीदवार न बनाने के दावे के विपरीत हकीकत यह है कि कमोबेश सभी दलों ने दागी को दावेदार बनाया है। बिहार की राजनीति में बाहुबली के रूप में पहचाने जाने वाले अनंत सिंह कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे अधिक करीबी रहे। इस चुनाव में राजद से मोकामा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इन पर हत्या, अपहरण समेत 38 मुकदमें दर्ज हैं। हत्या समेत 37 संगीन मामलों के आरोपी रीतलाल यादव दानापुर सीट से आरजेडी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं।
इसके अलावा दागी छवि वाले उम्मीदवारों में तारापुर से मेवालाल चौधरी, बेलागंज से सुरेंद्र यादव हैं। जेल में बंद बाहुबली पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह छपरा सीट से चुनाव मैदान में हैं। उधर गोपालगंज के कुचायकोट सीट से दो बाहुबली आमने-सामने हैं। जदयू से अमरेंद्र पांडे और कांग्रेस से काली प्रसाद पांडे मैदान में हैं। इन दोनों के खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज है।
उधर, कानून के दबाव से बचने के लिए आपराधिक चरित्र के नेताओं ने अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतार दिया है, जिसमें महनार से रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह, नवादा से रजबल्लभ की पत्नी विभा देवी, संदेश से अरुण यादव की पत्नी किरण देवी, सहरसा से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और अतरी से मनोरमा देवी चुनाव लड़ रही हैं। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की आरोपी जदयू की मंजू वर्मा भी चुनाव मैदान में हैं।
प्रथम चरण में 71 सीटों पर हो रहे चुनाव में 30 फीसद आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार हैं। गया जिले के अकेले गुरुवा सीट से 10 आपराधिक चेहरे मैदान में हैं। मोकामा में 50 फीसदी उम्मीदवार विभिन्न मामलों में आरोपित हैं। दिनारा सीट से 19 उम्मीदवारों में से नौ दागी हैं।
हर चुनावों में लड़ते रहे हैं दागी
वर्ष 2014 लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 34 फीसद दागी रहे हैं। 1581 एमपी और विधायक शामिल रहे, जिसमें एमपी 184 और राज्यसभा से 44 सदस्यों, महाराष्ट्र से 160, यूपी से 143, बिहार से 141, पश्चिम बंगाल से 107 आपराधिक चेहरे चुनावों में उम्मीदवार रहे।वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 542 सदस्यों में से 43 दागी जीत कर आए। एडीआर के राज्य समन्वयक राजीव कुमार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के कड़े रूख के बाद स्पीडी ट्रायल के कारण आपराधिक छवि के नेताओं ने अपनी पत्नी, बच्चे और रिश्तेदारों को विरासत सौंपना शुरू कर दिया है।
(पटना से स्वतंत्र पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)
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