नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो-8: तलाशी लेने से पहले एनडीपीएस एक्ट के तहत मिले अधिकारों को संबंधित व्यक्ति को बताया जाना जरूरी

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क्या आप जानते हैं कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 50 में प्रावधान है कि आरोपी की तलाशी लेने के पहले उसे स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि उसके पास कौन से अधिकार हैं लेकिन इसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारी नहीं बताते। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 50 के तहत एक नोटिस में यह निर्दिष्ट होना चाहिए कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपी के पास कौन-से अधिकार हैं। जस्टिस बी.एस. वालिया की एकल पीठ ने कहा कि यह निर्दिष्ट किए बिना कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपी के पास कौन से अधिकार हैं, केवल आरोपी को यह बताना कि उसके पास एनडीपीएस अधिनियम के तहत अधिकार हैं, अनिवार्य आवश्यकता का अनुपालन नहीं है।

जमानत याचिका में आरोपी ने तर्क दिया कि यदि वह चाहे तो उसे राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में तलाशी लेने के अपने अधिकार के बारे में सूचित नहीं किया गया था, इसलिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का अनुपालन नहीं किया गया था। राज्य ने आरोपी को जारी नोटिस पेश किया, जिसमें कहा गया कि उसे अपने अधिकारों के बारे में सूचित किया गया था। इसके अलावा एक मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी द्वारा उसकी तलाशी लेने का विकल्प था, जिसके लिए उक्त अधिकारी को मौके पर बुलाया जा सकता था, इसलिए परिस्थितियों में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के अधिदेश का उचित अनुपालन किया गया था।

एकलपीठ ने कहा कि इस नोटिस में उल्लेख है कि आरोपी को उसके अधिकारों से अवगत करा दिया गया है। अदालत ने नोट किया कि लेकिन उक्त नोटिस पूरी तरह से चुप है कि याचिकाकर्ता को किन अधिकारों से अवगत कराया गया था और साथ ही यह भी बताया गया कि क्या आरोपी को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के तहत मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी लेने के अधिकार से अवगत कराया गया था।

एकलपीठ ने कहा कि उक्त नोटिस में केवल याचिकाकर्ता को उसके अधिकारों के बारे में सूचित किया गया है और विकल्प भी है कि यदि वह अपनी तलाशी किसी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी से कराना चाहता है। मेरे विचार से केवल याचिकाकर्ता को यह सूचित करना कि उसके पास एनडीपीएस अधिनियम के तहत अधिकार हैं। एनडीपीएस अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता के पास कौन से अधिकार हैं, यह निर्दिष्ट किए बिना एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 उप-धारा (1) के तहत अनिवार्य आवश्यकता का अनुपालन नहीं होगा।

सुनील बनाम हरियाणा राज्य [CRM-M 28067 of 2021] मामले में एकल पीठ ने विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के तहत आवश्यकता केवल एक तकनीकी उल्लंघन नहीं है। चूंकि आरोपी एनडीपीएस के तहत किसी अन्य मामले में शामिल नहीं है, अदालत ने कहा कि यह सुरक्षित रूप से दर्ज किया जा सकता है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और उसके द्वारा जमानत पर रहते हुए ऐसा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। इसलिए आरोपी को जमानत दी गई।

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 50 में वे शर्तें जिनके अधीन व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी-(1) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत कोई अधिकारी, धारा 41, धारा 42 या धारा 43 के उपबन्धों के अधीन किसी व्यक्ति की तलाशी लेने वाला है तब वह, ऐसे व्यक्ति को यदि ऐसा व्यक्ति ऐसी अपेक्षा करे तो, बिना अनावश्यक विलम्ब के धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट के पास ले जाएगा ।

(2) यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो ऐसा अधिकारी ऐसे व्यक्ति को तब तक निरुद्ध रख सकेगा जब तक वह उसे उपधारा (1) में निर्दिष्ट राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं ले जा सकता ।

(3) यदि ऐसा राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष कोई ऐसा व्यक्ति लाया जाता है, तलाशी के लिए कोई उचित आधार नहीं पाता है तो वह ऐसे व्यक्ति को तत्काल उन्मोचित कर देगा किन्तु अन्यथा यह निर्देश देगा कि तलाशी ली जाए ।

(4) किसी स्त्री की तलाशी, स्त्री से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं ली जाएगी ।

(5) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उस व्यक्ति को जिसकी तलाशी ली जानी है, उसके कब्जे में किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ या वस्तु या दस्तावेज को उस व्यक्ति से जिसकी तलाशी ली जानी है, अलग किए बिना निकटतम राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाना संभव नहीं है, तो वह ऐसे व्यक्ति को निकटतम राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाने की बजाय उस व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 100 में उपबंधित है ।

(6) उपधारा (5) के अधीन तलाशी लिए जाने के पश्चात् उक्त अधिकारी ऐसे विश्वास के कारणों को लेखबद्ध करेगा, जिसकी वजह से ऐसी तलाशी की आवश्यकता पड़ी थी और उसकी एक प्रति अपने अव्यवहित वरिष्ठ पदधारी को बहत्तर घंटे के भीतर भेजेगा ।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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