Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: जीआई के प्रोपेगैंडा के बीच दम तोड़ते बनारस के पान उत्पादक किसान

वाराणसी। यह दारुण हकीकत बनारस की उस हिम्मती महिला किसान की है जो पान की खेती कर रही है। सरकार और प्रशासन भले ही इतरा रहा है कि ये जीआई टैग मिल गया और पान आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। सरकार बनारसी पान को जीआई टैग देकर अपना सीना ठोक रही है और पान के कदरदान वाहवाही लूटने में मशगूल हैं। जबकि नंगा सच ये है कि पान की खेती करने का रिस्क लेने के लिए बनारस के किसान तैयार नहीं है।

वाराणसी में दशक भर पहले पचास-साठ किसान पान की खेती करते थे। पान की खेती में कम मुनाफा, जोखिम की बहुलता और अधिक श्रम लगने के चलते इनकी पीढ़ियां भी किनारा करती जा रही है। जिले में अब अकाल पड़ गया है और महज दो किसान ही पान की खेती कर रहे हैं। 

इस कड़ी में जनचौक की टीम ने वाराणसी जनपद की एकलौती महिला पान किसान मीरा देवी से मुलाक़ात की। वह जनचौक से बताती हैं कि “मार्च के महीने में एक के बाद एक हुई बेमौसमी बारिश और तूफान से उपजी तकलीफें शायद ही अब किसी के जेहन में ताजा होंगी, अधिकतर तो भूल चुके होंगे। हम लोगों का पान बंबई, दिल्ली, इलाहबाद, प्रतापगढ़ समेत अन्य नगरों तक जाता था, लेकिन अब हमें अपने ही जिले में पान की पत्तियों की आपूर्ति के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।”

पान के पौधों की लताओं में सड़न दिखाती किसान मीरा देवी

मीरा देवी कहती हैं कि “पहले गांव में पान किसानों की दर्जनों भीटें (पान की खेती के लिए घास-फूस, राढ़ी, पुआल और बांस से तैयार की अस्थाई झोपड़ीनुमा घर, जिसके आसपास पानी लगा हो, ताकी अगलगी की आशंका कम हो, और तापमान में नमी हो) थीं। कुछ किसानों की भीटें अगलगी की भेंट चढ़ गई और कुछ ने चुनौतियों के आगे हथियार डाल दिए। मेरी भीट, मेरे घर के सामने होने और चारों तरफ से पानी से घिरी होने के चलते अब तक बची हुई है।”

18 से 58 साल का सफर

पान किसान मीरा देवी के परिवार में बेटियों की शादी की तैयारियां चल रही हैं। दोपहर के वक्त मजदूरों के साथ काम में जुटी हुई हैं। मीरा देवी की शादी बच्छाव के राधेश्याम चौरसिया से 16 साल की उम्र में हो गई थी। वह जब अठारह साल की हुईं और पारिवारिक जिम्मेदारी बढ़ने पर अपने पारंपरिक काम यानि पान की खेती करने लगीं। वर्तमान समय में मीरा देवी की उम्र 58 साल है। तमाम चुनौतियों से आंख मिलाते हुए वह चार दशक से पान की खेती लगातार करती आ रही हैं।

धीरे-धीरे मुंह मोड़ते गए किसान

उत्तर प्रदेश में बनारसी पान को जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिलते ही मीडिया ने ढिंढोरा पीटने, आर्टिफिशियल कंटेंट से इलेक्ट्रानिक स्क्रीन और महंगे अखबारी कोरे कागज़ को रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही साथ टैगिंग मिलने भर से ऐसा माहौल या तस्वीर बनाने की कोशिश की गई कि बनारसी पान की खेती, बिक्री और भंडारण करने वालों का समूचा जीवन आनंद व मुनाफे में चल रहा है।

बनारस के लंका बाजार में एक दुकान पान सजाता दुकानदार

जबकि वाराणसी में जमीन पर बनारसी पान की खेती करने वाले किसान पूंजी की कमी, सिंचाई का अभाव, तकनीक की दिक्कत, श्रमिकों की कमी, पान की भीटों में अगलगी के खतरे, कीटों के प्रकोप, बढ़ती लागत, बीज की किल्लत और मौसम की मार से परेशान हैं। कई प्रकार की चुनौतियों से घिरे किसान पान की खेती से मुंह मोड़ते ही जा रहे हैं और रकबा भी सिमटता जा रहा है।

चुनौतियों से मुठभेड़ कर रहा गांव बच्छाव

वाराणसी जिला मुख्यालय से तकरीबन तीस किमी दूर दक्षिण-पश्चिम में राष्ट्रीय राजमार्ग- दो के किनारे काशी विद्यापीठ ब्लॉक में बच्छाव नामक गांव है। बच्छाव गांव की गालियां बेतरतीब और फुटपाथ उखड़े हुए हैं। जनचौक की टीम रविवार को बच्छाव गांव पहुंची। दोपहर के दो बज रहे थे। सूरज आसमान से आग उगल रहा था। बहती हवा लू के लपट का एहसास करा रही थी। तापमान 42 डिग्री सेल्सियस को पार कर बदन झुलसा रहा था। हाइवे पर कुछ ट्रकें दौड़ रही थीं।

गांव के लिंक रोड पर एक-दो ग्रामीण मिले। जिन्होंने सही पते तक पहुंचने में सहयोग किया। गांव में पहुंचने पर गलियों में सन्नाटा पसरा था और धूप-गर्मी से बचने के लिए ग्रामीण अपने परिवार के साथ घरों में दुबके थे। गांव में बरई (चौरसिया) समाज के 40-45 परिवार हैं, जिनकी आबादी तकरीबन 500 है। बच्छाव ही एकमात्र गांव है, जो वाराणसी में चुनौतियों से मुठभेड़ कर पान उगा रहा है।

बनारसी देसी पान की खेती

खर्चा लाखों का, फसल से उम्मीद बेमानी

मीरा आगे कहती हैं कि “घर में बिटियों की शादी कुछ दिनों बाद है। लाखों का खर्चा है और एक बेटी की अठारह हजार रुपये की फीस का भी प्रबंध करना है। मैंने 60,000 रुपये की लागत से अगस्त-सितम्बर में 6 विस्वा में पान के पौधों की बुआई की थी। निराई-गुड़ाई और रोगों से फसल को बचने में कामयाब रही। इसी बीच मार्च के महीने में हुई बेमौसमी बारिश और तूफान ने पान की फसल को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है।

तूफानी हवा ने घास-फूस की भीट को तोड़ा-मरोड़ा सो अलग, बारिश ने विकास कर रहे पौधों को मटियामेट कर दिया। बारिश ने एक नहीं दो बार झटका दिया। बाद के दिनों में तेजी से चढ़ते तापमान ने बची कसर पूरी कर दी और पौधे गलने-सड़ने लगे। पौधों के सड़ने से क्यारियां खाली पड़ गई हैं। पौधों का विकास रुक गया। इनकी देखभाल के लिए दुबारा से मेहनत करनी पड़ रही है। अप्रैल के अंत तक पत्तियां बाजार में जाने के लिए तैयार हो जाती, लेकिन अब हम लोगों को मई तक इंतजार करना पड़ेगा।”

नहीं उबर सके घाटे से, सदमे में गुजर रहा जीवन

मंजीत चौरसिया भी अपने पीढ़ी के व्यवसाय को दो साल पहले तक करते आ रहे थे। लाखों का नुकसान होने के बाद से पान की खेती से तौबा कर लिए और घाटे के बोझ से अब तक नहीं उबर सके हैं। घाटा ऐसा की सदमे में जीवन गुजर रहा है। मंजीत बताते हैं “साल 2021 में मेरी भीट में पान की फसल जबरदस्त थी। आठ बिस्वा में पान की खेती किये हुए थे। लग रहा था कि लागत तकरीबन 70,000 निकलने के साथ 40-50 हजार का मुनाफा भी हो जाएगा। पत्तियों के तुड़ाई के ठीक पहले ही एक दिन दोपहर में मेरी भीट में आग लग गई।

फसल नष्ट होने के बाद घाटे से नहीं उबर सके मंजीत चौरसिया

देखते ही देखते आधे घंटे में पूरी फसल धू-धू कर जलकर राख हो गई। लेखपाल आदि को जानकारी देने के बाद भी मुआवजा नहीं मिल पाया। लाखों का नुकसान ऐसा हुआ कि कर्ज के बोझ से अब तक नहीं उबर सका हूं। पूंजी की व्यवस्था नहीं होने से दोबारा खेती नहीं शुरू कर सका। मेरी प्रशासन और उद्यान विभाग से मांग है कि आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाए ताकि दोबारा से पान की भीट लगाकर खेती कर सकूं।”

जलवायु परिवर्तन की मार, स्वाद बचाने की चुनौती

जलवायु परिवर्तन के चलते कमोबेश सभी क्षेत्रों पर असर देखने को मिल रहा है। लेकिन कृषि सेक्टर पर मौसम व तापमान में इजाफा, कम बारिश और सूखे जैसे हालात और बढ़ते कीटों के प्रकोप से खेती करने वाले किसान सीधे तौर प्रभावित हैं। फरवरी से पारे की छलांग और मार्च में बेमौसी तूफ़ान ने किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया। इससे पान के किसान अछूते नहीं है। तापमान में तेजी से इजाफा होने के चलते पान किसान दोहरी मुश्किल में हैं, और लागत में इजाफा होता जा रहा है।

पान किसानों का कहना है कि जहां पहले के सालों में फसल में तीन दिन पर सिंचाई करनी पड़ती थी। वर्तमान समय में खेतों से तेजी से नमी उड़ने के चलते रोजाना सिंचाई करनी पड़ रही है। तेज धूप और गर्म आंच से पान के पत्तों में दाग\धब्बे बढ़ने लगे हैं। इससे बचाने के लिए गुड़, जौ, गेहूं, चना, मटर, खली (06 विस्वा के लिए सामान मात्रा में 25 किलोग्राम) आदि को भूनकर प्राप्त हुए सत्तू को पानी में मिलकर पौधों पर छिड़काव करना पड़ा रहा है। ताकि पान की पत्तियां तामपान के थपेड़ों को सह सके, चमकदार और स्वाद में लाजवाब हों।     

तेज धूप में जली देसी पान की पत्ती

आर्थिक सहायता की दरकार

पान की खेती से मुंह मोड़ चुके किसानों को आर्थिक सहायता की दरकार है। किसानों का मानना है कि अनुदान के रूप में मदद की जरूरत है। कई बार तो मिलता भी नहीं है। अगर समय पर अनुदान और सहायता मिले तो पान की खेती फिर से शुरू हो सकती है। स्थानीय झन्नू चौरसिया कहते हैं कि “ज्यादातर किसानों ने पान की खेती छोड़ दी है क्योंकि उनके पास पूंजी, अपनी फसलों की सिंचाई की सुविधाजनक व्यवस्था और कीटों से सुरक्षित रखने के लिए पैसे नहीं हैं।” लेकिन आज पान के किसानों को डर सता रहा है कि अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पान के पत्ते की खेती बहुत जल्द अतीत की बात हो जाएगी।”

भीट तैयार की जाने वाले पातलो-राढ़ी के साथ पान किसान झन्नू चौरसिया की पत्नी

कहीं से पान आता है, वह बनारसी हो जाता है

तकरीबन चार दशक से उत्तर भारत की पत्रकारिता करते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार व लेखक विजय विनीत ‘जनचौक’ से कहते हैं कि “बनारस में देश के कोने-कोने जैसे बिहार, कलकत्ता, यूपी, महोबा, कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, केरल, असम (पूर्वोत्तर राज्य), आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि से पान आता है। कई राज्यों का पान बनारस में आकर बनारसी पान हो जाता है। यहां पचासा (एक ढोली में पचास पान की पत्तियां) में आता है और सैकड़ा में सजाया जाता है।”

विजय विनीत आगे कहते हैं कि “चौसठ कलाओं में से एक पान को लज़ीज बनाने (पत्तियों को पकाने ) की कला सिर्फ बनारसियों के पास पानदरीबा में है, और दुनिया में किसी के पास नहीं है। पान को दुनिया के अन्य किसी हिस्से में पकाएंगे तो वो मुलायमियत, स्वाद-सुगंध और नरमी नहीं आ पाती है, जो बनारस में पकाने पर मिलता है। दूसरी बात उत्तर प्रदेश सरकार पान किसानों के उत्थान और रकबे को बढ़ाने के लिए अहम काम अभी तक नहीं कर पाई है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि वाराणसी का पान जगत प्रसिद्ध होने के बावजूद जनपद में पान किसानों का अकाल पड़ा है।”

वरिष्ठ पत्रकार व लेखक विजय विनीत

विनीत कहते हैं कि “अगर यहां के किसानों को प्रश्रय, समय से अनुदान दिया जाता, लगातार मॉनिटरिंग की जाती, तालाब खोदने, तकनीकी सहायता मुहैया करने के प्रयास, भीट बनाने और बीज उपलब्ध कराने आदि की प्राथमिक तौर पर व्यवस्था की जाती तो कुछ हद तक बात अब भी बन सकती है।”

चुनौतियों से लोहा ले रही साहसी महिला को मिले सम्मान

पत्रकार विजय आगे कहते हैं कि “दरअसल, पान की खेती के लिए किसानों को मोटिवेट और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए कोई विशेषज्ञ ही नहीं है। यदि जिले में पान की खेती का एक्सपर्ट नियुक्त किया गया होता तो बेहतरीन तरीके से खेती हो सकती थी और कम खर्च में बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता था। लेकिन सरकार, नौकरशाही और उद्यान विभाग ने इस तरफ उतना ध्यान ही नहीं दिया, खासतौर पर बनारस में।”

उन्होंने कहा कि “यह जोखिम से परिपूर्ण धंधा है। पूर्वांचल की जलवायु में आंधी, बारिश, गर्म तापमान, लू और ओले गिरते हैं। आंधी, बारिश, तूफान और अगलगी में आमतौर पर पान की खेती को बड़ा नुकसान पहुंचता है। पान की खेती के बनाए जाने वाले छप्पर (भीट) को बनाने की नई तकनीक की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो सकी है।”  

तालाब के बीच में पान की भीट

उन्होंने कहा कि “अशिक्षित और अनपढ़ किसान अपने मन से रिस्क लेता है और खेती करता है। ये सारी दिक्कतें हैं, जो पान किसानों को तबाही के कगार पर ले जाती हैं। बड़े हर्ष की बात है कि कोई महिला इतना बड़ा रिस्क लेकर पान की खेती कर रही है, तो उनको सम्मानित किया जाना चाहिए। उनके साहस और हिम्मत को राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्व देने की जरूरत है।”    

इच्छुक किसानों के सहयोग को उद्यान विभाग तैयार

वाराणसी उद्यान विभाग के अधिकारी ज्योति कुमार सिंह ‘जनचौक’ से कहते हैं कि “वाराणसी उद्यान विभाग द्वारा पान की खेती पर पूरे रकबे पर पचास फीसदी का अनुदान दिया जाता है। विभाग की बाध्यता यह है कि जिन किसान को अनुदान का एक बार लाभ मिल जाता है, उन्हें दोबारा अनुदान तीन साल बाद दिया जाता है, ताकि अधिक से अधिक किसानों को लाभान्वित किया जा सके। वर्तमान समय में जनपद में सिर्फ दो किसान ही पान की खेती कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि “फसल की अगलगी और मौसमी आपदा में हुए नुकसान के लिए बीमा कंपनी और लेखपाल द्वारा मदद ली जा सकती है। उद्यान विभाग का काम किसानों को प्रत्साहित करना है। बीज के लिए ओपन मार्केट है। इसके अलावा विभाग का महोबा पान रिसर्च सेंटर है, किसान चाहे तो प्रमुख प्रजातियों के यथा देशावरी, कलकत्तिया, मगही, सांची, कपूरी और मीठी पत्ती के पान के बीज यहां से खरीद सकता है।” 

वाराणसी उद्यान विभाग अधिकारी ज्योति कुमार सिंह

जीआई टैगिंग से खुल गया है संभावनाओं का द्वार

वाराणसी उद्यान विभाग के अधिकारी ज्योति सिंह आगे कहते हैं कि “किसानों को पान की खेती से जोड़ने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। जिसके तहत उद्यान विभाग के कर्मचारी गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक और मोटिवेट करने का प्रयास करते हैं। जो रूचि लेते हैं उनका चयन कर प्रशिक्षण के लिए महोबा और इलाहबाद भेजा जाता है। रहने-खाने के खर्च की भरपाई विभाग द्वारा की जाती है। हाल ही में पान को जीआई टैगिंग मिली है, इससे मार्केटिंग और व्यापार में की दिक्कत खत्म हो गई है, कई रास्ते खुल गए हैं।”

वो बताते हैं कि “जीआई टैगिंग में वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, जौनपुर और आसपास के जनपदों के पान को सम्मिलित किया गया है। जो किसान पान की खेती के लिए उत्साहित हैं और इसकी खेती करना चाहते हैं। ऐसे किसान जिला उद्यान विभाग के कचहरी स्थित कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा सहज जन सेवा केंद्र पहुंच कर यूपी हॉर्टिकल्चर की वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आधार कार्ड, बैंक खाता पासबुक, वोटर कार्ड की छायाप्रति जमा कर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।”

(वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट। )

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