Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: घोसी उपचुनाव में सपा-भाजपा में कांटे की टक्कर, दलित वोट की जुगत में लगीं पार्टियां

घोसी, मऊ। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से सवा सौ किमी की दूरी पर उत्तर-पूर्व में मऊ जनपद है। मऊ पहुंचने के बाद आपको पुन: 10 से 12 किमी की दूरी तय कर कोपागंज जाना होगा, फिर कोपागंज से 10 किमी बाई रोड घोसी बाजार या तहसील पहुंचना होगा। इसी रास्ते ‘जनचौक’ की टीम गुजरी तो रास्ते में मिले मऊ और कोपागंज के बाजारों में चहल-पहल दिखी, लेकिन जैसे ही घोसी आया सड़कों पर आदमी कम लक्ज़री वाहनों की भरमार दिखी।

चाय, नाश्ते की दुकानों और भिन्न राजनीतिक दलों के कार्यालयों में कार्यकर्ता व संगठन से जुड़े लोग मुस्तैद मिले। चौराहों और दुकानों के अतरों में अधेड़-बुजुर्ग राजनीतिक चर्चा करते मिले। समाजवादी पार्टी और बीजेपी के उम्मीदवार के प्रचार वाहन विभिन्न गांवों में प्रचार कर लौटने के दौरान कई बार घोसी बाजार में टकराये।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित मऊ इन दिनों राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में है। वह इसलिए कि मऊ जिले के घोसी विधानसभा में उपचुनाव कराया जा रहा है। साल 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट से फागू चौहान विधायक चुने गए, लेकिन 2 साल बाद ही उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया और उपचुनाव हुए। ठीक वैसे ही 2022 में बीजेपी के नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे दारा सिंह चौहान ने बीजेपी को झटका देते हुए साइकिल की सवारी की और विधायक बने, लेकिन ठीक 2 साल बाद ही उनका सपा से मोहभंग हो गया। वे सपा को छोड़कर बीजेपी में चले गए। साथ ही विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

एक बार फिर घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिए 5 सितंबर को मतदान और 8 सितंबर को मतगणना होनी है। चार-पांच दिन बाद वोट पड़ना है, ऐसे में सभी चुनावी जंग में कूदे हुए हैं। यूपी की पूरी सत्ता और पार्टी के आलाकमान से लेकर गांव में पार्टी समर्थित प्रधान और कोटेदार तक बीजेपी कैंडिडेट दारा सिंह चौहान के लिए 40 डिग्री धूप और उमस में प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। सपा के कैंडिडेट सुधाकर सिंह का प्रचार अभियान ग्राउंड पर जोरों पर है।

सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों ने ही चुनाव जीतने की जोर-आजमाइश कर रखी है। इस चुनाव की सबसे खास बात यह है कि इसमें विपक्षी दल सपा के साथ सभी इंडिया गठबंधन की पार्टियां मैदान में प्रचार करने में लगी हैं। अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो इसे इंडिया गठबंधन चुनावी प्रचार के तौर पर अपना सकता है।

घोसी विधानसभा के नागरिकों ने तर्क दिया कि सुधाकर स्थानीय हैं और दारा सिंह बाहरी (आजमगढ़ के रहने वाले) हैं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी द्वारा उम्मीदवार नहीं उतारे जाने से यह आमने-सामने का चुनाव सस्पेंस पैदा कर रहा है। बसपा का बेस माना जाने वाला दलित मतदाता बीजेपी और सपा की ओर झुकाव दिखाने से बचता नजर आ रहा है। शायद उन्हें अब भी किसी इशारे का इंतजार है कि मतदान के दिन किस पार्टी को वोट करना है।

समाजवादी पार्टी कहती है कि सुधाकर स्थानीय हैं और समाज के दुःख-सुख में शरीक होते रहे हैं। इसलिए दलित समाज इनकी ओर मुड़ गया है। वहीं द्वारा चौहान के समर्थकों का कहना है कि पुराने संबंधों के दम पर दलित वोट बीजेपी की झोली में आ रहे हैं।

सूबे में सत्ताधारी पार्टी की लगभग पूरी कैबिनेट के साथ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, मंत्री स्वतन्त्र देव सिंह, ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद प्रचार में उतरे हुए हैं। 2 सितम्बर को जनता से मुखातिब होने बीजेपी के फायरब्रांड नेता व सीएम योगी आदित्यनाथ भी आएंगे। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व सीएम अखिलेश यादव, कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कई नेता सत्तापक्ष को घेरते हुए अपने प्रत्याशी को जीताने का दावा कर चुके हैं। कुल मिलाकर सुधाकर सिंह और दारा सिंह चौहान के बीच कांटे की टक्कर है। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कल्पनाथ राय के बाद से स्थानीय स्तर पर किसी नेता ने मऊ और घोसी के लिए कुछ विशेष नहीं किया है। कल्पनाथ राय के बाद जिले व खासकर घोसी में जाति समीकरण के आधार पर चुनाव होने लगे और विकास में यह क्षेत्र पिछड़ता ही गया। इस बार का उपचुनाव भी जातीय गोलबंदी के दम पर लड़ा जा रहा है। एक ओर जहां बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को चौहान, निषाद, पिछड़ों-अति पिछड़ों के साथ पार्टी के कोर वोट पर भरोसा है। वहीं, समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह को सपा के बेस वोट एमवाय (मुस्लिम-यादव), पिछड़े और राजपूत के सहारे सियासी बाजी चमकने का भरोसा है।

अनुमान के मुताबिक घोसी विधानसभा में सामान्य जाति के साठ हजार, अन्य पिछड़ा वर्ग के डेढ़ लाख, दलित बासठ हजार और अन्य जातियों के सत्तर हजार मतदाता हैं। वहीं, मुसलमान मतदाता साठ हजार से अधिक हैं। गत चुनावों पर नजर डालें तो घोसी विधानसभा में पिछड़े, मुस्लिम और दलित का जातिगत फैक्टर काफी प्रभावी है। जो उम्मीदवार इस फैक्टर को साध लेता है, वह घोसी विधानसभा चुनाव का विजेता होता है।

इसी समीकरण के कारण घोसी से सबसे ज्यादा विधायक सामान्य और पिछड़े वर्गों से हुए हैं। इस बार बीएसपी कैंडिडेट के नहीं होने से दलित वोटरों को जिताऊ फैक्टर माना जा रहा है। पार्टियां इस जोड़-तोड़ में जुटी हैं कि किसी प्रकार दलित वोटरों को अपने पक्ष में लाया जाए। मऊ जनपद में चार विधानसभा सीटें हैं, जिनमें सिर्फ एक पर बीजेपी का कब्ज़ा है।

चुनाव के मुद्दे की बात करें तो पूरे क्षेत्र में विकास, बेरोजगारी, मंहगाई, पलायन, बदहाल बुनकरी, बिजली कटौती, किसानों की परेशानियां, मजदूरों की समस्याएं, स्वास्थ्य, शिक्षा, कारखाने, नौकरी और गांव में सड़कों की मरम्मत की बातें गुम हैं। सभी पार्टियों के प्रचारक और जातीय मुखिया घोसी विधानसभा के गांवों में अपने-अपने समाज के वोटरों को जाति के आधार पर मतदान करने की अपील कर रहे हैं।

हाल ही में निषाद पार्टी के संजय निषाद, सुसभापा के ओम प्रकाश राजभर, स्वामीप्रसाद मौर्य, केशव प्रसाद मौर्य और यूपी उर्दू एकेडमी के अध्यक्ष समेत कई नेताओं ने गांव-गांव जाकर अपने समाज के लोगों से संपर्क कर अपनी पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील की है।

घोसी कस्बे के निवासी जनार्दन चौधरी ने ‘जनचौक’ को बताया कि “इस चुनाव में मंहगाई और बेरोजगारी कोई मुद्दा नहीं है, जबकि क्षेत्र के लोग मंहगाई, बेरोजगारी और पलायन से परेशान हैं। हम लोग स्थानीय उम्मीदवार को तरजीह दे रहे हैं। क्योंकि इसके पहले कई बार हम लोगों ने बाहरी व्यक्ति को चुनाव जितवाया है, लेकिन वह चुनाव जीतने के बाद कभी क्षेत्र में नहीं दिखा। क्षेत्र की समस्याओं को सदन में या ऊपर तक पहुंचाने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसलिए इस बार अपने के बीच के उम्मीदवार को जिताएंगे।”

किसान श्यामू यादव का ढाई बीघे का रकबा परती है। मानसून की बेरुखी और पानी की व्यवस्था नहीं होने से धान की रोपनी नहीं कर पाए। इसके पहले भी धान की बुआई और रबी में ओलावृष्टि से खेती में नुकसान का दंश झेल चुके श्यामू कहते हैं कि “किसानों को सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं दी गई है। खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल और श्रम मंहगा होने से लागत निकालनी मुश्किल हो रही है। फिर इस चुनाव में किसानों के मुद्दे पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। निजी सिंचाई पंप से किसान खेती कर रहे हैं। अधिक क्षमता का सरकारी नलकूप गांव में लगाने की जरूरत है। ऐसे ही आगे भी बारिश नहीं हुई तो खेतों में लगी धान की फसल सूख जाएगी।”

घोसी बाजार में रेलवे पटरी के पूर्व में स्थित मुस्लिम-बुनकर बाहुल्य नीमतल से लगे इलाके की आबादी तकरीबन तीस हजार से अधिक है। इसमें सबसे अधिक बुनकर रहते हैं। बचपन से बुनकरी का काम करने वाले बयालीस वर्षीय मुहम्मद रज़ा कहते हैं कि “कुछ ही महीने पहले रेलवे लाइन के पास रास्ते की समस्या के मुद्दे पर नगर पंचायत में बीजेपी को वोट दिया था। उसने कहा था कि चुनाव जीतते ही तीस हजार की आबादी के आवागमन के लिए रेलवे लाइन के पास से रास्ते की व्यवस्था की जाएगी। चुनाव जीतने के बाद अभी तक कुछ नहीं है। रास्ता नहीं होने से हम लोगों के मोहल्ले में एम्बुलेंस और स्कूल बस नहीं आती है। बड़ी मुश्किल से जीवन चल रहा है।”

वे आगे कहते हैं “अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है बिजली कटौती से बहुत परेशानी होती थी। चुनाव होने की वजह से बिजली मिल रही है। लेकिन बिजली का बिल आसमान छू रहा है। पावरलूम से जो भी कमाई होती है, आधे से अधिक पैसा बिजली बिल चुकाने में चला जाता है। जहां पहले एक साड़ी पर पारिश्रमिक 140 रुपये मिलता था, वह अब महज 80 रुपये रह गया है। जबकि मंहगाई बेलगाम हो चुकी है।”

मुहम्मद रज़ा कहते हैं कि “बुनकरों की लड़कियां रात-रात भर जागकर पावरलूम चलाती हैं, तब जाकर उनके परिवार को दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो पाती है। मुलायम सिंह यादव के सरकार में पावरलूम का व्यापार और बुनकरों की स्थिति अच्छी थी, लिहाजा, जो हम लोगों का ख्याल रखेगा। हम लोग उन्हें की जीत का सेहरा बांधेंगे।”

अठाइस वर्षीय परास्नातक दिनेश चौहान को अपने जाति के दारा सिंह चौहान मार्ग से भटक गए प्रतीत होते हैं। वह बताते हैं कि “जब ये सत्ता में थे तो गरीब, पिछड़ों की याद नहीं आई। आरक्षण को बढ़वाने और अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की कोई पहल नहीं किये। ये लोग सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहते हैं।”

दिनेश आगे कहते हैं कि “हमें दारा से कोई आपत्ति नहीं है। मुझे बीजेपी की नीतियों से दिक्कत है। कहने को तो प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है, लेकिन प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछड़े, दलित और महिलाओं के खिलाफ अपराध और महंगाई बेलगाम है। घोसी का कोई भी शिक्षित मतदाता बीजीपी के प्रत्याशी को वोट नहीं करेगा।”

कोपागंज और घोसी की डेढ़ दशक से पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र कुशवाहा “जनचौक” से कहते हैं कि “जमीन पर प्रचार-प्रसार सपा का तेज है, लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार को कमतर नहीं आंका जा सकता है। 2024 के आम चुनाव को देखते हुए बीजेपी इस चुनाव को अपने साख का प्रश्न बना चुकी है और पूरे मंत्रिमंडल को चुनाव में झोंक दिया है। बसपा द्वारा कैंडिडेट नहीं उतारे जाने से 50 हजार से अधिक दलित वोटर झुकाव किस और होगा? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन बदलते राजनीतिक हालात और राशन वितरण योजना से जाहिर है दलित मतदाता बीजेपी के उम्मीदवार जो अति पिछड़ी जाति से हैं, को प्राथमिकता दे सकते हैं।”

घोसी के वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत त्रिपाठी का कहना है कि “देश के तमाम विपक्षी दलों द्वारा तैयार मोर्चे (I.N.D.I.A) की यह घोसी उपचुनाव में अग्नि परीक्षा है। यदि I.N.D.I.A समर्थित उम्मीदवार सुधाकर सिंह, एनडीए (बीजेपी और अन्य पार्टियों के गठबंधन) के उम्मीदवार दारा सिंह को पटखनी दे देते हैं तो विपक्षी दलों को रणनीतिक मजबूती मिलेगी। जबकि, पूरी ताकत झोकने के बाद इस सीट को खोने के बाद से सत्ता विरोधी लहर व अन्य कारणों से बीजेपी को 2024 में काफी नुकसान उठाना पड़ा सकता है। लिहाजा, बीजेपी दलित मतदाताओं को साधने के लिए हर तरह के हथकंडे को अपनाने से नहीं चूकेगी।”

(मऊ के घोसी विधानसभा क्षेत्र से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)           

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