Sunday, June 4, 2023

भारत में बुलेट ट्रेन: मनमोहन सिंह के सपने पर मोदी के पंख

भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना अपने नाम के अनुरूप गोली की माफिक चलने के बजाय जटिल परिस्थितियों के कारण कछुआ चाल चल रही है। निर्मल भारत अभियान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी कई योजनाओं की तरह मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह सरकार की पुणे से अहमदाबाद तीब्र गति परियोजना का नाम बदल कर उसे अपने सपनों की बुलेट ट्रेन तो घोषित कर दिया मगर परियोजना को उसके नाम के अनुरूप गति नहीं दे पाये।

डॉ. मनमोहन सिंह सरकार का गोली की माफिक चलने वाली इस ट्रेन का सपना पहली बार तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी के 2009-10 के रेल बजट में नजर आया था। कुल 350 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली इस ट्रेन ने बुलेट ट्रेन के नाम से नहीं अपितु हाई स्पीड ट्रेन के नाम से पुणे-अहमदाबाद के बीच दौड़ना था। इसको व्यवहार में बदलने के लिये भारतीय रेल और फ्रेंच नेशनल रेलवे के बीच 14 फरवरी 2013 को मेमोरेंडम ऑफ ‘अंडरस्टैडिंग’ (MOU) पर हस्ताक्षर हुये थे।

अधिक आर्थिक बोझ के कारण बाद में परियोजना में परिवर्तन कर इसे मुंबई से अहमदाबाद के बीच निर्धारित कर दिया गया, जिसके लिये वर्ष 2013 में ही भारत और जापान के बीच समझौता हुआ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और जापान के प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने इस पर टोकियो में 29 मई 2013 को एक संयुक्त बयान जारी किया था। मनमोहन सिंह के बोये गये इस पौधे का फल खाने को प्रधानमंत्री मोदी बेकरार तो हैं मगर वह इस परियोजना के नाम के अनुरूप इसको गति नहीं दे पा रहे हैं।

PM Manmohan and Japnese couneterpart in Tokiyo on 29 May 2013
डॉ मनमोहन सिंह और शिन्जो अबे ने 29 मई 2013 को संयुक्त बयान जारी किया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में जब देश की कमान संभाली तो उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह के बुलेट ट्रेन के आइडिया को भी लपक लिया और उन्होंने 14 सितम्बर 2017 को जापान के प्रधानमंत्री शिन्जो आबे के साथ अहमदाबाद के साबरमती में इस परियोजना की आधारशिला भी रख दी। इससे पहले 12 नवम्बर 2016 को उन्होंने शिन्जो के साथ टोकियो में बुलेट ट्रेन की सवारी भी की। लेकिन गोली की तरह तेज गति से चलने वाली ट्रेन को पटरी पर उतारने वाले अपनी अपेक्षित गति के बजाय कछुए की गति चल से रहे हैं।

इस परियोजना को शुरू में 2022 तक पूरा होना था और बाद में इसके पूर्ण होने की समय सीमा 2023 रखी गयी। मगर अब रेल मंत्रालय का कहना है कि यह 2027 तक ही पूर्ण हो पायेगी। अब रेल मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 28 फरवरी, 2023 तक कुल भौतिक प्रगति 26.33 प्रतिशत है। मंत्रालय ने उल्लेख किया है कि महाराष्ट्र ने समग्र कार्य का 13.72 प्रतिशत पूरा कर लिया है।

दूसरी ओर गुजरात ने 52 प्रतिशत से अधिक सिविल कार्य पूरा कर लिया था और वहां कुल मिलाकर 36.93 प्रतिशत की वर्तमान पूर्णता दर है। मंत्रालय के अनुसार 257.06 किलोमीटर के हिस्से में पाइलिंग का काम पूरा हो चुका है। जबकि 155.48 किलोमीटर तक पियर का काम पूरा हो चुका है। संरचना का सपोर्ट करने के लिए 37.64 किमी गर्डर्स लॉन्च किए गए थे।

bulet train
बुलेट ट्रेन के तैयार होते पिलर

इस प्रयोग को भारत में बहुत तेज रफ्तार ट्रेनों के युग का सूत्रपात कहा जा सकता है। इसके साथ ही वाराणसी और दिल्ली के बीच एक और बुलेट ट्रेन परियोजना पर विचार किया जा रहा है। बहुत तेज गति की ट्रेनों से न केवल समय की बचत होगी बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी बड़े बदलाव की उम्मीद है। लेकिन इसके मार्ग में दिक्कतें भी कम नहीं हैं।

अगर काम आसान होता तो 2010 से लेकर अब तक कब की बुलेट ट्रेन दौड़ चुकी होती। केवल परियोजना का नाम बुलेट रखने से वह बुलेट की गति नहीं पकड़ सकती। जैसे उत्तराखंड के चारधाम मार्ग नवीनीकरण परियोजना का नाम ‘ऑल वेदर’ रखने से वह सभी मौसमों में यातायात के योग्य नहीं हो गयी।

दरअसल इस परियोजना की भौतिक और आर्थिक व्यवहार्यता के संबंध में कुछ आशंकाएं जरूर रही हैं। इस परियोजना की लागत लगभग 1.1 ट्रिलियन रुपये होने का अनुमान है, और इतना वित्तीय बोझ सरकार पर भारी पड़ सकता है। खासकर तब जब कि परियोजना अपनी लागत को पूरा करने के लिए पर्याप्त राजस्व उत्पन्न नहीं कर पाये।

परियोजना के निर्माण के दौरान लोगों के विस्थापन और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर भी चिंता जताई गई है। परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण भी आसान नहीं है। तेज रेल के लिये आम किसान की आजीविका छिन जायेगी। इसके पर्यावरणीय पहलू की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। हालांकि रेल मंत्रालय का दावा है कि अब तक लगभग 8,000 बड़े वृक्षों को उठा कर दूसरी जगह स्थापित करने के साथ ही 83,600 नया वृक्षारोपण कर दिया गया है।

भारत बुलेट ट्रेन पर 1,10,000 करोड़ रुपये 5 साल में खर्च करेगा यानी सालाना 20,000 करोड़। इस 1,10,000 करोड़ में 88,000 करोड़ रुपये भारत को कर्ज के तौर पर जापान दे रहा है। इस कर्ज पर ब्याज भी नहीं के बराबर है और ये कर्ज भारत को 50 साल में जापान को चुकाना है। 0.1 प्रतिशत के ब्याज को जोड़कर गणना करें तो 88,000 करोड़ के कर्ज के बदले भारत को जापान को 90,500 करोड़ रुपये चुकाने होंगे यानी केवल 2500 करोड़ रुपये ज्यादा।

Tokiyo bullet train
12 नवम्बर 2016 को पीएम मोदी ने शिन्जो के साथ टोकियो में बुलेट ट्रेन की सवारी की।

पहले चरण की बुलेट ट्रेन मुबंई और अहमदाबाद के बीच की 508 किलोमीटर की दूरी सिर्फ दो घंटे सात मिनट में तय करेगी। मुंबई और अहमदाबाद के बीच 12 स्टेशन प्रस्तावित हैं- बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, ठाणे, विरार, बोइसर, वापी, बिलिमोरा, सूरत, भरुच, वडोदरा, आणंद, अहमदाबाद और साबरमती। इस रूट पर बुलेट ट्रेन की ऑपिरेटिंग स्पीड होगी 320 किलोमीटर प्रतिघंटा और अधिकतम स्पीड होगी 350 किलोमीटर प्रतिघंटा।

कुल 508 किमी लम्बे इस रूट पर 468 किलोमीटर लंबा ट्रैक एलिवेडेट होगा। ट्रैक 27 किलोमीटर सुरंग के अंदर और बाकी 13 किलोमीटर जमीन पर होगा। जापान की कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार इस ट्रेन में 750 लोगों के बैठने की क्षमता होगी। भविष्य में इसे 16 कार इंजन वाली बुलेट ट्रेन में तब्दील करने का प्रस्ताव भी इस रिपोर्ट में है। 16 कार इंजन वाली बुलेट ट्रेन में 1200 लोगों के बैठने की क्षमता होगी।

रिपोर्ट के अनुसार शुरुआत के दिनों में हर दिन 36,000 लोग बुलेट ट्रेन में सफर करेंगे और 30 साल बाद यानी 2053 तक इसमें सफर करने वालों की तादाद रोजाना 1,86,000 तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है। शुरुआत में इस रूट पर हर दिन एक दिशा में 35 ट्रेन चलेंगी, जिसे 30 साल बाद यानी 2053 तक बढ़ाकर 105 ट्रेन प्रतिदिन करने की योजना है।

इसका किराया बाकी रेल किराये के मुकाबले मंहगा होगा, जो कि रेलवे के मौजूदा एसी प्रथम श्रेणी के किराये से भी डेढ़ गुना ज्यादा हो सकता है। मुंबई से अहमदाबाद तक के सफर के लिए एक यात्री को 2700 से 3000 रुपये के बीच किराया अनुमानित है।

अगर इस रूट पर हवाई जहाज के किराए की बात करें तो वो 3500 से 4000 रुपये के बीच बैठता है, जबकि उसमें यात्रियों को बीच रास्ते में कहीं उतरने की सुविधा नहीं होती। मुंबई से अहमदाबाद के बीच लक्जरी बस का किराया भी 1500 से 2000 रुपये के आसपास है।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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