Saturday, April 27, 2024

कावेरी जल विवाद: आज बेंगलुरु बंद का आह्वान, 29 सितंबर को कर्नाटक बंद के पीछे की वजह

नई दिल्ली। 25 सितंबर को शुरू हुए इस विवाद ने लगता है बड़ी तेजी से पूरे कर्नाटक को अपने आगोश में लपेट लिया है। 25 को दवानगेरे बंद, 26 को बेंगलुरु और 29 सितंबर को कर्नाटक बंद की बात कही जा रही है। कन्नड़ चलुवली समूह के नेतृत्व में कन्नड़ समर्थक संगठनों ने शुक्रवार 29 सितंबर के दिन समूचे कर्नाटक में बंद का आह्वान किया है।

आज सुबह से ही कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) एवं बेंगलुरु महानगर परिवहन निगम (बीएमआरटीसी) के कर्मचारियों द्वारा बंद के समर्थन के कारण बस सेवाएं प्रभावित हुई हैं। खबर है कि कर्नाटक में माहौल गर्म होने के कारण तमिलनाडु से कर्नाटक जाने वाली सभी अन्तर्राज्यीय बसों की आवाजाही को आज के दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है। एहतियात के तौर पर तमिलनाडु-कर्नाटक सीमा पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। 

आज के दिन बेंगलुरु में स्कूल और कॉलेज बंद हैं। गूगल और वॉलमार्ट सहित कई कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने के निर्देश दिए हैं। इंडिगो और विस्तारा जैसी घरेलू एयरलाइंस ने अपने यात्रियों के लिए सलाह जारी की है। तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़े जाने के खिलाफ लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन और बंद के आह्वान के बीच कर्नाटक की राजधानी लगभग ठप हो गई है।

बंद की वजह तमिलनाडु राज्य के लिए कावेरी नदी से पानी छोड़े जाने को लेकर है। इस वर्ष मानसून के दौरान कम बरसात का सबसे ज्यादा असर दक्षिणी राज्यों में पड़ा है। यहां की नदियों और जलाशयों के जलस्तर में भारी कमी देखी जा रही है। कावेरी से जल-निकासी का अधिकार कर्नाटक सरकार के हाथ में नहीं है। वह अपनी मर्जी से न तो मनचाहा पानी छोड़ सकती है और न ही तमिलनाडु के हिस्से में तय पानी से कम पानी छोड़ सकती है। कावेरी जल के निपटान के लिए सर्वोच्च न्यायालय और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के नियम लागू हैं।  

लेकिन चूंकि कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक राज्य में पड़ता है और कर्नाटक की तुलना में तमिलनाडु के लिए अधिक पानी की निकासी को लेकर पहले से राज्यों के बीच समझौता है। लेकिन इस साल अल-नीनो के कारण भारतीय उपमहाद्वीप, विशेषकर दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर के राज्यों में जून-सितंबर के दौरान सामान्य से बेहद कम बारिश हुई है। इन राज्यों में जल स्रोत और जलाशय पहले से ही अपने निचले स्तर पर आ चुके हैं।

कावेरी विवाद के पीछे की वजह

ताजा विवाद 21 सितंबर के सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्देश से शुरू हुआ। जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक अगले 15 दिनों तक तमिलनाडु को 5,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) पानी कावेरी नदी से छोड़ेगा। यही आदेश इससे पूर्व कावेरी जल प्राधिकरण समिति (सीडब्ल्यूआरसी) और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) द्वारा भी जारी किया गया था। लेकिन इस फैसले के बाद से कर्नाटक राज्य में बड़े पैमाने पर लोगों में नाराजगी व्याप्त है।

तमिलनाडु में जहां इस फैसले को अमल में लाने के लिए किसानों की ओर से प्रदर्शन किये जा रहे हैं, वहीं 22 सितंबर को पुलिस द्वारा कर्नाटक कृषक संध के कार्यकर्ताओं को मैसूरू जिला पंचायत के प्रांगण से इसलिए गिरफ्तार करना पड़ा, क्योंकि उनके द्वारा जिला पंचायत भवन के भीतर जबरन घुसकर राज्य के शहरी विकास मंत्री ब्यराठी सुरेश का घेराव करने का प्रयास किया जा रहा था।

इस गिरफ्तारी के विरोध में अगले दिन मांड्या में कई दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। विभिन्न कृषक संगठनों एवं संगठनों के गठबंधन ने 26 जुलाई के दिन बेंगलुरु बंद का आह्वान किया था, क्योंकि इसी दिन कावेरी जल प्राधिकरण समिति(सीडब्ल्यूआरसी) द्वारा पानी की उपलब्धता और पानी छोड़े जाने को लेकर राज्य की राजधानी में बैठक कर समीक्षा की जानी थी।

कावेरी नदी के पानी को विभिन्न राज्यों के बीच साझा करने को लेकर कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) के 2007 के आखिरी फैसले और सुप्रीम कोर्ट द्वारा फरवरी 2018 के न्यायिक फैसले में जो तय पाया गया। वह इस प्रकार से है: सामान्य वर्ष में कावेरी में पानी की उपलब्धता 740 हजार मिलियन घन फीट (टीएमसी फीट) होती है, जो व्यापक रूप से सीडब्ल्यूडीटी के अंतिम निष्कर्षों के अनुरूप है। इस बंटवारे में कर्नाटक को (284.75 टीएमसी फीट); तमिलनाडु के लिए (404.25 टीएमसी फीट); केरल को (30 टीएमसी फीट) और पुडुचेरी के लिए (7 टीएमसी फीट) पानी आवंटित किया गया था। इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण एवं समुद्र में अपरिहार्य क्षरण के मद्देनजर क्रमशः 10 और 4 टीएमसी फीट पानी अलग रखा गया था।

तमिलनाडु के लिए कर्नाटक को मासिक कार्यक्रम के हिसाब से 177.25 टीएमसी फीट पानी, अंतरराज्यीय सीमा पर स्थित बिलिगुंडलू में सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। इसमें से 123.14 टीएमसी फीट पानी जून से सितंबर माह के दौरान दिया जाना है, जिस दौरान दक्षिण-पश्चिमी मानसून भी सक्रिय रहता है। लेकिन इस वर्ष अनुमान से बेहद कम बारिश होने के कारण कावेरी जल विवाद का मुद्दा एक बार फिर से भड़क उठा है।

सीडब्ल्यूएमए और इसकी सहायक संस्था, सीडब्ल्यूआरसी जून 2018 से प्राधिकरण एवं न्यायालय के फैसले पर अमल और किसी भी विवाद के निपटान का काम देख रही है।

कर्नाटक के किसानों की नाराजगी की वजह?

इस वर्ष का दक्षिण-पश्चिम मानसून लगभग अनुपस्थित रहा है, विशेषकर दक्षिणी कर्नाटक के अन्दुरुनी इलाकों में जहां से कावेरी नदी की शुरुआत होती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक 1 जून से 23 सितंबर के बीच, इस क्षेत्र में 27% कम बारिश हुई है। यही नहीं, कर्नाटक के कोडागु और केरल के वायनाड जिलों में भी, जहां से कावेरी और उसकी सहायक नदी काबिनी अपने साथ आवश्यक जल ग्रहण करती है, में भी क्रमशः 43% और 56% की कमी दर्ज की गई है। अदालत के समक्ष अपने प्रतिवेदन में कर्नाटक ने जो तथ्य पेश किये थे उसके अनुसार कावेरी बेसिन में चार जलाशय हैं, लेकिन जलाशय जो कि जलग्रहण क्षेत्र के एक हिस्से को कवर करते हैं, इस वर्ष 53.42% कम पानी का स्तर है।

पिछले सप्ताह कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा था कि तमिलनाडु को दैनिक 5,000 क्यूसेक पानी की आपूर्ति कर्नाटक राज्य के हितों के खिलाफ” है। कर्नाटक और उसमें भी खासकर बेंगलुरु जैसे शहरी क्षेत्रों में पीने के पानी का संकट अपने चरम पर है, जबकि तमिलनाडु को यह पानी सिंचाई के लिए चाहिए। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि पिछले 15 दिनों से कर्नाटक में जल-संकट बढ़ गया है।

तमिलनाडु के हालात

कावेरी बेसिन में निचले तटवर्ती राज्य होने के नाते तमिलनाडु बड़े पैमाने पर कर्नाटक द्वारा छोड़े जाने वाले पानी के उपर निर्भर है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के आंकड़े बताते हैं कि 21 सितंबर तक राज्य को सामान्य वर्ष के हिसाब से 112.11 टीएमसी फीट पानी मिल जाना चाहिए था, लेकिन मात्र 40.76 टीएमसी फीट ही मिला। मानसून की विफलता के लिए भत्ता देने और कर्नाटक द्वारा पानी की कम मात्रा का हवाला देने के बावजूद तमिलनाडु इस बात पर अड़ा है कि उसे 12 सितंबर तक 7.8 टीएमसी फीट और मिलना चाहिए था।

राज्य को फिलहाल कम से कम तीन लाख एकड़ भूमि के लिए पानी की जरूरत है, जिसमें (कुरुवई) फसल उगाई गई है। कई जगहों से फसल सूखने का खतरा होने की खबरें आ रही हैं।

लेकिन इससे भी बड़ी चिंता आगे की है। अगले कुछ हफ्तों में राज्य को 125-135 दिनों की दीर्घकालिक फसल हेतु बड़े पैमाने पर पानी की आवश्यकता होगी, जिसे आम तौर पर 15 लाख एकड़ कृषि क्षेत्र में उगाया जाता है। इस सीजन में लाखों भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने का भी अवसर प्राप्त होता है। सांबा फसल के दौरान खेती से जुड़ी तमाम गतिविधियाँ तमिलनाडु में होती हैं, लेकिन दक्षिण-पश्चिम मानसून की तुलना में उत्तर-पूर्व मानसून (अक्टूबर-दिसंबर) कहीं ज्यादा अप्रत्याशित होता है। सिंचाई के अलावा कावेरी का पानी राज्य के कई जिलों में पीने के पानी का भी मुख्य स्रोत है।

आगे का रास्ता क्या है?

हाल ही में भाजपा-जेडीएस गठबंधन के चलते भी राज्य के किसान संगठनों के विरोध को मुखर रूप से उठाने का आधार मिल गया है। पिछले चार महीनों से भाजपा के तमाम प्रयासों के बावजूद, उसके पास नवनिर्वाचित सिद्धारमैया सरकार के खिलाफ जन-आक्रोश का कोई बड़ा मुद्दा नहीं मिल रहा था। सोशल मीडिया में कांग्रेस पर आरोप लगाये जा रहे हैं कि तमिलनाडु में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल डीएमके को खुश रखने के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा कर्नाटक के किसानों और आम लोगों के हक का पानी तमिलनाडु को दिया जा रहा है।

हालांकि सितंबर माह में मानसून का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा है, और उम्मीद है कि वापसी मानसून जरुरी राहत प्रदान करे। अकेले सितंबर में हुई बारिश से देश में सामान्य मानसून से मात्र 5-6% कम बारिश रह गई है। इसके अलावा, चूंकि कावेरी जल के निपटान के लिए पूर्व निर्धारित अनुपात के हिसाब से मौजूदा जल-स्तर का आकलन कर सभी राज्यों को उनके अनुपात के हिसाब से जल-वितरण के लिए सर्वोच्च न्ययालय और केंद्रीय जल प्राधिकरण को जल्द से जल्द फैसला कर, दो राज्यों के बीच अनावश्यक विवाद को तूल देने से रोकना होगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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