Friday, April 26, 2024

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने एलजी से पूछा मंत्रियों की सलाह के बगैर एमसीडी में क्यों मनोनीत कर दिये 10 मेंबर 

दिल्ली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (एमसीडी) में 10 सदस्यों को मनोनीत करने के मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना से जवाब तलब किया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ  ने उनको नोटिस जारी करके मामले की सुनवाई 10 अप्रैल तय की है। सुप्रीम कोर्ट दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सरकार ने 10 सदस्यों को एमसीडी में मनोनीत करने पर आपत्ति जताई।

पीठ के सामने दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी  ने कहा कि उप-राज्यपाल का फैसला सरासर गलत है। उन्होंने मंत्रियों के समूह से मशविरा किए बगैर कॉर्पोरेशन में 10 सदस्यों को उस समय मनोनीत कर दिया जब चेयरमैन का चुनाव लंबित था। उनका फैसला सीधे तौर पर बहुमत को प्रभावित करने का था।

सिंघवी कहना है कि डीएमसी एक्ट के सेक्शन 3(3)(b)(i) के तहत उप राज्यपाल को निर्वाचित सदस्यों के अलावा 10 लोगों को कॉरपोरेशन में मनोनीत करने का अधिकार है। लेकिन मंत्रियों से मशवरे के बाद। इसमें प्रावधान है कि मनोनीत सदस्यों की उम्र 25 साल से कम नहीं होनी चाहिए। उनके पास म्यूनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन में विशेष जानकारी होनी चाहिए।

अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 239AA के तहत प्रशासन (एलजी) को सदस्य मनोनीत करने का अधिकार तो है लेकिन वो सरकार के मंत्रियों से बात किए बगैर ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन उप राज्यपाल ने अपनी मनमानी करने में संविधान की भी अवहेलना कर डाली।

याचिका में कहा  गया है कि यह ध्यान रखना उचित है कि न तो धारा और न ही कानून का कोई अन्य प्रावधान कहीं भी कहता है कि इस तरह का नामांकन प्रशासक द्वारा अपने विवेक से किया जाना है। इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 239AA की योजना के तहत शब्द “प्रशासक” आवश्यक रूप से प्रशासक/उपराज्यपाल के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। जो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने और उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर नामांकन करने के लिए बाध्य हैं।

याचिका में राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) बनाम भारत संघ (2018) में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का भी हवाला दिया गया। जिसके अनुसार अनुच्छेद 239AA कहता है कि दिल्ली की एनसीटी की निर्वाचित सरकार ने ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘पुलिस’ और ‘भूमि’ के तीन अपवादित विषयों के अलावा, राज्य और समवर्ती सूची में सभी विषयों पर विशेष कार्यकारी शक्तियां हैं। याचिका के अनुसार, वर्तमान मामले में नामांकन की शक्ति राज्य सूची यानी ‘स्थानीय सरकार’ की प्रविष्टि 5 के अंतर्गत आती है, जो किसी भी अपवादित विषय से संबंधित नहीं है।

याचिका में आगे तर्क दिया गया कि नामांकन के लिए फाइल को साफ करने में अपनाई गई प्रक्रिया भी 2021 में संशोधित व्यापार नियमों का उल्लंघन करती है, जिसके अनुसार प्रस्ताव निर्वाचित सरकार से उत्पन्न होना चाहिए। उसके लिए उप-राज्यपाल के समक्ष रखा जाना चाहिए।

इसके बाद मुख्य सचिव/मुख्यमंत्री के माध्यम से अपनी राय एलजी को सात दिनों के भीतर प्रस्ताव पर अपने विचार रिकॉर्ड करने होंगे। एलजी और किसी विभाग के मंत्री के बीच किसी भी मतभेद के मामले में एलजी “पंद्रह कार्य दिवसों में की अवधि के भीतर बातचीत और चर्चा के माध्यम से मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करेंगे।

याचिका में तर्क दिया गया कि एलजी के लिए कार्रवाई के केवल दो तरीके खुले हैं-

1. निर्वाचित सरकार द्वारा एमसीडी में नामांकन के लिए अनुशंसित प्रस्तावित नामों को स्वीकार करें या; 2. प्रस्ताव के साथ मतभेद का उल्लेख करें और इसे राष्ट्रपति को संदर्भित करें। याचिका में कहा गया है कि चुनी हुई सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए अपनी पहल पर नामांकन करना उनके लिए बिलकुल भी खुला नहीं है।

सरकार ने 2021 में संशोधित किए गए बिजनेस रूल्ज का हवाला देकर कहा कि सदस्यों को मनोनीत करने का प्रस्ताव सरकार की तरफ से आना चाहिए था। इस प्रस्ताव को चीफ सेक्रेट्री या फिर चीफ मिनिस्टर के जरिये एलजी तक पहुंचना था। एलजी को इस पर सात दिनों के भीतर अपनी टिप्पणी करने का अधिकार है।

अगर उनकी राय मंत्रियों के प्रस्ताव से अलग होती है तो फिर 15 दिनों के भीतर बातचीत के जरिये मामला सुलझाना होता है। अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि उप-राज्यपाल ने नियमों को दरकिनार कर सीधे ही 10 सदस्यों को मनोनीत कर डाला। ये सरासर गलत है।

दिल्ली सरकार की याचिका में अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई। जिसके माध्यम से दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) ने अपनी पहल पर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में दस मनोनीत सदस्यों को नियुक्त किया, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर।

पीठ ने  याचिका अब 10 अप्रैल 2023 के लिए सूचीबद्ध किया है।

( जे. पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

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