उच्चतम न्यायालय ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन मामले में महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय के सचिव को शुक्रवार को नोटिस जारी करके पूछा कि क्यों न उनके खिलाफ न्यायालय अवमान अधिनियम के तहत अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए। इस के साथ ही कोर्ट ने इस मामले में गोस्वामी की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा दी है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने अवमानना नोटिस उस वक्त जारी किया, जब उसे अर्नब गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अवगत कराया कि सचिवालय के सचिव ने गत 30 अक्तूबर को अर्नब को पत्र लिखकर कहा है कि उन्होंने गोपनीयता की शर्त का उल्लंघन किया है।
विशेषाधिकार नोटिस के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचने की वजह से 13 अक्तूबर को अर्नब गोस्वामी को लेटर लिखने और डराने को लेकर सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव को अवमानना का नोटिस जारी किया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कथित आलोचना को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस जारी किया था।
हरीश साल्वे के अनुसार, महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय के सचिव की तरफ से लिखी चिठ्ठी में कहा गया था कि अर्नब को बताया गया था कि कार्यवाही गोपनीय है, लेकिन उन्होंने (अर्नब ने) बिना विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के उस बात की जानकारी शीर्ष अदालत को दे दी। जस्टिस बोबडे ने सचिव के इस बात का संज्ञान लेते हुए पूछा कि संविधान का अनुच्छेद 32 किसलिए है? सचिव का यह पत्र एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि पत्र के जरिए संबंधित व्यक्ति को अदालत का दरवाजा खटखटाने पर डराने का प्रयास किया गया। यह अदालत की अवमानना की श्रेणी में आता है।
पीठ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि इस अधिकारी ने इस तरह का पत्र लिखा है कि विधानसभा की कार्यवाही गोपनीय है और इसका खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह गंभीर मामला है और अवमानना जैसा है। ये बयान अभूतपूर्व है और इसकी शैली न्याय प्रशासन का अनादर करने वाली है और वैसे भी यह न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप करने के समान है। पीठ ने कहा कि इस पत्र के लेखक की मंशा याचिकाकर्ता को उकसाने वाली लगती है, क्योंकि वह इस न्यायालय में आया है और इसके लिए उसे दंडित करने की धमकी देने की है।
पीठ ने कहा कि इसलिए, हम प्रतिवादी संख्या दो (विधानसभा सचिव) को कारण बताओ नोटिस जारी कर रहे हैं कि संविधान के अनुच्छेद 129 में प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए क्यों नहीं उसे न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित किया जाना चाहिए। इस पत्र का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि काश विधानसभा सचिव को समझाया गया होता कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार है।
पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर किसी नागरिक को शीर्ष अदालत आने के लिए अनुच्छेद 32 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल करने पर डराया जाता है तो यह निश्चित की देश में न्याय के प्रशासन में गंभीर हस्तक्षेप होगा।
पीठ ने इस बात का भी गंभीरता से संज्ञान लिया कि विधानसभा सचिव, जिन पर अर्नब गोस्वामी की याचिका की तामील की गई थी, ने उच्चतम न्यायालय में पेश होने के बजाए सदन की नोटिस की जानकारी उच्चतम न्यायालय को देने के प्रति आगाह करते हुए पत्रकार को पत्र लिखा है। पीठ ने कहा कि हमने पाया कि यद्यपि प्रतिवादी को इसकी तामील हो चुकी थी, लेकिन उसने पेश होने के बजाए याचिकाकर्ता को यह पत्र लिखा है।
पीठ ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि महाराष्ट्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गोस्वामी को लिखे विधानसभा सचिव के पत्र के विवरण पर स्पष्टीकरण देने या इसे न्यायोचित ठहराने में असमर्थता व्यक्त की।
इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने एक नोटिस जारी करके पत्र लिखने वाले सचिव से पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही की जाए। पीठ ने नोटिस के जवाब के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। इस बीच अर्नब गोस्वामी इस मामले में गिरफ्तार नहीं किए जाएंगे। पीठ ने इस मामले में वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार को न्याय मित्र बनाया है।
पीठ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में कार्यक्रमों को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा अर्नब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही शुरू करने के लिए जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने 30 सितंबर को अर्नब गोस्वामी की याचिका पर महाराष्ट्र विधानसभा सचिव से जवाब मांगा था। गोस्वामी के वकील ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि उनके मुवक्किल ने विधानसभा की किसी समिति या विधानसभा की किसी भी कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं किया है।
नोटिस के जवाब में गोस्वामी ने अपने चैनल, रिपब्लिक टीवी पर एक बयान जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि वह उद्धव ठाकरे और चुने हुए प्रतिनिधियों से सवाल करना जारी रखेंगे और उन्होंने नोटिस पर लड़ने का फैसला किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)