अशोका विश्वविद्यालय में नहीं थम रहा विवाद, सब्यसाची और बालाकृष्णन के समर्थन में उतरे 3 विभाग

नई दिल्ली। अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के दो प्रोफेसरों सब्यसाची दास और पुलाप्रे बालाकृष्णन के इस्तीफा देने से विवाद थमने के बजाए और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। विश्वविद्यालय के कई विभागों के प्रोफेसर अब खुलकर गवर्निंग बॉडी के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। इससे पहले विश्वविद्यालय में सिर्फ अर्थशास्त्र विभाग ही अपने प्रोफेसरों के समर्थन में खड़ा था, अब और तीन विभाग के प्रोफेसर भी सब्यसाची और बालाकृष्णन के समर्थन में आ गए हैं। सब्यसाची के समर्थन में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने एकजुटता दिखाते हुए बयान जारी किया है। सब्यसाची के समर्थन में अशोका विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने एकजुटता दिखाते हुए बयान जारी किया है।

गौरतलब है कि सब्यसाची दास के शोध पत्र ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ पर विवाद शुरू हुआ। और सब्यसाची दास को इस्तीफा देना पड़ा था। सत्तारूढ़ भाजपा ने उनके रिसर्च पेपर के निष्कर्षों पर सवाल उठाया था। जिसके बाद विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी कर रिसर्च पेपर से अपने को अलग कर लिया था। और रिसर्च पेपर के गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया था।

सूचना के मुताबिक अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग ने सर्वसम्मति से प्रोफेसर सब्यसाची दास के प्रति एकजुटता व्यक्त किया है। राजनीति विज्ञान विभाग ने एक बयान में कहा है कि, प्रोफेसर दास को उनके काम से खुद को अलग करने के विश्वविद्यालय के रवैये और उनके शोध की जांच करने के सरकारी समिति के फैसले के बाद अर्थशास्त्र विभाग से इस्तीफा दे दिया।

अन्य विभागों का समर्थन तब आया जब अर्थशास्त्र विभाग ने बुधवार को जारी किए गए एक खुला पत्र में कहा कि दास के अध्ययन की “गुणों की जांच” करने की प्रक्रिया में अशोका विश्वविद्यालय के गवर्निंग बॉडी के “हस्तक्षेप” से “शिक्षकों के पलायन में तेजी” आने की संभावना है।

राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा गुरुवार को जारी पत्र में दो मांगें दोहराई गई है “बिना शर्त प्रोफेसर सब्यसाची दास को विश्वविद्यालय में वापस लाया जाए…और यह सुनिश्चित हो कि गवर्निंग बॉडी किसी भी समिति या किसी संरचना के माध्यम से संकाय अनुसंधान के मूल्यांकन में कोई भूमिका नहीं निभाएगा।” इससे पहले अर्थशास्त्र विभाग के द्वारा साझा किए गए पत्र में यही मांग रखी गई थी।

पत्र में आगे कहा गया है “हमारा मानना ​​है कि प्रोफेसर दास ने अकादमिक अभ्यास के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया है। हम गवर्निंग बॉडी के कार्यों की कड़ी निंदा करते हैं… अपने सहकर्मियों की तरह, हम भी आलोचनात्मक जांच की भावना और सत्य की निर्भीक खोज, जो हमारी कक्षाओं की विशेषता है, में अपने शिक्षण दायित्वों को आगे बढ़ाने में असमर्थ होंगे, जब तक कि ये मांगें पूरी नहीं हो जातीं।” 

अशोका विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने भी गुरुवार सुबह बयान जारी कर कहा, “पिछले कुछ दिनों में, हमें पता चला है कि प्रोफेसर दास को उनके शैक्षणिक कार्यों में असामान्य और परेशान करने वाले हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा था, हमें उम्मीद है कि गवर्निंग बॉडी प्रोफेसर दास और संकाय से बिना शर्त माफी मांगेगा। ऐसा करने में, हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे अकादमिक स्वतंत्रता पर विश्वविद्यालय की नीति और उन आदर्शों के प्रति निष्ठा को सुनिश्चित करें जिन पर विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

अशोका विश्वविद्यालय के फैकल्टी सदस्यों ने गवर्निंग बॉडी से 23 अगस्त से पहले इन मुद्दों को संबोधित करने का आग्रह किया है।

अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने पिछले सप्ताह इस्तीफा दे दिया था। विश्वविद्यालय ने सोमवार को उनके इस्तीफे की पुष्टि की, और एक बयान में कहा, “उन्हें मना करने के व्यापक प्रयास करने के बाद, विश्वविद्यालय ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है… भारतीय चुनावों पर डॉ. दास का पेपर हाल ही में सोशल मीडिया पर साझा किए जाने के बाद विवादों में घिर गया था, जहां कई लोगों का मानना ​​था कि यह विश्वविद्यालय के विचारों को प्रतिबिंबित करता है।”   

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(जनचौक की रिपोर्ट।)

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