Sunday, September 24, 2023

सांसद मनोज झा का व्याख्यान रद्द करने पर बढ़ा विवाद, वीसी के हस्तक्षेप से सीपीडीएचई के बदले सुर

नई दिल्ली। संघ-भाजपा शासन के दौरान लगातार सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला किया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रोफेसर और राजद सांसद मनोज झा का पूर्व निर्धारित व्याख्यान रद्द कर दिया है। यह व्याख्यान विश्वविद्यालय के युवा शिक्षकों के रिफ्रेशर में दिया जाना था। आश्चर्य की बात यह है कि डीयू प्रशासन ने पहले प्रो. मनोज झा को आमंत्रित किया फिर अचानक पत्र के द्वारा उनको सूचना दी गई कि “अपरिहार्य कारणों से आपके व्याख्यान को रद्द कर दिया गया है। असुविधा के लिए खेद है।” हालांकि जब ये मामला तूल पकड़ने लगा तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके लेक्चर को पुनर्निर्धारित कर दिया।

विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाकर दूसरे विचार के शिक्षकों को अपमानित करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। अकादमिक कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। अभी हाल ही में आशोका विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) बेंगलुरु जैसे शैक्षणिक संस्थानों पर सरकार के दखलंदाजी का मामला सामने आया। जब एक प्रोफेसर के रिसर्च पेपर पर सत्तापक्ष की नाराजगी के चलते विश्वविद्यालय ने उक्त प्रोफेसर से इस्तीफा ले लिया।

सांसद मनोज झा के व्याख्यान को उनके ही विश्वविद्यालय में रद्द किए जाने पर काफी चर्चा का विषय बना है। आपको बता दें कि सांसद मनोज झा मोदी सरकार और हिंदुत्व की राजनीति के कट्टर आलोचक हैं। सासंद मनोज झा पिछले 30 सालों से विश्वविद्यालय में फैकल्टी के तौर पर कार्यरत हैं।

4 सितंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में होने वाले कार्यक्रम, सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन (सीपीडीएचई) में 18 अगस्त को सांसद मनोज झा को आमंत्रित किया गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के सामाजिक कार्य विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी सदस्यों में से एक मनोज झा को सामाजिक कार्य और सामाजिक विज्ञान पर एक ऑनलाइन रिफ्रेशर पाठ्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्हें सुबह 10 से 11.30 बजे के बीच “राजनीतिक सामाजिक कार्य: अभ्यास के लिए नया अवसर” विषय पर बोलना था।

हालांकि, कल यानी बुधवार को मनोज झा को सीपीडीएचई निदेशक गीता सिंह का एक पत्र मिला। जिसमें सांसद मनोज झा को सूचित किया गया था कि “कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण आपके व्याख्यान को रद्द कर दिया गया है। असुविधा के लिए खेद है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय का निर्णय यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि कैसे विश्वविद्यालय प्रशासन के विचार संकीर्ण होते जा रहे हैं और इस तरह के विचार असहिष्णुता को दर्शाते हैं।

इससे पहले भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरु के छात्रों द्वारा आयोजित ब्रेक द साइलेंस का हिस्सा बनने के लिए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को आमंत्रित किया गया था। जहां पर वो सांप्रदायिक सद्भाव और न्याय पर बातचीत करने वाली थी लेकिन आयोजन के दिन उन्हें संस्थान में प्रवेश करने से रोका गया था।

इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने हस्तक्षेप कर सीपीडीएचई निदेशक गीता सिंह से मनोज झा को फिर से उनके व्याख्यान के लिए आमंत्रित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि किसी को आमंत्रित कर और फिर उसे रद्द करना अच्छी प्रथा नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे ये मामला प्रोफेसर मनोज झा के माध्यम से पता चला। जिसके बाद मैने उनको फिरसे आमंत्रित करने को कहा।

अपने सेशन रद्द किए जाने को लेकर सांसद मनोज झा कहते हैं कि “मैं इस बात से परेशान हूं कि मेरा अपना संस्थान जहां पर मैं नियमित रूप से कक्षा लेता हूं, पीएचडी के छात्रों की देखरेख करता हूं, और जहां मैं पिछले 30 वर्षों से काम कर रहा हूं, वो संस्थान मेरे साथ ऐसा कर रहा है। मैं संसद और सार्वजनिक स्थानों पर बोलता हूं और समाचार पत्रों में लिखता हूं। विश्वविद्यालय का सही उद्देश्य वैकल्पिक विचारों और वैकल्पिक दार्शनिक आदर्शों पर चर्चा करना हैं। यदि आप विश्वविद्यालय के विचार को सीमित कर देंगे, तो संस्थान का पूरा उद्देश्य विफल हो जाएगा। ऐसे कमबीन विचारों के साथ भारत विश्वगुरु कैसे बन सकता है?”

मनोज झा आगे कहते हैं कि पिछले छह सालों में यह दूसरी बार है जब उन्हें ये सब झेलना पड़ रहा है। 2021 में, डीयू के दो कॉलेजों ने उन्हें एक कार्यक्रम में लोकतंत्र पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन उस वक्त भी संस्थानों ने आखिरी समय में यह कहते हुए निमंत्रण रद्द कर दिया कि कार्यक्रम का मुद्दा बदल गया है।

दक्षिणपंथियों पर तंज कसते हुए मनोज झा कहते हैं कि “मुझे लगता है कि कुछ लोग, खासकर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोग, न्याय, समानता, मानवाधिकार और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों पर मेरे रुख से असहज महसूस करते हैं।”

विश्वविद्यालय द्वारा लेक्चर रद्द किए जाने को लेकर मनोज झा प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री को पत्र लिखेंगे। अगर उन्होंने विश्वविद्यालय के इन कार्रवाई का समर्थन नहीं किया है तो इस तरह की गतिविधि बंद होनी चाहिए क्योंकि इस तरह से संस्थान को बर्बाद होने नहीं दिया जा सकता है।

यह पूछे जाने पर कि मनोज झा का सत्र क्यों रद्द किया गया? गीता सिंह ने बुधवार दोपहर को कहा, “हमारा कार्यक्रम थोड़ा बदल गया है क्योंकि प्रधानमंत्री 4 या 5 सितंबर को इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए एक पोर्टल लॉन्च करेंगे। इसलिए, हमें उनके सत्र को पुनर्निर्धारित करने की आवश्यकता थी। इसे रद्द नहीं किया गया है, इसे बस पुनर्निर्धारित किया गया है।”

डेमोक्रेटिक यूनाइटेड टीचर्स एलायंस की संयोजक डॉ. नंदिता नारायण ने एक बयान में कहा कि मनोज झा के निमंत्रण को रद्द करना शिक्षा जगत की पूरी तरह अवहेलना करना है।

नंदिता नारायण आगे कहती हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया ये कार्य असहिष्णु और कट्टर संस्कृति के संस्थागतकरण का एक और उदाहरण है। सीपीडीएचई के निदेशक को विरोधी विचारों को छोड़कर सत्तारूढ़ दल के विचार का समर्थन करने वाले व्यक्तियों और मुख्य अतिथियों के साथ शिक्षकों के लिए ओरिएंटेशन/रिफ्रेशर/विकास कार्यक्रमों को अत्यधिक पैक करने की अनुमति देता है।

नंदिता नारायण ने बयान में कहा कि इस तरह के अनुचित कार्य एक प्रतिष्ठित संस्थान के लिए अपमानजनक है और एक विश्वविद्यालय के विचार पर हमला है।

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