वैशाली में सरेआम अपहरण के बाद सामूहिक बलात्कार और फिर दलित छात्रा की हत्या: माले जांच रिपोर्ट

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पटना। वैशाली जिले के मानसिंहपुर बिझरौली पंचायत के शाहपुर गांव में विगत 20 दिसंबर की शाम लगभग 7 बजे सरेआम सामंती अपराधियों द्वारा एक दलित छात्रा को जबरन उठा लेने की घटना साबित करता है कि भाजपा-जदयू के शासन में एक बार फिर से सामंती ताकतों का मनोबल सिर चढ़कर बोल रहा है और बिहार में ‘सुशासन’ अथवा ‘कानून’ का नहीं सामंती दबंगों का राज है, जिनके सामने प्रशासन पूरी तरह से लाचार व बेबस होकर अपराधियों के ही पक्ष में खड़ा है। समाज सुधार का ढोंग करने वाले नीतीश कुमार को यह बताना चाहिए कि एक लोकतांत्रिक समाज में इस तरह की बर्बरता व दलितों-महिलाओं के मान-सम्मान को कुचल देने की घटनाओं को कैसे होने दिया जा रहा है और इस तरह की प्रवृत्तियां लगातार क्यों बढ़ रही हैं?

वैशाली में हुए सामूहिक बलात्कार व हत्या की घटना की जांच के उपरांत पटना लौटे माले विधायक सत्यदेव राम व ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव ने पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि हम 2022 में नहीं, बल्कि पुराने जमाने में जी रहे हैं, जब समाज के दबंग लोग जब मर्जी हुई, दलितों की बहु-बेटियों को उठा लेते थे। बिहार में आए दिन दलितों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों पर बर्बर किस्म के हमले हो रहे हैं, लेकिन समाज सुधार यात्रा का ढोंग करने वाले नीतीश कुमार को यह सब दिखता ही नहीं है।

जांच दल में उक्त नेताओं के अलावा किसान महासभा के बिहार राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद यादव, वैशाली के जिला सचिव योगेन्द्र राय, दीनबंधु प्रसाद, अरविंद कुमार चौधरी, रामबाबू भगत, मो. खलील, पवन कुमार, साधना सुमन, शीला देवी आदि शामिल थे।

जांच दल की रिपोर्ट

माले की उच्चस्तरीय जांच टीम ने 2 जनवरी को गांव का दौरा किया और मृतक छात्रा के परिजनों व ग्रामीणों से मुलाकात की। जांच टीम ने पाया कि विगत 20 दिसंबर को शाम लगभग 7 बजे शौच करने जा रही 20 वर्षीय छात्रा को गांव के ही भूमिहार समुदाय से आने वाले दबंग प्रवृत्ति के युवक अनुराग चौधरी के नेतृत्व में 4 लोगों ने पकड़ लिया और गांव से बाहर ले जाने लगे। गांव वालों ने इसका प्रतिवाद किया व लड़की को बचाने की कोशिश की। लेकिन अपराधी लड़की को ले भागने में सफल रहे।

21 दिसंबर की सुबह छात्रा के पिता अनुराग चौधरी के पिता राकेश चौधरी से मिले। राकेश चौधरी ने सामंती दबंगई में कहा कि केस-मुकदमा मत करो, 2 से 3 दिन में लड़की वापस आ जाएगी। मामला बड़ा न हो जाए और लड़की की शादी कहीं रूक न जाए, यह सोचकर लड़की के पिता चुप रह गए और लड़की के वापस लौटने का इंतजार करने लगे। उन्होंने केस नहीं किया। दरअसल, यह इलाका आज भी सामंती दबदबा वाला इलाका है। दलितों के घरों में घुसना बेहद आम बात है। मानो सामंतों का यह अधिकार हो। दबंगों के डर से ही पीड़िता के पिता चुप रहे और मुकदमा करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।

लेकिन 3 दिन बाद भी लड़की नहीं आई। 26 दिसंबर को गांव के उत्तर दिशा में स्थित पोखरा में कुछ लोगों ने लड़की की क्षत-विक्षत लाश देखी। शोरगुल शुरू हुआ। गांव के लोग दौड़े। तत्काल पुलिस को इसकी सूचना दी गई। पुलिस आई और उसी ने लाश निकाला, लेकिन उसने इसकी वीडियोग्राफी नहीं करवाई। आक्रोशित ग्रामीणों ने डेड बॉडी के साथ लगभग 8 घंटे तक सड़क जाम किया। वे एसपी को बुलाने की मांग कर रहे थे। एसपी तो नहीं आए। उनके स्थान पर एसडीपीओ रैंक के अधिकारी आए। उनके आश्वासन के बाद जाम हटा। प्रशासन पोस्टमार्टम के लिए डेड बॉडी को अपने साथ ले गया। उस समय एफआईआर किया गया। एफआईआर में 4 लोग नामजद हैं। इनमें अनुराग चौधरी व एक अन्य की गिरफ्तारी हुई है। बाकि 2 अपराधी अभी भी फरार हैं।

ताज्जुब की बात है कि एफआईआर में दलित उत्पीड़न एक्ट नहीं लगाया गया है। और जहां तक जांच टीम को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बारे में पता चला, उसमें सामूहिक बलात्कार से इंकार किया गया है। जांच टीम ने पाया कि प्रशासन दबंगों को बचाने के काम में लगा हुआ है और जानबूझकर बलात्कार की घटना को छुपा रहा है।

जांच टीम को यह भी पता चला कि पातेपुर के स्थानीय भाजपा विधायक लखेन्द्र पासवान जब गांव पहुंचे, तो ग्रामीणों ने उन्हें खदेड़ बाहर किया। दरअसल, भाजपा विधायक अपराधियों को बचाने के काम में ही लगे हुए हैं।

जांच दल ने मांग की है कि उक्त मुकदमा में एसी-एसटी एक्ट लगे, दारोगा व एसपी को तत्काल सस्पेंड किया जाए, अन्य 2 अपराधियों की गिरफ्तारी हो, मृतक के परिजन को तत्काल 20 लाख रुपये मुआवजा व उनकी सुरक्षा की गारंटी की जाए। 15 दिनों के अंदर स्पीडी ट्रायल चलाकर सभी अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। इस घटना के खिलाफ 10 जनवरी को जिला में प्रतिवाद भी किया जाएगा।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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