Friday, March 29, 2024

माननीय! आप मानवाधिकारों या मोदी सरकार, किसके हैं रक्षक?

प्रिय न्यायमूर्ति अरुण मिश्र,

कुछ सप्ताह पहले जब मलयालम के एक समाचार पत्र में एक रिपोर्ट छपी कि आपने अपना सरकारी आवास नहीं छोड़ा है। जबकि आप सर्वोच्च न्यायालय से सितंबर 2020 में रिटायर हो गए थे। सामान्य तौर पर, बिना पीनल रेंट दिए,  आप रिटायरमेंट के बाद एक मास और रह सकते थे। लेकिन इस रिपोर्ट को पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ।

मेरा निश्चित मत है कि सत्तासीन लोगों के लिए फायदे के काम करने के एवज में आपको राजधानी में किसी अच्छे ओहदे की उम्मीद थी। मेरा अनुमान सही निकला क्योंकि आप राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए हैं।

मैं साफ कर दूं कि मुझे पता नहीं था कि आप इस पद के योग्य हैं। मेरा ख्याल था कि सर्वोच्च न्यायालय से रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश ही इस पद पर नियुक्त किया जा सकता है। मुझे, मेरे मित्र के टी अशरफ द्वारा न्यायमूर्ति फातिमा बीवी की लिखी जीवनी से ही आयोग के इतिहास का थोड़ा बहुत ज्ञान मिला। वह केरल में पाठनामकित्ता जिले के वेलंझुमी कस्बे में मेरे पड़ोस में रहती थीं। जहां उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पहले एक वकील और बाद में एक मजिस्ट्रेट के रूप में की। हम दोनों पाठनामकित्ता तालुका के दफ्तर के सामने बने सरकारी प्राइमरी स्कूल में सह पाठी थे।

मुझे पता नहीं था कि नियमों में संशोधन किया गया है जिसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का कोई भी जज आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है। किसी को क्या पता कि नियम में संशोधन करते समय सरकार आपको ध्यान में रखे थी। आप सरकार के कितने चहेते हैं, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आपकी नियुक्ति करते समय सर्वोच्च न्यायालय के कई रिटायर्ड मुख्य न्यायधीश को नजर अंदाज कर दिया गया।

यह भी सही है कि आपके विरुद्ध यह नहीं कहा जा सकता कि आप कभी भी मुख्य न्यायाधीश के पद पर नहीं रहे थे। कोई नहीं जानता कि आप एक नहीं, कई मुख्य न्यायाधीशों के चहेते थे और कई वरिष्ठ न्यायाधीश आपसे खौफ खाते थे।

उन में से चार को मजबूर हो कर एक प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी थी जब उन्हें यह महसूस हुआ था कि आप को राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई केस दिए गए थे। उनके इस विद्रोह का लगभग तात्कालिक कारण था कि आपको सीबीआई के जज लोया (जिनकी विवादास्पद तौर पर हत्या की गई थी) का केस फैसले के लिए दिया जाना था।

उन बेचारे चार योद्धाओं को पता भी नहीं था कि जो पीठ अंतत: उस केस पर विचार करेगी उसका फैसला था कि वह हृदय आघात से गुजर गए। इस विद्वतापूर्ण निर्णय के कारण, अमित शाह नाम के सज्जन को संदिग्ध रूप में  लिप्त होने के मामले का सामना नहीं करना पड़ा। अनजान व्यक्तियों को बता दें कि जज लोया सोहराबुदीन शेख की मुठभेड़ के मामले को देख रहे थे।

आपके फैसलों की मैं बहुत व्यग्रता से टोह ले रहा था, आप में किसी विशेष दिलचस्पी के कारण नहीं, बल्कि इस लिए कि आपको बहुत महत्वपूर्ण केसे दिए जा रहे थे। जो कुछ मैं समझ सका, उसके हिसाब से आप बृहदकाय फैसले देते थे जिसके कारण खुद मुख्य न्यायाधीश और आप के साथी न्यायाधीश आप पर विश्वास करने को मजबूर हो जाते थे।

बेशक आपका रिकॉर्ड, न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर और न्याय मूर्ति कोका सुब्बा राव के निकट भी नहीं है। आपकी तरह न्याय मूर्ति अय्यर को भी सर्वोच्च न्यायलय का प्रमुख बनने का अवसर नहीं मिला था। हालांकि, यहां तुलनाएं हेय होती हैं। और मैं किसी एक की तुलना किसी दूसरे से करना पसंद नहीं करता। शेक्सपियर कालिदास से बेहतर लेखक था, या इसका उलट भी, करना मूर्खता की बात होगी।

मैं न्यायमूर्ति अय्यर का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, जिनका मुझे उनके पटना दौरे के दौरान कई घंटों तक इंटरव्यू करने का मौका मिला था। मैंने उनका पहला भाषण तब सुना था जब उन्होंने मेरी मातृ शिक्षण संस्था, कैथिलेट कॉलेज, पाठनामकित्ता की छात्र यूनियन का उद्घाटन किया।

मैं एक छोटा सा रिपोर्टर था, जब 1975 में अवकाश के दौरान, कार्यकारी जज की हैसियत से उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इंदिरा गांधी की संसद की सीट छोड़ने के निर्णय के स्थगन की याचिका को खारिज करने का निर्णय लिया था। श्रीमती गांधी के वकील नानी पालखीवाला ने जज को लगभग धमकी दी थी कि संज्ञेय आदेश को पूरी तरह निलंबित करने से कम किसी भी आदेश के गंभीर परिणाम होंगे। अय्यर ने कोई परवाह नहीं की। संविधान के इतिहासकार एच एम सीरवाई ने कहा है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की सबसे शानदार घड़ी का प्रतीक है।

न्यायमूर्ति अय्यर का यह निर्णय देश में अंग्रेजी के सभी प्रमुख अखबारों में पूरा का पूरा छपा था। यदि आपने नहीं पढ़ा है तो कृपया इसे पढ़िए। न्यायमूर्ति अय्यर ने इस तथ्य को पूरी तरह उद्घाटित किया कि एक न्यायाधीश को न्यायगत समस्याओं के प्रति सामाजिक दर्शानिकता और मानवीयता की एप्रोच अपनानी चाहिए।

यदि सुब्बा राव को मूल अधिकारों के प्रति ऑब्सेशन था, तो न्यायमूर्ति अय्यर का फलक बृहत्तर था, गरीबों और दमितों के सरोकार। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के बेहद प्रभाव शाली अहातों में दमितों को विशेष प्रवेश की व्यवस्था कायम कर दी।

आप अपनी छाती पर दायां हाथ रख कर खुद से पूछिए कि आपने मानव अधिकारों की स्थापना के लिए क्या किया है। मुझे नहीं पता कि क्या आपको मालूम है कि न्यायमूर्ति अय्यर राष्ट्रीय मानवाधिकार की स्थापना के विरुद्ध थे।

उनका मत था कि मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वालों के लिए दंड सुनिश्चित करना न्याय पालिका की जिम्मेवारी है। मौजूदा या दिवंगत जजों में बहुत कम उन के जैसा बोल या लिख सकते थे।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के बारे में उनका कथन सुन कर आप प्रसन्न होंगे, यह नजरों का धोखा है,सजावटी रंग, देश के लोगों के लिए अफीम, और विदेशियों के लिए कोकीन, एक कानूनी नकाब, शब्दों का एक जादू जो दिखाने से ज्यादा छिपाता है। एक ऐसा प्रभाव हीन देव दूत, जो शून्य में अपने पंख बेकार में फड़फड़ाता है।

जब इस आयोग की बातें चल रही थीं, तो भारत की बार कौंसिल द्वारा आयोजित एक सेमिनार में न्यायमूर्ति अय्यर ने राय दी,” हमें सर्वोच्च न्यायालय में भी एक मानवाधिकार प्रखंड बना देना चाहिए”। उन्हीं के राज्य के न्यायमूर्ति टी के थम्मन आयोग के प्रबल पक्षधर थे।

उस समय प्रावधान था कि सदस्यों में से एक सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत जज होना चाहिए। कोई भी मौजूदा जज सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश के अधीन काम करना पसंद नहीं करता था। तो न्यायमूर्ति थम्मन जो मृत्यु शैय्या पर थे, उन्हें बतौर सदस्य नियुक्त किया गया। पर 20 दिसंबर 1993 को निधन होने के कारण वह पद ग्रहण नहीं कर सके।

उम्मीद करता हूं कि मेरी धारणा, कि आपकी नियुक्ति विवादास्पद है, पर आप सवाल नहीं उठाएंगे। यह पहली बार नहीं है कि आयोग की संरचना पर विवाद  नहीं उठे हों। जब जस्टिस रंग नाथ मिश्र को आयोग का सब से पहला अध्यक्ष बनाया गया, तब भी लोगों ने उनकी क्षमता पर प्रश्न उठाए थे।

जस्टिस मिश्र ही ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख दंगों पर लीपा पोती की थी। 1984 के दंगों की जांच करने वाला और उसमें कांग्रेस के नेताओं के कारनामों को सफेद साबित करने वाला व्यक्ति आयोग का अध्यक्ष कैसे बन सकता है। कांग्रेस को फायदा पहुंचा कर, वह कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा में चुन लिए गए।

राज्य सभा का सदस्य चुन लिए जाने वाले वे दूसरे भूतपूर्व न्यायाधीश थे। आप मिश्र जी के भतीजे, 45वें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को तो जानते ही हैं, जिनके अधीन बतौर जज आपने बहुत नाम कमाया। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे और मुझे बताने की जरूरत नहीं कि कैसे न्यायिक शक्तियों का मनमाना दुरुपयोग करते हुए उन्हें दोष मुक्त घोषित कर दिया गया।

इसी तरह एक और मुख्य न्यायाधीश, जिन पर यौन प्रताड़ना के आरोप थे, साफ बच निकले और राज्य सभा के सदस्य बन गए।

आप की हस्ती भी कम प्रभावशाली नहीं है। आप के पिता मध्य प्रदेश में उच्च न्यायालय में जज थे। संयोग की बात है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना से पहले मध्य प्रदेश सबसे पहला राज्य था जहां मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुई। 45 साल की उमर से पहले ही आप उच्च न्यायालय के जज बन गए थे।

आप के छोटे भाई भी 45 साल की उमर से पहले ही उच्च न्यायालय के जज बन गए। आपकी नियुक्ति के समय उम्र का कोई व्यवधान नहीं होता था, पर उनकी नियुक्ति के समय था। लेकिन भारत में संपर्क अन्य बातों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। मुझे उनकी याद आती है तो इसलिए कि उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट दर्ज की थी “नेहरू गांधी परिवार मुस्लिम है, इसलिए वह हिंदुओं के विरुद्ध है।”

अगर वह सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हो जाते हैं तो बतौर जज और बतौर मुख्य न्यायाधीश उनकी पारी सबसे लंबी होगी।

लेकिन इस बात का मौजूदा मामले से कोई संबंध नहीं है। यह लिखते समय मेरे सामने आज के समाचार पत्र हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की विषद रिपोर्ट है जिसके अनुसार विनोद दुआ को राजद्रोह के आरोप से मुक्त कर दिया गया है।

महत्वपूर्ण यह है कि न्यायालय ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि पत्रकारिता करने वालों द्वारा सरकार की आलोचना राजद्रोह नहीं होगी। इसके विपरीत मुझे याद आते हैं देश के लिए वे भारी लम्हे जब आपने एडवोकेट प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के लिए दंड देने की ठानी थी।

सुप्रीम कोर्ट अपील की आखरी कोर्ट है। लोगों की आखरी उम्मीद भी इसी अदालत पर टिकी होती है। वे खुश हैं कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से  कुछ मुश्किल सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं। जैसे ऑक्सीजन और टीकों के मामलों पर। अदालत को कानून का शासन कायम करना है, इसे मौजूदा सरकार की तानाशाही नहीं सहनी चाहिए।

मैं कोर्ट द्वारा जम्मू और कश्मीर के लोगों को लाभ न दे पाने के समय हैरान हो गया था जब एक सुबह उन्होंने पाया कि उनके राज्य का अस्तित्व ही नहीं रहा। मैं संजीव भट्ट को एक हीरो मानता हूं। क्या मुझे बताना पड़ेगा कि उनके जेल में सड़ते रहने का कौन जिम्मेवार होगा। यह कैसे हो सकता है कि उन सभी मामलों में, जिनमें सरकार के हित जुड़े थे,  आपने सरकार के पक्ष में निर्णय दिया, निर्दोषों के पक्ष में नहीं।

गुजरात के बेस्ट बेकरी केस में सभी आरोपी बरी कर दिए गए। बेकरी के मालिक ने पत्रकारों को बताया कि सरकार की ऊंची हस्तियों के दबाव में उन्होंने झूठी गवाही दी। गुजरात की अदालत ने खुद को सबूतों की अदालत कहा, न्याय की नहीं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ही दखल दे कर सुप्रीम कोर्ट को गुहार लगाई कि मुकदमा गुजरात से बाहर चलाया जाए। इसी प्रकार यह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ही था जिसने जम्मू और कश्मीर के बिहाबेता घटना की जांच की जिसमें बीएसएफ द्वारा फायरिंग की घटना में 31 नागरिक मारे गए और लगभग 75 घायल हुए।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक विरोधी की भूमिका अदा करनी चाहिए। क्या वैसी भूमिका के लिए आप सक्षम हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में आपने जो कहा उसे कोई नहीं भूल सकता कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्वप्नदर्शी हैं, जो वैश्विक सोच रखते हैं और स्थानीय तौर पर क्रियाशील हैं। और दुखद बात यह है कि ऐसा आपने न्यायविदों की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में कहा जब आप सुप्रीम कोर्ट के जज थे।

मुझे ज्यादा अंतर नहीं लगा आपके कथन में और महाराष्ट्र के बीजेपी के एक प्रवक्ता अवधूत नाथ के कथन जिसके अनुसार मोदी विष्णु के 11वें अवतार हैं।

प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने आप का चयन किया। राज्य सभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आपके चयन का यह कहते हुए विरोध किया कि यह एवज में दिए गए लाभ का मामला है।

उन्होंने एक सही नुक्ता पेश किया कि अध्यक्ष या पूर्ण कालिक सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अल्पसंख्यक समुदाय से होना चाहिए। अगर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा हर रोज प्राप्त होने वाली शिकायतों के आयतन का जायजा लेंगे तो आप को पता चलेगा कि उनमें से अधिकतर दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों ने भेजी हैं।

आपके चयन में उस निर्लज्जता की भी झलक नजर आती है जो सरकार द्वारा अपने विरोध को निपटाने में नजर आती है। क्या आप को पता है कि इस आयोग के संरचना काल में जब नियम और रेगुलेशन बनाए गए तो एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बड़ी भूमिका अदा की थी। आज वह संस्था भारत से निष्कासित है क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि कोई उसके कारनामों पर उंगली उठाए।

आपने ऐसे हालात में अध्यक्ष का पद संभाला है। हाल ही में मेरे एक दोस्त के पिता का निधन हो गया। उसका कोच्चि के मरद इलाके के आवासीय समूह में एक फ्लैट था। ये फ्लैट आपके आदेश पर तुड़वा दिए गए थे। उसने अपनी मेहनत की कमाई इस फ्लैट को रुचि के अनुसार सजाने में लगायी थी।

आपने उसके परिवार का उस फ्लैट में खुशनुमा जीवन जीने का सपना बर्बाद कर दिया। ऐसे असामान्य निर्णय से आपको क्या मिला। हां, 70 साल के हो जाने पर जब आप आयोग से रिटायर हो जायेंगे तब आप अपने नातियों, पड़ नातियों को इन मकानों को ध्वस्त किए जाने के वीडियो क्लिप दिखा सकेंगे जिनकी नकल हॉलीवुड या बॉलीवुड भी नहीं कर सकते।

हां, हृदय परिवर्तन संभव है। बाइबल में साल की कहानी है जिसने ईसाइयों को प्रताड़ित किया, बाद में वह पॉल बन गया, एक देवता। मैं कामना करता हूं कि आप मानव अधिकारों के चैंपियन बनें और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के पद की गरिमा निभायेंगे।

भगवान आपको नेमतें बख्शें।

आपका

एजे फिलिप

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