Sunday, April 28, 2024

सुप्रीम कोर्ट में 370 पर बहस: कपिल सिब्बल ने कहा जम्मू-कश्मीर में पांच वर्षों से राजनीतिक लोकतंत्र खत्म है

धारा 370 पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण ‘निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा। सिब्बल, जो पूर्ववर्ती राज्य को दिए गए विशेष दर्जे को छीनने से जुड़े 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाले अकबर लोन की ओर से पेश हो रहे हैं, ने कार्यवाही को ‘ऐतिहासिक’ बताया और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने वाले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की वैधता पर सवाल उठाया। कपिल सिब्बल ने सुनवाई को दौरान कहा कि हम यहां इस आधार पर खड़े हैं कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद है, निर्विवाद था और सदैव निर्विवाद रहेगा।

इसके बावजूद एक असंवैधानिक प्रक्रिया से पूरा का पूरा ढांचा ही बदल दिया गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पूछा कि क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को इस तरह से चुप कराया जा सकता है? पिछले पांच वर्षों से जम्मू-कश्मीर में कोई प्रतिनिधि लोकतंत्र नहीं है। 

जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। यह पीठ अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर कुल 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर ऐसे समय में सुनवाई हो रही है जब इसे हटाए हुए 4 साल होने को हैं। 5 अगस्त, 2019 को, भारत सरकार ने इसे हटाने की घोषणा की थी। तब अनुच्छेद 1954 के आदेश को खत्म करते हुए राष्ट्रपति का नया आदेश जारी किया गया था। जिसके बाद भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर दिया गया था। 

राष्ट्रपति का यह आदेश भारत की संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित एक प्रस्ताव पर आधारित था। 6 अगस्त को जारी बाद के एक आदेश ने अनुच्छेद 370 के खंड 1 को छोड़कर सभी खंडों को निरस्त कर दिया था। केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के द्वारा राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। केंद्र सरकार के इन फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थी, इन्हीं याचिकाओं पर अब सुनवाई हो रही है। 

अनुच्छेद 370 पर सुनवाई कर रही इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल दूसरे नंबर के वरिष्ठ जज हैं। वह इसी वर्ष 25 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 पर 25 दिसंबर तक अपना फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अब तेजी से सुनवाई करेगा। 

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को बहाल करने की आड़ में हमने लोकतंत्र को ही नष्ट कर दिया है। एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य ऐतिहासिक रूप से संघ में एकीकृत रियासतों के विपरीत एक अद्वितीय संबंध का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यपाल ने जून 2018 से जम्मू-कश्मीर विधानसभा को निलंबित रखा है। संविधान सभा का अभ्यास राजनीतिक अभ्यास है। 

उन्होंने दलील दी कि भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना एक राजनीतिक अभ्यास है। एक बार मसौदा तैयार हो जाने के बाद, देश के सभी संस्थान संविधान द्वारा शासित होते हैं। उन्होंने कहा कि संसद कभी भी खुद को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती है। संसद प्रस्ताव द्वारा यह भी नहीं कह सकती कि हम संविधान सभा हैं। संविधान सभा का कामकाज एक राजनीतिक अभ्यास है, न कि कानूनी अभ्यास। संविधान अपने आप में एक राजनीतिक दस्तावेज है। उन्होंने सवाल किया कि आखिर कानून के किस प्रावधान के तहत विधायिका को खत्म किया गया। भारतीय संसद स्वयं को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती है। 

अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर हो रही इस सुनवाई में हिस्सा ले रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने इससे पहले कहा, यह कई मायनों में एक ऐतिहासिक क्षण है। सुनवाई को दौरान सुप्रीम कोर्ट इस बात का परीक्षण करेगी कि 5 अगस्त, 2019 को इतिहास को क्यों उछाला गया था। सुनवाई को दौरान देखा जाएगा कि क्या संसद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी ? इसमें देखा जाएगा कि क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की उम्मीदों को दबाया जा सकता है? यह ऐतिहासिक इसलिए भी है क्योंकि वहां 5 साल से कोई चुनी हुई सरकार नहीं है।

( जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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