Saturday, April 20, 2024

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के भर्ती घोटले की न्यायिक जांच और कुलपति को बर्खास्त करने की मांग

देहरादून/हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (यूओयू) में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और इसके लिए ज़िम्मेदार विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी को बर्खास्त कर भर्ती घोटालों की न्यायिक जांच किए जाने की भाकपा माले ने मांग की है। आरोप है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी ने अपने कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों में अपने पद का पूर्णतः दुरुपयोग करते हुए भ्रष्ट तरीक़े से प्रदेश के युवाओं और महिलाओं का हक़ मारकर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भर्ती की है।

इसके अलावा आरोप है कि उन्होंने कार्यपरिषद से मनमाने निर्णय पास कराके विश्वविद्यालय के करोड़ों रुपये के कॉरपस फंड का भी गलत तरीके से मनमाना इस्तेमाल किया है। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है।

भाकपा माले देहरादून के सचिव कैलाश पांडेय ने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व उत्तराखंड के राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि कुलाधिपति कार्यालय के पास नेगी के भ्रष्टाचार की कई शिकायतें पहुंचने और उनके रिटायरमेंट की उम्र क़रीब होने के बावजूद उन्हें राजनीतिक दबाव में दोबारा कुलपति नियुक्त किया गया। जबकि इस पद के लिए क़रीब ढाई सौ प्रोफेसरों ने आवेदन किया था।

कैलाश पांडेय ने कहा कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है। सिर्फ़ पंतनगर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वहां केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र 70 साल है। अब ओम प्रकाश नेगी राज्य के सभी विश्ववद्यालयों में कुलपति की रिटायरमेंट की उम्र 70 साल करने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं जिससे वे 65 साल की उम्र पूरी होने के बाद भी कुलपति के पद पर बने रह सकें। उन्हें 65 साल होने में सिर्फ़ 2 महीने शेष हैं।

कुलाधिपति को भेजे गए पत्र में कुलपति ओम प्रकाश नेगी के भ्रष्टाचार के विवरण को साझा करते हुए मांगे भी रखी गई हैं। तथ्य और मांगें निम्नवत हैं-

कुलपति के भ्रष्ट्राचार से जुड़े तथ्य

1- ओम प्रकाश नेगी ने फरवरी 2019 में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आते ही आरएसएस कार्यकर्ताओं को भर्ती करने के लिए धड़ाधड़ नियुक्तियों की शुरुआत की। सबसे पहले असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर (एआरडी) के 8 पदों पर भर्ती की गई। इन सभी पदों पर बीजेपी-आरएसएस और अधिकारियों के क़रीबी लोगों की भर्ती की गई। देहरादून से प्रकाशित होने वाले समय साक्ष्य वेबसाइट ने नियुक्तियों से पहले ही धांधली कर चयनित होने वाले उम्मीदवारों के नाम प्रकाशित कर दिये थे। इन पदों के लिए बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने आवेदन किये थे।

2- अध्यापकों के 37 पदों की भर्ती के लिए आरक्षण रोस्टर में खिलवाड़ किया गया। सुविधानुसार सीटों को आरक्षित और अनारक्षित किया गया। इन पदों के लिए भी सैकड़ों उम्मीदवारों ने आवेदन किये थे।

3- राज्य में लागू महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण को आपराधिक तौर पर लागू नहीं किया गया। इस सिलसिले में मीडिया में कई रिपोर्ट आने और कुलाधिपति कार्यालय के पास सूचना होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस घटना से पता चलता है कि आरएसएस के काडर रहे (एक टेलीविजन चैनल में कुलपति खुद स्वीकार कर चुके हैं कि वे आरएसएस काडर हैं) कुलपति ही नहीं बल्कि सरकार भी महिला विरोधी है। ये राज्य आंदोलन में बलिदान देने वाली राज्य की महिलाओं का अपमान है।

4- 25 अध्यापकों की नियुक्ति से 7 महीने पहले ही कुलाधिपति/राज्यपाल के पास 9 लोगों की नियुक्ति की साजिश की शिकायत डॉ. राजेश कुमार सिंह की तरफ़ से पहुंच गयी थी। आश्चर्यजनक तौर पर 7 महीने बाद एक राष्ट्रीय स्तर की चयन प्रक्रिया में उन्हीं 9 लोगों का चयन हो गया। कुलाधिपति कार्यालय इस सिलसिले में औपचारिकता निभाते हुए सरकार और विश्वविद्यालय से जवाब मांगता है लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने में कोई रुचि नहीं दिखाता है। भ्रष्टाचार की अनदेखी करने पर कुलाधिपति कार्यालय की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। 

5- कुलपति ओम प्रकाश नेगी ने बिना ज़रूरी योग्यता के कई लोगों की नियुक्ति की है। इसमें असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर बिना नेट-पीएचडी, एसोसिएट प्रोफेसर पर बिना 8 साल असिस्टेंट प्रोफेसर के अनुभव के और प्रोफेसर पद पर बिना पर्याप्त योग्यता के नियुक्तियां की गई हैं। अभ्यर्थियों के चयन के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी की सिफ़ारिशों की अनदेखी कर एक फर्जी शिकायत निवारण समिति बनाकर कुलपति ने अयोग्य व्यक्तियों को ख़ुद योग्य घोषित करवा कर उनका चयन करवा लिया गया। तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक और पीआरओ को भी भ्रष्टाचार में शामिल होने के ईनाम के तौर पर नियम तोड़कर प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया। सही जांच होने पर सारे भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाया जा सकता है।

6- हरिद्वार के सामाजिक कार्यकर्ता सच्चिदानंद डबराल ने राज्य सरकार और कुलाधिपति कार्यालय को भर्ती घोटाले की विस्तृत सूचना देकर कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन उस पर कभी कार्रवाई नहीं की गई। क्या कुलाधिपति कार्यालय भी किसी दबाव में काम कर रहा है? 

7- कुलपति ने अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर फ़र्जी भर्ती कर राज्य के हज़ारों बेरोजगार युवाओं का हक़ मारा है। युवाओं ने विश्वविद्यालय की नियुक्तियों के लिए आवेदन तो किया लेकिन भर्ती घोटाले की वजह से उन्हें कोई मौका नहीं मिला। इंटरनेट में बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं और रिश्तेदारों के नामों की लिस्ट कई बार वायरल हो चुकी है लेकिन कोई अवैध तौर पर नियुक्त इन लोगों का बाल भी बांका नहीं कर पाया।

8- विश्वविद्यालय में असिस्टेंट डायरेक्टर (आईटी) और शोध अधिकारियों के पद पर भी आरएसएस के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई है। सिस्टम मैनेजर के पद पर नियुक्त गिरिजा शंकर जोशी मुख्यमंत्री के एनजीओ के सचिव हैं और लंबे अरसे से उनके सहयोगी रहे हैं। एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में उनका चयन करवा दिया गया और विश्वविद्यालय में तैनाती के दिन से ही उन्हें मुख्यमंत्री ऑफिस अटैच कर दिया गया। ये सीधे सरकार के नेतृत्व में भ्रष्टाचार का मामला है।

9- ओम प्रकाश नेगी ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर विश्वविद्यालय में हमेशा के लिए धारा 144 लगा रखी है।

10- कुलपति ओम प्रकाश नेगी को उच्च स्तरीय राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए वे लगातार मनमानी करते जा रहे हैं। इसलिए राज्य सरकार की किसी भी जांच का इस मामले में कोई मतलब नहीं बनता।

उक्त तथ्यों के आधार पर मांगें-

1- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओम प्रकाश नेगी को तुरंत बर्खास्त कर उन पर भ्रष्टाचार का मुक़दमा दर्ज किया जाए।

2- ओम प्रकाश नेगी के बर्खास्त होने तक किसी भी हालत में उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 साल न की जाए।

3- ओम प्रकाश नेगी और उनके रिश्तेदारों के बैंक खातों की जांच की जाए। मुक़दमा चलने तक उनकी पेंशन पर रोक लगाई जाए।

4- नेगी के कार्यकाल की समस्त अनियमितताओं की जांच हाइकोर्ट में कार्यरत जज के नेतृत्व में सीबीआई जांच करवाई जाए। लिखित परीक्षाओं में प्रश्नपत्र आउट करने के आरोपों की जांच की जाए।

5- धांधली कर की गई सभी भर्तियां रद्द की जाएं। दस्तावेज़ों में हेरफेर कर नियुक्ति पाने वालों पर भी मुकदमा दर्ज किया जाए। 

कुलाधिपति को भेजे पत्र में कहा गया है कि ‘उत्तराखंड के राज्यपाल और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलाधिपति होने के नाते आप किसी भी दबाव से मुक्त होकर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे। यह भी गौरतलब है कि पूर्व कुलाधिपति ने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में धांधली पर जांच बैठाने की बात मीडिया में थी। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई होना तो दूर अभी तक कोई जांच रिपोर्ट भी सामने नहीं आई है। अतः अनुरोध है कि उक्त मांगों पर ध्यान देते हुए उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का कष्ट करें।’

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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