झारखंड में चला ‘आंगनबाड़ी में बांटो अंडा-कुपोषण को मारो डंडा’ अभियान

रांची। ‘भोजन का अधिकार अभियान’ ने झारखंड में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए आज (12 अक्टूबर 2023) राज्यभर में आंगनबाड़ी केंद्रों और मध्याह्न भोजन में प्रति दिन अंडा देने की मांग पर ‘अंडा अभियान’ चलाया। इस अभियान के तहत संगठनों ने चंदा करके आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को अंडा खिलाया।

दरअसल झारखंड सरकार पिछले तीन सालों में कई बार आंगनबाड़ी में बच्चों को प्रति सप्ताह 6 दिन अंडा देने की घोषणा करती रही है। साथ ही विद्यालयों में मध्याह्न भोजन में 5 दिन अंडे देने की भी घोषणा कई बार हुई। लेकिन आज तक यह घोषणा केवल चूंचूं का मुरब्बा ही साबित हुई है। अभी तक योजना को धरातल पर नहीं उतरा जा सका है।

इसी आलोक में झारखंड सरकार को उसका वादा याद दिलाने के लिए आज ‘भोजन का अधिकार अभियान झारखंड’ के आह्वान पर पूरे राज्य में विभिन्न संगठनों द्वारा आंगनबाड़ी में अंडा अभियान चलाया गया। ग्रामीण, स्थानीय संगठन व अभियान के प्रतिनिधियों ने चंदा करके बच्चों को अंडा खिलाया। शायद अब सरकार को आंगनबाड़ी के बच्चे याद आ जाएं।

यह अभियान राज्य के 15 जिलों के करीब 75 आंगनबाड़ी केन्द्रों में चलाया गया और करीब 2 हजार बच्चों को अंडा खिलाया गया। स्थानीय कार्यक्रमों में पारंपरिक ग्राम प्रधान, जन प्रतिनिधि, आंगनबाड़ी सेविका, बच्चों के अभिभावक व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। इस अवसर पर हुए कार्यक्रमों में राज्य में कुपोषण की स्थिति एवं अंडे की ज़रूरत पर चर्चा हुई।

अभियान में शामिल प्रतिभागियों ने बताया कि सरकार से लगातार अंडे की मांग की गयी है। लेकिन सरकार की कार्रवाई घोषणा तक ही सीमित है। राज्य में कुपोषण ख़त्म करने की ज़रूरत पर सरकार का ऐसा उदासीन रवैया जनता के साथ धोखा है। आज अभियान के दौरान विभिन्न आंगनबाड़ी केन्द्रों में एक स्वर में नारा लगा- “आंगनबाड़ी में बांटो अंडा, कुपोषण को मारो डंडा।”

अंडा अभियान के माध्यम से भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड व अन्य सभी सहभागी संगठनों ने झारखंड सरकार से फिर से मांग की, कि आंगनबाड़ी में बच्चों को प्रति सप्ताह 6 दिन अंडा देने के वादे को तुरंत लागू करे। साथ ही, मध्याह्न भोजन में भी प्रति सप्ताह 5 अंडे देने की घोषणा को लागू करे।

झारखंड में कुपोषण मार

आजादी के 76 साल और झारखंड अलग राज्य बनने के 23 साल बाद भी राज्य में कुपोषण अपना कीर्तिमान कायम किए हुए है, जिसका व्यापक प्रभाव किसी से छुपा नहीं है। 2019-21 के सरकारी आंकड़ों (NFHS-5) के अनुसार राज्य के पांच वर्ष के कम उम्र के 40 फीसदी बच्चों का उम्र के अनुपात में वज़न कम है, मतलब वे कुपोषित हैं। राज्य की एक-चौथाई व्यस्क महिलाओं का BMI सामान्य से कम है। विभिन्न सरकारी सर्वेक्षणों में यह भी बार-बार पाया जाता है कि राज्य के आदिवासी-दलित बच्चे अन्य समुदायों की तुलना में ज़्यादा कुपोषित हैं।

खाद्य सुरक्षा के हिसाब से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए अंडा एक बेहतरीन खाद्य पदार्थ है। इसमें विटामिन सी के अलावा अन्य आवश्यक पोषक तत्व हैं। अंडे न केवल अत्यंत पौष्टिक होते हैं, बल्कि स्वादिष्ट और किफायती भी हैं। यह न केवल पोषण के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि आंगनबाड़ी व मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडा देने से आंगनबाड़ी व विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति भी सुधरेगी। झारखंड में कुपोषण की स्थिति केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों से बदतर है।

संगठनों का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में आंगनबाड़ी व मध्याह्न भोजन में अंडा देना राज्य सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन सरकार का ध्यान बच्चों के भविष्य की ओर नहीं है। मीडिया की खबरों के अनुसार आंगनबाड़ी में अंडे देने के लिए निजी ठेकेदारों के लिए केंद्रीकृत ठेके की व्यवस्था की जा रही है, जिसके कारण अंडा देने में देरी हो रही है। केंद्रीकृत ठेके में भ्रष्टाचार और देरी होनी ही है, जिसका सीधा प्रभाव बच्चों के कुपोषण पर पड़ेगा।

अतः आंगनबाड़ी में ठेकेदारों की ज़रूरत है ही नहीं है, यह सरकार को समझना चाहिए। आंगनबाड़ी स्थानीय स्तर पर ही अंडा खरीद सकती हैं। विद्यालयों में मध्याह्न भोजन में वर्तमान में सप्ताह में दो अंडे मिलते हैं, जो स्थानीय स्तर पर ही खरीद कर दिए जाते हैं। अगर विद्यालयों में यह व्यवस्था सफलतापूर्वक चल रही है, तो आंगनबाड़ी में भी चलेगी।

अंडा अभियान में भारत ज्ञान विज्ञान समिति, ग्राम स्वराज्य मज़दूर संघ, जिला महिला समिति, खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच पश्चिमी सिंहभूम, अभियान साहेबगंज, लोयोला सामाजिक कल्याण केन्द्र रेरूआ, नरेगा सहायता केंद्र, यूनाइटेड मिली फोरम जैसे संगठनों ने भाग लिया।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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